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Article 175 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 16:05:57
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 175

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 175
अनुच्छेद 175 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्यपाल का विधानमंडल में संबोधन और संदेश का अधिकार (Right of Governor to address and send messages to the House or Houses) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को विधानमंडल को संबोधित करने और संदेश भेजने की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 175 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) राज्यपाल, समय-समय पर, विधानमंडल के सदन या दोनों सदनों को, जैसा कि मामला हो, संबोधित कर सकता है और इस प्रयोजन के लिए सदन या दोनों सदनों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकता है।
(2) राज्यपाल, विधानमंडल के सदन या दोनों सदनों को, जैसा कि मामला हो, संदेश भेज सकता है, चाहे वह किसी विधेयक के संबंध में हो या अन्यथा, और जिस सदन को ऐसा संदेश भेजा गया हो, वह उस संदेश में उल्लिखित किसी भी मामले पर यथाशीघ्र विचार करेगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 175 राज्यपाल को विधानमंडल (विधानसभा और, यदि लागू हो, विधान परिषद) को संबोधित करने और संदेश भेजने की शक्ति देता है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्यपाल, संवैधानिक प्रमुख के रूप में, विधानमंडल के साथ संवाद कर सके और महत्वपूर्ण मामलों पर अपनी राय या सुझाव व्यक्त कर सके। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक समन्वय, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य संबंधों को मजबूत करना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 63 से प्रेरित है, जो प्रांतीय गवर्नर को विधानमंडल में संबोधन और संदेश भेजने की शक्ति देता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संवैधानिक प्रमुख (जैसे, सम्राट) के संबोधन की परंपरा को दर्शाता है।
भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, राज्यपाल को विधानमंडल के साथ संवाद का औपचारिक माध्यम दिया गया, जो केंद्र में राष्ट्रपति की शक्तियों (अनुच्छेद 86) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यपाल को नीतिगत और विधायी मामलों में मार्गदर्शन प्रदान करने का अवसर देता है।
3. अनुच्छेद 175 के प्रमुख तत्व: खंड (1): संबोधन का अधिकार: संबोधन: राज्यपाल विधानमंडल (विधानसभा या दोनों सदनों) को समय-समय पर संबोधित कर सकता है। वह इसके लिए सदन की उपस्थिति की माँग कर सकता है। उदाहरण: प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र में राज्यपाल का संबोधन, जिसमें सरकार की नीतियाँ और योजनाएँ प्रस्तुत की जाती हैं।
खंड (2): संदेश का अधिकार: संदेश: राज्यपाल विधानमंडल को संदेश भेज सकता है, जो किसी विधेयक या अन्य मामले से संबंधित हो सकता है। सदन को संदेश में उल्लिखित मामले पर यथाशीघ्र विचार करना होगा। उदाहरण: राज्यपाल द्वारा किसी विवादास्पद विधेयक पर सुझाव भेजना।
4. महत्व: संवैधानिक समन्वय: राज्यपाल और विधानमंडल के बीच संवाद। लोकतांत्रिक जवाबदेही: नीतिगत मामलों पर मार्गदर्शन। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन। पारदर्शिता: विधानमंडल को महत्वपूर्ण मामलों पर सूचित करना।
5. प्रमुख विशेषताएँ: संबोधन: नीतिगत मार्गदर्शन। संदेश: विधेयक या अन्य मामले। उपस्थिति: सदन की माँग। जवाबदेही: यथाशीघ्र विचार।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यपालों ने प्रथम सत्र में नीतिगत संबोधन किए। 1990 के दशक: विवादास्पद विधेयकों पर संदेश। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में संबोधन और संदेश का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राज्यपाल का स्वविवेक: संदेशों में केंद्र के प्रभाव की आलोचना। राजनीतिक दुरुपयोग: संबोधन में राजनीतिक एजेंडा। न्यायिक समीक्षा: संदेशों की वैधता पर कोर्ट की जांच।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई (1994): राज्यपाल की भूमिका पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, डिजिटल और पर्यावरण नीतियों पर संबोधन। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत संबोधन और संदेश का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच संबोधन और संदेश पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 86: राष्ट्रपति का संसद में संबोधन। अनुच्छेद 174: सत्र और विघटन। अनुच्छेद 200: विधेयकों पर राज्यपाल की शक्ति।
11. विशेष तथ्य: संबोधन: वार्षिक नीतिगत बयान। 2025 रिकॉर्ड: डिजिटल संग्रह। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। संदेश: विधायी मार्गदर्शन।
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