Article 182 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 16:19:22
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 182
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 182
अनुच्छेद 182 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह विधान परिषद का सभापति और उपसभापति (The Chairman and Deputy Chairman of the Legislative Council) से संबंधित है। यह प्रावधान विधान परिषद में सभापति और उपसभापति के पदों, उनकी नियुक्ति, और भूमिकाओं को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 182 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार: "जिस राज्य में विधान परिषद हो, वह अपने सदस्यों में से एक को अपना सभापति और एक को उपसभापति चुनेगी, और जब भी सभापति या उपसभापति का पद रिक्त हो, वह एक नया सभापति या उपसभापति, जैसा कि मामला हो, चुनेगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 182 उन राज्यों में, जहाँ विधान परिषद मौजूद है, अपने सभापति और उपसभापति चुनने का अधिकार देता है। यह सुनिश्चित करता है कि विधान परिषद की कार्यवाही सुचारु, निष्पक्ष, और व्यवस्थित रूप से संचालित हो। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में विधानमंडल की स्वायत्तता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 63 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधान परिषदों में सभापति और उपसभापति के चयन की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ लॉर्ड्स के लॉर्ड चांसलर की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधान परिषद में स्वायत्त और निष्पक्ष नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 89 (राज्यसभा के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: सभापति और उपसभापति विधान परिषद की कार्यवाही को निष्पक्षता और गरिमा के साथ संचालित करते हैं।
3. अनुच्छेद 182 के प्रमुख तत्व: सभापति और उपसभापति की नियुक्ति: विधान परिषद अपने सदस्यों में से एक को सभापति और एक को उपसभापति चुनती है। यह चुनाव विधान परिषद की स्वायत्तता को दर्शाता है। पद रिक्त होने पर: जब सभापति या उपसभापति का पद रिक्त होता है, विधान परिषद नया सभापति या उपसभापति चुनती है। उदाहरण: 2025 में, बिहार विधान परिषद ने अपने सदस्यों में से नए सभापति की नियुक्ति की।
4. महत्व: निष्पक्ष संचालन: सभापति कार्यवाही को निष्पक्ष और व्यवस्थित रखता है। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधान परिषद की स्वायत्तता और आत्म-नियंत्रण। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। निरंतरता: रिक्ति पर त्वरित नियुक्ति।
5. प्रमुख विशेषताएँ: चुनाव: विधान परिषद के सदस्यों द्वारा। सभापति: कार्यवाही का संचालक। उपसभापति: सहायक भूमिका। रिक्ति: त्वरित पूर्ति।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों में सभापतियों और उपसभापतियों का नियमित चुनाव। 1990 के दशक: विवादास्पद नियुक्तियों पर चर्चा। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में सभापति की कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक पक्षपात: सभापति की निष्पक्षता पर सवाल। नियुक्ति विवाद: सत्तारूढ़ दल का प्रभाव। न्यायिक समीक्षा: सभापति के निर्णयों पर कोर्ट की जांच।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। किहोतो होलोहान (1992): सभापति की भूमिका और अयोग्यता पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, सभापतियों की निष्पक्षता पर चर्चा। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच सभापति की नियुक्ति पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 181: सभापति और उपसभापति की अनुपस्थिति में कर्तव्य। अनुच्छेद 183: सभापति और उपसभापति का त्यागपत्र। अनुच्छेद 89: राज्यसभा के लिए समान प्रावधान।
11. विशेष तथ्य: स्वायत्तता: विधान परिषद का चुनाव। 2025 रिकॉर्ड: डिजिटल कार्यवाही। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। निष्पक्षता: सभापति की भूमिका।
Conclusion
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jp Singh
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