Article 178 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 16:11:35
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 178
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 178
अनुच्छेद 178 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह विधानसभा का अध्यक्ष और उपाध्यक्ष (The Speaker and Deputy Speaker of the Legislative Assembly) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानसभा में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों, उनकी नियुक्ति, और भूमिकाओं को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 178 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"प्रत्येक राज्य की विधानसभा अपने सदस्यों में से एक को अपना अध्यक्ष और एक को उपाध्यक्ष चुनेगी, और जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त हो, वह एक नया अध्यक्ष या उपाध्यक्ष, जैसा कि मामला हो, चुनेगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 178 प्रत्येक राज्य की विधानसभा को अपने अध्यक्ष और उपाध्यक्ष चुनने का अधिकार देता है। यह सुनिश्चित करता है कि विधानसभा की कार्यवाही सुचारु, निष्पक्ष, और व्यवस्थित रूप से संचालित हो। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में विधानमंडल की स्वायत्तता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 63 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानसभाओं में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चयन की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में हाउस ऑफ कॉमन्स के स्पीकर की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानसभा में स्वायत्त और निष्पक्ष नेतृत्व सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 93 (लोकसभा के लिए) के समानांतर है। प्रासंगिकता: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष विधानसभा की कार्यवाही को निष्पक्षता और गरिमा के साथ संचालित करते हैं।
3. अनुच्छेद 178 के प्रमुख तत्व: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति: विधानसभा अपने सदस्यों में से एक को अध्यक्ष और एक को उपाध्यक्ष चुनती है। यह चुनाव विधानसभा की स्वायत्तता को दर्शाता है। पद रिक्त होने पर: जब भी अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होता है, विधानसभा नया अध्यक्ष या उपाध्यक्ष चुनती है। उदाहरण: 2025 में, उत्तर प्रदेश विधानसभा ने अपने सदस्यों में से नए अध्यक्ष की नियुक्ति की।
4. महत्व: निष्पक्ष संचालन: अध्यक्ष कार्यवाही को निष्पक्ष और व्यवस्थित रखता है। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानसभा की स्वायत्तता और आत्म-नियंत्रण। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। निरंतरता: रिक्ति पर त्वरित नियुक्ति।
5. प्रमुख विशेषताएँ: चुनाव: विधानसभा के सदस्यों द्वारा। अध्यक्ष: कार्यवाही का संचालक। उपाध्यक्ष: सहायक भूमिका। रिक्ति: त्वरित पूर्ति।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों में अध्यक्षों और उपाध्यक्षों का नियमित चुनाव। 1990 के दशक: विवादास्पद नियुक्तियों पर चर्चा। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में अध्यक्ष की कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक पक्षपात: अध्यक्ष की निष्पक्षता पर सवाल। नियुक्ति विवाद: सत्तारूढ़ दल का प्रभाव। न्यायिक समीक्षा: अध्यक्ष के निर्णयों पर कोर्ट की जांच।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। किहोतो होलोहान (1992): अध्यक्ष की भूमिका और अयोग्यता पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, अध्यक्षों की निष्पक्षता पर चर्चा। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच अध्यक्ष की नियुक्ति पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 93: लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष। अनुच्छेद 179: अध्यक्ष और उपाध्यक्ष का त्यागपत्र। अनुच्छेद 180: अध्यक्ष की अनुपस्थिति में कर्तव्य।
11. विशेष तथ्य: स्वायत्तता: विधानसभा का चुनाव। 2025 रिकॉर्ड: डिजिटल कार्यवाही। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। निष्पक्षता: अध्यक्ष की भूमिका।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781