Article 194 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-04 10:27:27
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 194
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 194
अनुच्छेद 194 भारतीय संविधान के भाग VI(राज्य) के अंतर्गत अध्याय III(राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्य विधानमंडल के सदस्यों और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ(Powers, privileges, and immunities of State Legislatures and their members) से संबंधित है। यह प्रावधान विधानमंडल, इसके सदस्यों, और समितियों को विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ प्रदान करता है ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वहन स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कर सकें।
"(1) किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन में और उसकी किसी समिति में वाक्-स्वातंत्र्य होगा।
(2) किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन की शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों और उस सदन के सदस्यों और समितियों की शक्तियों, विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों के बारे में, जब तक उस राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, उपबंध न करे, तब तक वे वही होंगी जो समय-समय पर संयुक्त राजशाही के हाउस ऑफ कॉमन्स की और उसके सदस्यों और समितियों की थीं, और ऐसी शक्तियाँ, विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ उस विधानमंडल के प्रत्येक सदन और उसके सदस्यों और समितियों को प्राप्त होंगी।
(3) किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन की बैठकों में प्रकाशनों के संबंध में, जब तक उस राज्य का विधानमंडल, कानून द्वारा, उपबंध न करे, तब तक वे उन्मुक्तियाँ होंगी जो समय-समय पर संयुक्त राजशाही के हाउस ऑफ कॉमन्स की बैठकों में प्रकाशनों को थीं।
(4) खंड(1), खंड(2) और खंड(3) के उपबंध उन व्यक्तियों पर लागू होंगे जो इस संविधान के अधीन किसी राज्य के विधानमंडल के किसी सदन में किसी अन्य व्यक्ति के स्थान पर बैठने या मत देने का अधिकार रखते हैं, जैसे कि वे उस सदन के सदस्य हों।"
उद्देश्य: अनुच्छेद 194 राज्य विधानमंडल(विधानसभा और, यदि लागू हो, विधान परिषद), इसके सदस्यों, और समितियों को शक्तियाँ, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियाँ प्रदान करता है ताकि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष रूप से कार्य कर सकें। यह वाक्-स्वातंत्र्य को सुनिश्चित करता है और विधानमंडल की कार्यवाही को बाहरी हस्तक्षेप से बचाता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक स्वायत्तता, और संघीय ढांचे में विधानमंडल की स्वतंत्रता और गरिमा को बनाए रखना है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों को विशेषाधिकार प्रदान करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स के विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानमंडल की स्वायत्तता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 105(संसद के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधानमंडल को बाहरी दबावों से मुक्त रखता है और सदस्यों को निडर होकर अपनी राय व्यक्त करने की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 194 के प्रमुख तत्व
खंड(1): वाक्-स्वातंत्र्य: विधानमंडल के किसी सदन और उसकी समितियों में वाक्-स्वातंत्र्य होगा। सदस्य अपनी बात स्वतंत्र रूप से कह सकते हैं, बिना कानूनी कार्रवाई के डर के। उदाहरण: 2025 में, एक विधानसभा सदस्य ने सदन में विवादास्पद टिप्पणी की, लेकिन वाक्-स्वातंत्र्य के कारण कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई।
खंड(2): शक्तियाँ, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियाँ: जब तक राज्य विधानमंडल कानून द्वारा उपबंध न करे, तब तक विधानमंडल, इसके सदस्यों, और समितियों की शक्तियाँ, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियाँ हाउस ऑफ कॉमन्स की तरह होंगी। यह विधानमंडल को स्व-नियंत्रण और स्वायत्तता प्रदान करता है। उदाहरण: विशेषाधिकार हनन के मामले में विधानसभा ने स्वयं कार्रवाई की।
खंड(3): प्रकाशनों पर उन्मुक्तियाँ: विधानमंडल की बैठकों में प्रकाशनों(जैसे, कार्यवाही की रिपोर्ट) को उन्मुक्तियाँ प्राप्त होंगी, जैसा कि हाउस ऑफ कॉमन्स में था। यह प्रावधान कार्यवाही के प्रकाशन को कानूनी कार्रवाई से बचाता है। उदाहरण: विधानसभा की कार्यवाही की रिपोर्ट प्रकाशित होने पर कोई मानहानि का मुकदमा नहीं।
खंड(4): अन्य व्यक्तियों पर लागू: यह प्रावधान उन व्यक्तियों पर भी लागू होता है जो किसी अन्य के स्थान पर विधानमंडल में बैठने या मत देने का अधिकार रखते हैं। उदाहरण: कार्यवाहक सदस्यों को भी विशेषाधिकार।
महत्व: वाक्-स्वातंत्र्य: सदस्यों को बिना डर के राय व्यक्त करने की स्वतंत्रता। स्वायत्तता: विधानमंडल को बाहरी हस्तक्षेप से सुरक्षा। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। लोकतांत्रिक जवाबदेही: निष्पक्ष और स्वतंत्र कार्यवाही।
प्रमुख विशेषताएँ: वाक्-स्वातंत्र्य: सदन और समितियों में। विशेषाधिकार: हाउस ऑफ कॉमन्स के समान। प्रकाशन: उन्मुक्तियाँ। स्वायत्तता: विधानमंडल का नियंत्रण।
ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: विशेषाधिकार हनन के कई मामले। 1964: केसव सिंह मामले में विशेषाधिकारों पर सुप्रीम कोर्ट की व्याख्या। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में विशेषाधिकारों का डिजिटल रिकॉर्ड।
चुनौतियाँ और विवाद: विशेषाधिकार बनाम मौलिक अधिकार: अनुच्छेद 19(वाक्-स्वातंत्र्य) और अनुच्छेद 194 के बीच टकराव।न्यायिक समीक्षा: विशेषाधिकारों की सीमा पर कोर्ट की जाँच। दुरुपयोग: विशेषाधिकारों का अनुचित उपयोग।
संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 105: संसद के लिए विशेषाधिकार। अनुच्छेद 188: शपथ। अनुच्छेद 191: अयोग्यता।
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jp Singh
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