Article 186 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 16:30:21
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 186
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 186
अनुच्छेद 186 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति, और उपसभापति के वेतन और भत्ते (Salaries and allowances of the Speaker and Deputy Speaker and the Chairman and Deputy Chairman) से संबंधित है। यह प्रावधान विधानमंडल के इन पदाधिकारियों के वेतन और भत्तों को निर्धारित करने की व्यवस्था करता है।
अनुच्छेद 186 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"किसी राज्य की विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद का सभापति और उपसभापति, यदि कोई हो, ऐसे वेतन और भत्ते पाएंगे, जो उस राज्य का विधानमंडल समय-समय पर कानून द्वारा निर्धारित करे, और जब तक इस प्रकार का कोई उपबंध न हो, तब तक वे ऐसे वेतन और भत्ते पाएंगे, जो राज्यपाल द्वारा विनिर्दिष्ट किए जाएँ।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 186 विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष तथा विधान परिषद के सभापति और उपसभापति के वेतन और भत्तों को निर्धारित करने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि इन पदाधिकारियों को उनके कर्तव्यों के लिए उचित पारिश्रमिक मिले, जो विधानमंडल की गरिमा और स्वायत्तता को बनाए रखता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में विधानमंडल के नेतृत्व की वित्तीय स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
2.धानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों के पदाधिकारियों के लिए वेतन और भत्तों की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स के नेतृत्व के लिए पारिश्रमिक की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानमंडल के पदाधिकारियों के लिए वित्तीय प्रावधान सुनिश्चित करने हेतु यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 97 (लोकसभा और राज्यसभा के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधानमंडल के नेतृत्व को वित्तीय स्थिरता प्रदान करता है, जिससे वे निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से कार्य कर सकें।
3. अनुच्छेद 186 के प्रमुख तत्व: वेतन और भत्ते: अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति, और उपसभापति को वेतन और भत्ते मिलेंगे। इन्हें राज्य विधानमंडल द्वारा कानून के माध्यम से समय-समय पर निर्धारित किया जाएगा। राज्यपाल की भूमिका: यदि विधानमंडल द्वारा कोई कानून नहीं बनाया गया हो, तो राज्यपाल वेतन और भत्ते विनिर्दिष्ट करता है। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश विधानमंडल ने अपने अध्यक्ष और सभापति के लिए वेतन में संशोधन किया।
4. महत्व: वित्तीय स्वतंत्रता: पदाधिकारियों को स्वतंत्र और निष्पक्ष कार्य के लिए उचित पारिश्रमिक। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानमंडल की स्वायत्तता को वेतन निर्धारण में प्राथमिकता। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता और केंद्र के साथ समन्वय। निष्पक्षता: वित्तीय स्थिरता से निष्पक्ष नेतृत्व।
5. प्रमुख विशेषताएँ: वेतन: विधानमंडल द्वारा निर्धारित। राज्यपाल: वैकल्पिक निर्धारक। स्वायत्तता: विधानमंडल का नियंत्रण। निरंतरता: समय-समय पर संशोधन।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों ने अपने विधानमंडल के पदाधिकारियों के लिए वेतन कानून बनाए। 1990 के दशक: वेतन और भत्तों में संशोधन पर चर्चा। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में वेतन निर्धारण की प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: वेतन वृद्धि पर विवाद: विधानमंडल द्वारा वेतन वृद्धि पर जनता की आलोचना। राज्यपाल का हस्तक्षेप: वैकल्पिक निर्धारण में केंद्र के प्रभाव की आलोचना। न्यायिक समीक्षा: वेतन निर्धारण की वैधता पर कोर्ट की जांच।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। यूनियन ऑफ इंडिया बनाम दीनानाथ शांताराम (2004): विधानमंडल के पदाधिकारियों के वेतन पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, वेतन और भत्तों की पारदर्शिता पर जोर। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत वेतन निर्धारण का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच वेतन वृद्धि पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 97: लोकसभा और राज्यसभा के पदाधिकारियों के वेतन। अनुच्छेद 178: विधानसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का चुनाव। अनुच्छेद 182: विधान परिषद के सभापति और उपसभापति का चुनाव।
11. विशेष तथ्य: स्वायत्तता: विधानमंडल का नियंत्रण। 2025 रिकॉर्ड: डिजिटल पारदर्शिता। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। राज्यपाल: वैकल्पिक निर्धारक।
Conclusion
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jp Singh
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