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Article 198 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 10:39:50
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 198

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 198
अनुच्छेद 198 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रिया(Special procedure in respect of Money Bills) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल में धन विधेयकों(Money Bills) को प्रस्तुत करने, विचार करने, और पारित करने की विशेष प्रक्रिया को परिभाषित करता है, जिसमें विधान परिषद की भूमिका अत्यंत सीमित होती है।
"(1) इस संविधान के प्रयोजनों के लिए, कोई विधेयक धन विधेयक समझा जाएगा यदि उसमें केवल निम्नलिखित सभी या किन्हीं विषयों के लिए उपबंध हैं, अर्थात्:
(क) कराधान, उधार लेना, प्रत्याभूति देना या किसी वित्तीय दायित्व का वहन करना, या भारत की संचित निधि से धन का निकाला जाना;
(ख) भारत की संचित निधि में धन का अभिरक्षा, उसमें धन का संदाय, उससे धन का निकाला जाना, या भारत की सार्वजनिक लेखा निधि की अभिरक्षा या लेखा-परीक्षा;
(ग) किसी राज्य की संचित निधि में धन का संदाय, उससे धन का निकाला जाना, या उसकी अभिरक्षा;
(घ) किसी राज्य की संचित निधि पर कोई व्यय भारित करना;
(ङ) किसी राज्य की संचित निधि से धन का विनियोग;
(च) किसी राज्य की संचित निधि में प्राप्तियों का लेखा या उन प्राप्तियों की अभिरक्षा, या उन पर ब्याज की गणना;
(छ) उपरोक्त में से किसी के लिए पूरक, अतिरिक्त या अधिक व्यय के लिए उपबंध;
(ज) उपरोक्त में से किसी के लिए उपबंधों से संबंधित कोई मामला।
(2) कोई विधेयक केवल इस कारण से धन विधेयक नहीं समझा जाएगा कि उसमें:
(क) जुर्माने या अन्य धन दंडों का अधिरोपण, या
(ख) लाइसेंस शुल्क या सेवाओं के लिए शुल्क का अधिरोपण, या
(ग) स्थानीय उद्देश्यों के लिए कर, शुल्क, उपकर या अन्य समान प्रकृति की आय का अधिरोपण, के लिए उपबंध हैं।
(3) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो उस राज्य की विधानसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा।
(4) प्रत्येक धन विधेयक, जब वह किसी राज्य की विधानसभा द्वारा पारित कर दिया जाता है, तो उसे उस राज्य की विधान परिषद, यदि कोई हो, को उसकी सिफारिशों के लिए प्रेषित किया जाएगा, और विधान परिषद को वह विधेयक प्रेषित होने की तारीख से चौदह दिन के भीतर अपनी सिफारिशों सहित विधानसभा को वापस करना होगा।
(5) यदि विधान परिषद उस अवधि के भीतर अपनी सिफारिशें नहीं देती है, तो वह विधेयक उस अवधि की समाप्ति पर विधानसभा द्वारा पारित माना जाएगा।
(6) यदि विधान परिषद अपनी सिफारिशों सहित विधेयक को वापस करती है, तो विधानसभा उन सिफारिशों पर विचार करेगी और यदि वह उन सिफारिशों को स्वीकार नहीं करती है, तो वह विधेयक उसी रूप में पारित माना जाएगा, जिसमें वह विधानसभा द्वारा पारित किया गया था।
(7) धन विधेयक पर विधान परिषद की सिफारिशें स्वीकार करना या न करना विधानसभा के विवेक पर निर्भर करेगा।