Article 168 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:50:22
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 168
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 168
अनुच्छेद 168 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय III (राज्य का विधानमंडल) में आता है। यह राज्य के विधानमंडल की संरचना (Constitution of Legislatures in States) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यों में विधानमंडल की संरचना और इसके गठन को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 168 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) इस भाग के अधीन प्रत्येक राज्य के लिए एक विधानमंडल होगा, जो राज्यपाल और—
(क) उन राज्यों के लिए, जिनमें विधान परिषद न हो, केवल विधानसभा से, और
(ख) अन्य राज्यों के लिए, विधानसभा और विधान परिषद से मिलकर बनेगा।
(2) जहाँ किसी राज्य में विधान परिषद हो, वहाँ उसकी संरचना इस संविधान के उपबंधों के अनुसार होगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 168 प्रत्येक राज्य में विधानमंडल की स्थापना और संरचना को परिभाषित करता है। यह स्पष्ट करता है कि कुछ राज्यों में एकसदनीय (केवल विधानसभा) और कुछ में द्विसदनीय (विधानसभा और विधान परिषद) विधानमंडल होगा। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक ढांचा, और संघीय व्यवस्था में राज्यों की विधायी स्वायत्तता को सुनिश्चित करना है
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 60 से प्रेरित है, जो प्रांतीय विधानमंडलों की संरचना को परिभाषित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में एकसदनीय और द्विसदनीय विधानमंडलों की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, राज्यों को विधायी स्वायत्तता दी गई, और कुछ राज्यों में द्विसदनीय व्यवस्था को बनाए रखा गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यों में विधायी प्रक्रिया को औपचारिक रूप देता है और केंद्र-राज्य संबंधों में संतुलन बनाए रखता है।
3. अनुच्छेद 168 के प्रमुख तत्व: खंड (1): विधानमंडल की संरचना: प्रत्येक राज्य का विधानमंडल निम्नलिखित से मिलकर बनेगा: राज्यपाल: संवैधानिक प्रमुख के रूप में। (क): जहाँ केवल विधानसभा हो (एकसदनीय व्यवस्था)। (ख): जहाँ विधानसभा और विधान परिषद दोनों हों (द्विसदनीय व्यवस्था)। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र, कर्नाटक, और उत्तर प्रदेश में द्विसदनीय विधानमंडल, जबकि राजस्थान और गुजरात में एकसदनीय।
खंड (2): विधान परिषद की संरचना: जहाँ विधान परिषद हो, उसकी संरचना संविधान के उपबंधों (जैसे, अनुच्छेद 171) के अनुसार होगी। यह सुनिश्चित करता है कि विधान परिषद का गठन संवैधानिक नियमों के तहत हो। उदाहरण: विधान परिषद में निर्वाचित और मनोनीत सदस्य (अनुच्छेद 171)।
4. महत्व: लोकतांत्रिक शासन: विधानमंडल जनता की इच्छा का प्रतिनिधित्व करता है। संवैधानिक ढांचा: राज्यपाल और विधानमंडल का समन्वय। संघीय व्यवस्था: राज्यों की विधायी स्वायत्तता। विविधता: एकसदनीय और द्विसदनीय व्यवस्था का लचीलापन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: विधानमंडल: राज्यपाल और विधानसभा/परिषद। एकसदनीय: केवल विधानसभा। द्विसदनीय: विधानसभा और परिषद। संरचना: संविधान के उपबंध।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: कई राज्यों में एकसदनीय व्यवस्था अपनाई गई। 1960-70 के दशक: कुछ राज्यों में विधान परिषद समाप्त। 2025 स्थिति: 7 राज्य (उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, जम्मू-कश्मीर) में द्विसदनीय व्यवस्था।
7. चुनौतियाँ और विवाद: द्विसदनीय व्यवस्था की प्रासंगिकता: विधान परिषद की उपयोगिता पर बहस। केंद्र-राज्य तनाव: विधान परिषद के गठन/समाप्ति पर केंद्र का प्रभाव। प्रतिनिधित्व: विधान परिषद में मनोनीत सदस्यों की भूमिका।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। किहोतो होलोहान (1992): विधानमंडल की संरचना और शक्तियों पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, कुछ राज्यों में विधान परिषद समाप्त करने की माँग। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत विधानमंडल की कार्यवाही का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच विधान परिषद पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 169: विधान परिषद का निर्माण और समाप्ति। अनुच्छेद 171: विधान परिषद की संरचना। अनुच्छेद 172: विधानमंडल का कार्यकाल।
11. विशेष तथ्य: 7 राज्य: द्विसदनीय व्यवस्था (2025)। 2025 बहस: विधान परिषद की प्रासंगिकता। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। लोकतंत्र: विधानमंडल की भूमिका।
Conclusion
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jp Singh
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