Article 172 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:59:40
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 172
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 172
अनुच्छेद 172 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्य विधानमंडल का कार्यकाल (Duration of State Legislatures) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्य विधानसभा और विधान परिषद के कार्यकाल, विघटन, और विस्तार को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 172 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) प्रत्येक राज्य की विधानसभा, जब तक कि वह शीघ्र विघटित न की जाए, अपने प्रथम अधिवेशन की प्रथम बैठक की तारीख से पाँच वर्ष तक बनी रहेगी और इसके पश्चात् नहीं; और विधानसभा का विघटन केवल इस खंड के अधीन ही प्रभावी होगा।
परंतु, उक्त पाँच वर्ष की अवधि को संसद कानून द्वारा बढ़ाया जा सकता है, जब तक कि आपातकाल की उद्घोषणा प्रभावी हो, जो उस राज्य में लागू हो।
(2) किसी राज्य की विधान परिषद को विघटित नहीं किया जाएगा, परंतु इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर अवकाश ग्रहण करेंगे, जैसा कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित हो।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 172 राज्य विधानसभा और विधान परिषद के कार्यकाल को परिभाषित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि विधानसभा का कार्यकाल निश्चित हो, लेकिन आपातकाल में विस्तार हो सकता है, और विधान परिषद स्थायी हो, जिसमें सदस्यों का चक्रीय अवकाश हो। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, निरंतरता, और संघीय ढांचे में राज्यों की विधायी स्थिरता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 62 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों के कार्यकाल को परिभाषित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में निचले और ऊपरी सदनों के कार्यकाल की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, विधानसभाओं को निश्चित कार्यकाल और विधान परिषदों को स्थायी ढांचा दिया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान लोकतांत्रिक जवाबदेही (निश्चित कार्यकाल) और विधायी स्थिरता (चक्रीय अवकाश) के बीच संतुलन बनाता है।
3. अनुच्छेद 172 के प्रमुख तत्व: खंड (1): विधानसभा का कार्यकाल: अवधि: विधानसभा का कार्यकाल पाँच वर्ष है, जो इसके प्रथम अधिवेशन की प्रथम बैठक की तारीख से शुरू होता है। विघटन: विधानसभा को समय से पहले विघटित किया जा सकता है (राज्यपाल द्वारा, मंत्रिपरिषद की सलाह पर)। विस्तार: आपातकाल के दौरान, संसद कानून द्वारा कार्यकाल बढ़ा सकती है। उदाहरण: 1975 के आपातकाल में कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया गया।
खंड (2): विधान परिषद का कार्यकाल: स्थायी प्रकृति: विधान परिषद को विघटित नहीं किया जा सकता। चक्रीय अवकाश: इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक द्वितीय वर्ष में अवकाश ग्रहण करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि परिषद में निरंतरता बनी रहे। संसद की शक्ति: अवकाश का तरीका संसद द्वारा कानून (जैसे, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) से निर्धारित। उदाहरण: उत्तर प्रदेश विधान परिषद में हर दो साल में एक-तिहाई सदस्य बदलते हैं।
4. महत्व: लोकतांत्रिक जवाबदेही: विधानसभा का निश्चित कार्यकाल जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करता है। निरंतरता: विधान परिषद की स्थायी प्रकृति विधायी स्थिरता देती है। संघीय ढांचा: राज्यों की स्वायत्तता और केंद्र की भूमिका। आपातकालीन लचीलापन: कार्यकाल विस्तार की सुविधा।
5. प्रमुख विशेषताएँ: पाँच वर्ष: विधानसभा का कार्यकाल। विघटन: समय से पहले संभव। स्थायी: विधान परिषद। चक्रीय अवकाश: एक-तिहाई सदस्य।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1975 आपातकाल: कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया गया। 1980-90 के दशक: विधानसभाओं का समय-पूर्व विघटन। 2025 स्थिति: 7 राज्यों में विधान परिषद की चक्रीय प्रणाली।
7. चुनौतियाँ और विवाद: विघटन पर विवाद: राज्यपाल द्वारा समय-पूर्व विघटन पर केंद्र का प्रभाव। आपातकालीन विस्तार: कार्यकाल विस्तार की संवैधानिक वैधता। चक्रीय अवकाश: विधान परिषद की प्रासंगिकता पर बहस।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई (1994): विधानसभा विघटन और राज्यपाल की भूमिका।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, विधान परिषद की प्रासंगिकता पर बहस। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत कार्यकाल और विघटन का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच विघटन और परिषद पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 168: विधानमंडल की संरचना। अनुच्छेद 169: परिषद का निर्माण/समाप्ति। अनुच्छेद 171: परिषद की संरचना।
11. विशेष तथ्य: 7 राज्य: द्विसदनीय (2025)। 1975: आपातकाल में विस्तार। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। चक्रीय अवकाश: स्थिरता।
Conclusion
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