Article 177 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 16:10:00
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 177
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 177
अनुच्छेद 177 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह मंत्रियों और महाधिवक्ता के अधिकार (Rights of Ministers and Advocate-General as respects the Houses) से संबंधित है। यह प्रावधान मंत्रियों और महाधिवक्ता को विधानमंडल के सदनों में भाग लेने और बोलने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 177 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"प्रत्येक मंत्री और राज्य का महाधिवक्ता, विधानमंडल के सदन या, यदि विधान परिषद हो तो दोनों सदनों में, बोलने और उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार रखेगा, परंतु वह उस सदन में मत देने का हकदार नहीं होगा, जिसका वह सदस्य नहीं है।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 177 मंत्रियों और महाधिवक्ता को राज्य विधानमंडल (विधानसभा और, यदि लागू हो, विधान परिषद) में बोलने और कार्यवाहियों में भाग लेने की अनुमति देता है, भले ही वे उस सदन के सदस्य न हों। यह सुनिश्चित करता है कि सरकार के नीतिगत और कानूनी मामलों पर प्रभावी संवाद हो। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में प्रशासकीय और कानूनी समन्वय को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जो मंत्रियों और कानूनी सलाहकारों को प्रांतीय विधानमंडल में भाग लेने की अनुमति देता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में मंत्रियों और कानूनी सलाहकारों की भूमिका को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, मंत्रियों और महाधिवक्ता को विधानमंडल में प्रभावी प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए यह प्रावधान बनाया गया, जो केंद्र में अनुच्छेद 88 के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान सरकार और विधानमंडल के बीच संवाद को सुगम बनाता है, खासकर उन मामलों में जहाँ मंत्री या महाधिवक्ता सदन के सदस्य नहीं हैं।
3. अनुच्छेद 177 के प्रमुख तत्व: बोलने का अधिकार: प्रत्येक मंत्री और महाधिवक्ता को विधानमंडल के सदन या दोनों सदनों में बोलने और कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार है। यह अधिकार उन्हें नीतियों और कानूनी मामलों पर चर्चा करने की अनुमति देता है। मतदान का प्रतिबंध: वे उस सदन में मत नहीं दे सकते, जिसके वे सदस्य नहीं हैं। यह सुनिश्चित करता है कि केवल निर्वाचित या मनोनीत सदस्य ही मतदान करें। उदाहरण: यदि कोई मंत्री विधान परिषद का सदस्य है, तो वह विधानसभा में बोल सकता है, लेकिन मत नहीं दे सकता।
4. महत्व: प्रशासकीय समन्वय: मंत्रियों का नीतियों पर स्पष्टीकरण। कानूनी विशेषज्ञता: महाधिवक्ता का विधायी चर्चा में योगदान। लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानमंडल के समक्ष सरकार की जवाबदेही। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: बोलने का अधिकार: मंत्रियों और महाधिवक्ता। मतदान प्रतिबंध: गैर-सदस्य। समन्वय: सरकार और विधानमंडल। जवाबदेही: नीतिगत चर्चा।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: मंत्रियों ने गैर-सदस्य सदनों में नीतियों का बचाव किया। 1990 के दशक: महाधिवक्ता ने विधेयकों पर कानूनी राय दी। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में चर्चा का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक प्रभाव: मंत्रियों के संबोधन में पक्षपात की आलोचना। महाधिवक्ता की भूमिका: कानूनी सलाह में स्वतंत्रता पर सवाल। न्यायिक समीक्षा: कार्यवाहियों की वैधता पर कोर्ट की जांच।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई (1994): विधानमंडल और कार्यपालिका की भूमिका।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, डिजिटल और पर्यावरण नीतियों पर चर्चा।
प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत कार्यवाहियों का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच नीतिगत चर्चा पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 88: संसद में मंत्रियों और महान्यायवादी का अधिकार। अनुच्छेद 164: मंत्रियों की नियुक्ति। अनुच्छेद 165: महाधिवक्ता की नियुक्ति।
11. विशेष तथ्य: गैर-सदस्य: बोलने का अधिकार। 2025 चर्चा: डिजिटल रिकॉर्ड। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। जवाबदेही: नीतिगत स्पष्टीकरण।
Conclusion
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jp Singh
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