Article 171 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:57:44
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 171
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 171
अनुच्छेद 171 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्य विधान परिषद की संरचना (Composition of the Legislative Councils) से संबंधित है। यह प्रावधान उन राज्यों में विधान परिषद की सदस्य संख्या, निर्वाचन प्रक्रिया, और मनोनीत सदस्यों को परिभाषित करता है, जहाँ द्विसदनीय विधानमंडल मौजूद है।
अनुच्छेद 171 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) किसी राज्य की विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या उस राज्य की विधानसभा की कुल सदस्य संख्या के एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी, परंतु किसी भी स्थिति में यह 40 से कम नहीं होगी।
(2) विधान परिषद की संरचना इस प्रकार होगी:
(क) जितने सदस्यों की संख्या कुल सदस्यों की एक-तिहाई होगी, वे स्थानीय प्राधिकरणों, जैसे नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों, और अन्य प्राधिकरणों से निर्वाचित होंगे, जैसा कि संसद कानून द्वारा निर्धारित करे।
(ख) जितने सदस्यों की संख्या कुल सदस्यों की एक-बारहवीं होगी, वे स्नातकों द्वारा निर्वाचित होंगे, जो कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हों और उस राज्य में निवास करते हों।
(ग) जितने सदस्यों की संख्या कुल सदस्यों की एक-बारहवीं होगी, वे माध्यमिक विद्यालयों या उच्चतर स्तर पर शिक्षण कार्य में लगे व्यक्तियों द्वारा निर्वाचित होंगे।
(घ) जितने सदस्यों की संख्या कुल सदस्यों की एक-तिहाई होगी, वे उस राज्य की विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित होंगे।
(ङ) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा मनोनीत किए जाएंगे, जो साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता आंदोलन, और सामाजिक सेवा जैसे क्षेत्रों में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले व्यक्ति होंगे।
(3) इस अनुच्छेद के खंड (2) के उपखंड (क), (ख), और (ग) के अधीन निर्वाचन और खंड (2) के उपखंड (ङ) के अधीन मनोनयन का तरीका और अन्य विवरण संसद द्वारा कानून बनाकर निर्धारित किए जाएंगे।
(4) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन, विधान परिषद के सदस्यों का निर्वाचन और मनोनयन उस समय प्रभावी कानूनों और नियमों के अनुसार होगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 171 उन राज्यों में विधान परिषद की संरचना, सदस्यों की संख्या, और उनके चयन की प्रक्रिया को परिभाषित करता है, जहाँ द्विसदनीय विधानमंडल मौजूद है। यह सुनिश्चित करता है कि विधान परिषद में विविध प्रतिनिधित्व हो, जिसमें स्थानीय प्राधिकरण, स्नातक, शिक्षक, विधानसभा, और विशेषज्ञ शामिल हों। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, विशेषज्ञ प्रतिनिधित्व, और संघीय ढांचे में राज्यों की स्वायत्तता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 61 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधान परिषदों की संरचना को परिभाषित करता था। यह ब्रिटिश प्रणाली में ऊपरी सदन (House of Lords) की तरह विशेषज्ञ और विविध प्रतिनिधित्व की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, कुछ राज्यों में विधान परिषद को बनाए रखा गया ताकि विशेषज्ञता और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व सुनिश्चित हो। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विधान परिषद को विधानसभा के पूरक के रूप में स्थापित करता है, जो विधायी प्रक्रिया में संतुलन और विशेषज्ञता लाता है।
3. अनुच्छेद 171 के प्रमुख तत्व: खंड (1): सदस्यों की संख्या: सीमा: विधान परिषद की कुल सदस्य संख्या विधानसभा की एक-तिहाई से अधिक नहीं होगी। न्यूनतम संख्या 40 होगी। उदाहरण: उत्तर प्रदेश विधानसभा में 403 सदस्य, इसलिए विधान परिषद में अधिकतम 134 सदस्य।
खंड (2): संरचना:
वर्गीकरण: (क) एक-तिहाई: स्थानीय प्राधिकरणों (नगरपालिका, जिला बोर्ड) से निर्वाचित।
(ख) एक-बारहवीं: स्नातकों द्वारा निर्वाचित।
(ग) एक-बारहवीं: शिक्षकों द्वारा निर्वाचित।
(घ) एक-तिहाई: विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित।
(ङ) शेष: राज्यपाल द्वारा मनोनीत (साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारिता, सामाजिक सेवा में विशेषज्ञता)।
उदाहरण: महाराष्ट्र विधान परिषद में साहित्यकारों और वैज्ञानिकों का मनोनयन।
खंड (3): निर्वाचन और मनोनयन का तरीका: संसद की शक्ति: निर्वाचन और मनोनयन का तरीका संसद द्वारा कानून (जैसे, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) से निर्धारित। उदाहरण: स्नातक और शिक्षक निर्वाचन क्षेत्रों में आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली।
खंड (4): लागू कानून: निर्वाचन और मनोनयन वर्तमान में प्रभावी कानूनों और नियमों के अनुसार। उदाहरण: 2025 में, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत निर्वाचन।
4. महत्व: विविध प्रतिनिधित्व: स्थानीय, शैक्षिक, और विशेषज्ञ समुदायों की भागीदारी। लोकतांत्रिक संतुलन: विधानसभा के साथ पूरक भूमिका। संघीय ढांचा: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। विशेषज्ञता: मनोनीत सदस्यों के माध्यम से।
5. प्रमुख विशेषताएँ: सीमा: एक-तिहाई, न्यूनतम 40। संरचना: निर्वाचित और मनोनीत। संसद की शक्ति: निर्वाचन नियम। विविधता: स्नातक, शिक्षक, विशेषज्ञ।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: बिहार, उत्तर प्रदेश में विधान परिषद की स्थापना। 1987: आंध्र प्रदेश में परिषद समाप्त। 2025 स्थिति: 7 राज्य (उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर) में परिषद।
7. चुनौतियाँ और विवाद: प्रासंगिकता: विधान परिषद को वित्तीय बोझ माना जाना। मनोनयन: राज्यपाल के मनोनयन में राजनीतिक हस्तक्षेप। केंद्र-राज्य तनाव: संसद के नियमों पर विवाद।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। किहोतो होलोहान (1992): विधान परिषद की संरचना पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, विधान परिषद की प्रासंगिकता पर बहस। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत परिषद की कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच परिषद की उपयोगिता पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 168: विधानमंडल की संरचना। अनुच्छेद 169: परिषद का निर्माण/समाप्ति। अनुच्छेद 172: कार्यकाल।
11. विशेष तथ्य: 7 राज्य: द्विसदनीय (2025)। मनोनयन: विशेषज्ञता। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। संसद: निर्वाचन नियम।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781