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 198 धन विधेयकों के लिए विशेष प्रक्रिया को परिभाषित करता है, जिसमें विधानसभा की प्रभुता और विधान परिषद की सीमित सलाहकार भूमिका सुनिश्चित की जाती है। यह वित्तीय मामलों में विधानसभा की सर्वोच्चता को रेखांकित करता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में वित्तीय प्रक्रिया की पारदर्शिता और कार्यकुशलता को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों में धन विधेयकों की विशेष प्रक्रिया को नियंत्रित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स की वित्तीय प्रभुता और हाउस ऑफ लॉर्ड्स की सीमित भूमिका को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, वित्तीय मामलों में निर्वाचित विधानसभा की प्राथमिकता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 109(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान वित्तीय नीतियों में विधानसभा की प्रभुता और विधान परिषद की सलाहकार भूमिका को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 198 के प्रमुख तत्व
खंड(1): धन विधेयक की परिभाषा: धन विधेयक वह है जो केवल निम्नलिखित विषयों से संबंधित हो: कराधान, उधार, प्रत्याभूति, वित्तीय दायित्व। संचित निधि से धन का निकाला जाना। संचित निधि की अभिरक्षा, संदाय, लेखा-परीक्षा। व्यय का भार, विनियोग, प्राप्तियों का लेखा। पूरक या अतिरिक्त व्यय। उदाहरण: 2025 में, किसी राज्य का बजट विधेयक धन विधेयक के रूप में पारित हुआ।
खंड(2): धन विधेयक नहीं: जुर्माने, लाइसेंस शुल्क, या स्थानीय करों से संबंधित विधेयक धन विधेयक नहीं माने जाएँगे। उदाहरण: नगरपालिका कर से संबंधित विधेयक धन विधेयक नहीं है।
खंड(3): अध्यक्ष का निर्णय: यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, तो विधानसभा के अध्यक्ष का निर्णय अंतिम होगा। उदाहरण: अध्यक्ष ने विधेयक को धन विधेयक घोषित किया, जिस पर विवाद हुआ।
खंड(4): विधान परिषद की भूमिका: धन विधेयक को विधान परिषद को सिफारिशों के लिए प्रेषित किया जाएगा। विधान परिषद को 14 दिन के भीतर सिफारिशें देनी होंगी। उदाहरण: विधान परिषद ने 14 दिन में सिफारिशें दीं।
खंड(5): समय सीमा: यदि विधान परिषद 14 दिन में सिफारिशें नहीं देती, तो विधेयक विधानसभा द्वारा पारित माना जाएगा। उदाहरण: विलंब के कारण विधेयक स्वतः पारित माना गया।
खंड(6): सिफारिशों पर विचार: विधानसभा सिफारिशों पर विचार करेगी, लेकिन उन्हें स्वीकार करना वैकल्पिक है। यदि सिफारिशें अस्वीकार की जाती हैं, तो विधेयक विधानसभा द्वारा पारित रूप में माना जाएगा। उदाहरण: विधानसभा ने सिफारिशें अस्वीकार कर विधेयक पारित किया।
खंड(7): विधानसभा का विवेक: सिफारिशों को स्वीकार करना या न करना विधानसभा के विवेक पर निर्भर है।
महत्व: विधानसभा की प्रभुता: वित्तीय मामलों में सर्वोच्चता। लोकतांत्रिक जवाबदेही: निर्वाचित विधानसभा की प्राथमिकता। संघीय ढांचा: राज्यों की वित्तीय स्वायत्तता। कार्यकुशलता: विधान परिषद के विलंब से रुकावट नहीं।
प्रमुख विशेषताएँ: धन विधेयक: विशिष्ट परिभाषा। अध्यक्ष: अंतिम निर्णयकर्ता। विधान परिषद: 14 दिन की सीमा। विधानसभा: पूर्ण विवेक।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: धन विधेयकों पर विधान परिषद की सीमित भूमिका लागू। 1990 के दशक: धन विधेयक की परिभाषा पर विवाद। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में धन विधेयक प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: धन विधेयक की परिभाषा: गलत वर्गीकरण पर विवाद। अध्यक्ष का निर्णय: पक्षपात के आरोप। न्यायिक समीक्षा: धन विधेयक की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 196: सामान्य विधेयक प्रक्रिया। अनुच्छेद 199: धन विधेयक की परिभाषा। अनुच्छेद 200: राज्यपाल की सहमति।
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