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Article 174 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 16:04:00
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 174

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 174
अनुच्छेद 174 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्य विधानमंडल के सत्र, सत्रावसान, और विघटन (Sessions of the State Legislature, prorogation and dissolution) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को विधानमंडल के सत्र बुलाने, सत्रावसान करने, और विधानसभा को विघटित करने की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 174 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) राज्यपाल समय-समय पर विधानमंडल के सत्र बुलाएगा और उसका सत्रावसान करेगा, और वह विधानसभा को विघटित कर सकता है।
(2) खंड (1) के उपबंधों के अधीन, राज्यपाल यह सुनिश्चित करेगा कि विधानमंडल के एक सत्र और अगले सत्र की प्रथम बैठक के बीच छह मास से अधिक का अंतराल न हो।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 174 राज्यपाल को विधानमंडल के सत्रों को बुलाने, सत्रावसान करने, और विधानसभा को विघटित करने की शक्ति देता है। यह सुनिश्चित करता है कि विधानमंडल नियमित रूप से सत्र आयोजित करे ताकि लोकतांत्रिक जवाबदेही और प्रशासकीय कार्यवाही बनी रहे। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में राज्यों की विधायी प्रक्रिया को सुचारु करना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 62 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों के सत्र और विघटन को नियंत्रित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में सत्र बुलाने और विघटन की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, राज्यपाल को संवैधानिक प्रमुख के रूप में विधानमंडल की कार्यवाही को नियंत्रित करने की शक्ति दी गई। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधानमंडल की नियमित कार्यवाही और लोकतांत्रिक जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
3. अनुच्छेद 174 के प्रमुख तत्व: खंड (1): सत्र, सत्रावसान, और विघटन: सत्र बुलाना: राज्यपाल समय-समय पर विधानमंडल (विधानसभा और, यदि लागू हो, विधान परिषद) के सत्र बुलाता है। सत्रावसान: राज्यपाल सत्र को समाप्त (सत्रावसान) कर सकता है। विघटन: राज्यपाल विधानसभा को विघटित कर सकता है (विधान परिषद को विघटित नहीं किया जा सकता, अनुच्छेद 172)। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र विधानसभा का सत्र राज्यपाल द्वारा बुलाया गया।
खंड (2): छह मास का अंतराल: राज्यपाल को यह सुनिश्चित करना होगा कि विधानमंडल के एक सत्र की समाप्ति और अगले सत्र की प्रथम बैठक के बीच छह मास से अधिक का अंतराल न हो। यह नियमित सत्र सुनिश्चित करता है। उदाहरण: यदि मार्च 2025 में सत्र समाप्त होता है, तो सितंबर 2025 तक नया सत्र शुरू होना चाहिए।
4. महत्व: लोकतांत्रिक जवाबदेही: नियमित सत्रों से विधानमंडल की सक्रियता। संवैधानिक ढांचा: राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका। संघीय ढांचा: राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र के साथ समन्वय। निरंतरता: छह मास का नियम कार्यवाही में निरंतरता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: सत्र: राज्यपाल द्वारा बुलाए जाते हैं। सत्रावसान: सत्र की समाप्ति। विघटन: केवल विधानसभा। छह मास: अधिकतम अंतराल।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1970-80 के दशक: कई राज्यों में विधानसभाओं का समय-पूर्व विघटन। 1990 के दशक: सत्रों के नियमित आयोजन पर जोर। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में सत्रों का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राज्यपाल का स्वविवेक: विघटन और सत्र बुलाने में केंद्र के प्रभाव की आलोचना। छह मास का नियम: नियम का उल्लंघन होने पर विवाद। न्यायिक हस्तक्षेप: विघटन और सत्र बुलाने पर कोर्ट की समीक्षा।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई (1994): विधानसभा विघटन और राज्यपाल की भूमिका।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, सत्रों का नियमित आयोजन। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत सत्रों और विघटन का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच विघटन और सत्रों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 172: विधानमंडल का कार्यकाल। अनुच्छेद 174: सत्र और विघटन। अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन।
11. विशेष तथ्य: छह मास: नियमित सत्र। 2025 सत्र: डिजिटल रिकॉर्ड। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। विघटन: केवल विधानसभा।
Conclusion
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