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Article 195 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-04 10:30:18
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 195

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 195
अनुच्छेद 195 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह विधानमंडल के सदस्यों के वेतन और भत्ते(Salaries and allowances of members) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानमंडल(विधानसभा और, यदि लागू हो, विधान परिषद) के सदस्यों के वेतन, भत्तों, और अन्य सुविधाओं को निर्धारित करने की व्यवस्था करता है।
"किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन के सदस्य ऐसे वेतन और भत्ते पाने के हकदार होंगे, जो उस राज्य का विधानमंडल समय-समय पर कानून द्वारा निर्धारित करे, और जब तक इस प्रकार का कोई उपबंध न हो, तब तक वे ऐसे वेतन और भत्ते पाएंगे, जो उस समय लागू थे, जब यह संविधान लागू हुआ।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 195 राज्य विधानमंडल के सदस्यों(विधानसभा और विधान परिषद) को उनके कर्तव्यों के लिए उचित वेतन और भत्ते प्रदान करने की व्यवस्था करता है। यह सुनिश्चित करता है कि विधानमंडल के सदस्यों को वित्तीय सहायता मिले, जिससे वे स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में विधानमंडल के सदस्यों की वित्तीय स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडल के सदस्यों के लिए वेतन और भत्तों की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स के सदस्यों के पारिश्रमिक की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानमंडल के सदस्यों की वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 106(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधानमंडल के सदस्यों को वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है, जिससे वे बिना आर्थिक दबाव के कार्य कर सकें।
अनुच्छेद 195 के प्रमुख तत्व
वेतन और भत्ते: विधानमंडल के सदस्य वेतन और भत्ते पाने के हकदार होंगे। इन्हें राज्य विधानमंडल द्वारा कानून के माध्यम से समय-समय पर निर्धारित किया जाएगा। अंतरिम व्यवस्था: यदि विधानमंडल द्वारा कोई कानून नहीं बनाया गया हो, तो वेतन और भत्ते वही होंगे जो संविधान लागू होने(26 जनवरी 1950) के समय थे। उदाहरण: 2025 में, कई राज्यों ने अपने विधानमंडल के सदस्यों के लिए वेतन और भत्तों में संशोधन किया।
महत्व: वित्तीय स्वतंत्रता: सदस्यों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्य के लिए उचित पारिश्रमिक। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानमंडल का वेतन निर्धारण पर नियंत्रण। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। निरंतरता: अंतरिम व्यवस्था से स्थिरता।
प्रमुख विशेषताएँ: वेतन और भत्ते: विधानमंडल द्वारा निर्धारित। अंतरिम व्यवस्था: 1950 के नियम। स्वायत्तता: विधानमंडल का नियंत्रण। लचीलापन: समय-समय पर संशोधन।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों ने अपने विधानमंडल के सदस्यों के लिए वेतन कानून बनाए। 1990 के दशक: वेतन और भत्तों में वृद्धि पर चर्चा। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में वेतन निर्धारण की प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: वेतन वृद्धि पर विवाद: जनता द्वारा वेतन वृद्धि की आलोचना। पारदर्शिता: वेतन और भत्तों की जानकारी पर सवाल।न्यायिक समीक्षा: वेतन निर्धारण की वैधता पर कोर्ट की जाँच।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 106: संसद के सदस्यों के लिए वेतन। अनुच्छेद 186: अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति, और उपसभापति के वेतन। अनुच्छेद 187: सचिवालय कर्मचारियों की सेवा शर्तें।
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