Article 173 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 16:01:49
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 173
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 173
अनुच्छेद 173 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्य विधानमंडल के सदस्यों की योग्यता (Qualification for membership of the State Legislature) से संबंधित है। यह प्रावधान विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए आवश्यक योग्यताओं को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 173 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"कोई व्यक्ति किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य चुने जाने का पात्र तभी होगा, जब वह:
(क) भारत का नागरिक हो
(ख) विधानसभा के लिए चुने जाने के मामले में कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का हो और विधान परिषद के लिए चुने जाने के मामले में कम से कम तीस वर्ष की आयु का हो;
(ग) ऐसी अन्य योग्यताओं को पूरा करता हो, जो इस संविधान या संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन निर्धारित की गई हों।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 173 राज्य विधानमंडल (विधानसभा और विधान परिषद) के सदस्यों के लिए न्यूनतम योग्यताएँ निर्धारित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि केवल योग्य और जिम्मेदार व्यक्ति ही विधायी प्रक्रिया में भाग लें। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में राज्यों की विधायी प्रक्रिया की गरिमा को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 63 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडल के सदस्यों की योग्यताएँ निर्धारित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में संसद सदस्यों की योग्यताओं की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानमंडल के सदस्यों के लिए स्पष्ट और एकसमान योग्यताएँ स्थापित की गईं, जो केंद्र (लोकसभा और राज्यसभा) के लिए अनुच्छेद 84 के समानांतर हैं। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधायी प्रक्रिया में योग्यता और निष्पक्षता सुनिश्चित करता है।
3. अनुच्छेद 173 के प्रमुख तत्व: खंड (क): नागरिकता: व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि केवल भारतीय नागरिक ही विधानमंडल में प्रतिनिधित्व करें। उदाहरण: विदेशी नागरिक या दोहरी नागरिकता वाला व्यक्ति पात्र नहीं।
खंड (ख): आयु: विधानसभा: न्यूनतम 25 वर्ष की आयु। विधान परिषद: न्यूनतम 30 वर्ष की आयु। यह आयु सीमा परिपक्वता और जिम्मेदारी सुनिश्चित करती है। उदाहरण: 2025 में, 25 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति विधानसभा के लिए अयोग्य।
खंड (ग): अन्य योग्यताएँ: व्यक्ति को संविधान या संसद द्वारा बनाए गए कानून (जैसे, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) के तहत निर्धारित अन्य योग्यताएँ पूरी करनी होंगी। इसमें निर्वाचक नामावली में पंजीकरण और अन्य शर्तें शामिल हैं। उदाहरण: उम्मीदवार का नाम राज्य की मतदाता सूची में होना चाहिए।
4. महत्व: लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व: केवल योग्य व्यक्ति ही विधायी प्रक्रिया में भाग लें। संवैधानिक जवाबदेही: नागरिकता और आयु की शर्तें। संघीय ढांचा: राज्यों की स्वायत्तता के साथ एकरूपता। निष्पक्षता: विधायी प्रक्रिया में योग्यता सुनिश्चित।
5. प्रमुख विशेषताएँ: नागरिकता: भारत का नागरिक। आयु: 25 (विधानसभा), 30 (परिषद)। अन्य योग्यताएँ: संसद के कानून। जवाबदेही: संवैधानिक ढांचा।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: विधानमंडल के लिए योग्यता के आधार पर निर्वाचन। 1980-90 के दशक: अयोग्यता मामलों में न्यायिक समीक्षा। 2025 स्थिति: जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत योग्यताएँ लागू।
7. चुनौतियाँ और विवाद: अयोग्यता: अनुच्छेद 191 के तहत अयोग्यता पर विवाद। नागरिकता विवाद: दोहरी नागरिकता के मामलों में चुनौतियाँ। न्यायिक हस्तक्षेप: योग्यता और अयोग्यता पर कोर्ट की समीक्षा।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। किहोतो होलोहान (1992): विधानमंडल की सदस्यता और अयोग्यता पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, विधानमंडल की सदस्यता पर सख्ती। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत योग्यता का डिजिटल सत्यापन। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच अयोग्यता पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 84: संसद सदस्यों की योग्यता। अनुच्छेद 191: अयोग्यता। जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951: अतिरिक्त योग्यताएँ।
11. विशेष तथ्य: आयु सीमा: 25 और 30 वर्ष। 2025 सत्यापन: डिजिटल रिकॉर्ड। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। नागरिकता: अनिवार्य शर्त।
Conclusion
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jp Singh
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