Article 165 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:44:43
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 165
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 165
अनुच्छेद 165 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय II (कार्यपालिका) में आता है। यह महाधिवक्ता (एडवोकेट जनरल) (Advocate-General for the State) से संबंधित है। यह प्रावधान प्रत्येक राज्य में महाधिवक्ता की नियुक्ति, कर्तव्यों, और सेवा शर्तों को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 165 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) राज्यपाल प्रत्येक राज्य के लिए एक महाधिवक्ता की नियुक्ति करेगा, जो भारत का नागरिक हो और जो उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिए योग्य हो, या जो कम से कम दस वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस कर चुका हो, या जो राज्यपाल की राय में एक प्रतिष्ठित विधिवेत्ता हो।
(2) महाधिवक्ता का यह कर्तव्य होगा कि वह राज्य सरकार को विधि और संवैधानिक मामलों में सलाह दे और ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे, जो राज्यपाल द्वारा उसे सौंपे जाएँ या इस संविधान के अंतर्गत उसे नियत किए जाएँ।
(3) महाधिवक्ता अपने पद को राज्यपाल के प्रसादपर्यंत (pleasure) धारण करेगा और उसे ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त होगा, जैसा कि राज्यपाल समय-समय पर निर्धारित करे।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 165 प्रत्येक राज्य में महाधिवक्ता की नियुक्ति की व्यवस्था करता है, जो राज्य सरकार को कानूनी और संवैधानिक मामलों में सलाह देता है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्य सरकार को कानूनी विशेषज्ञता उपलब्ध हो, ताकि वह संवैधानिक और विधायी ढांचे के भीतर कार्य कर सके। इसका लक्ष्य संवैधानिक शासन, कानूनी जवाबदेही, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य समन्वय को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 16 से प्रेरित है, जो प्रांतों में कानूनी सलाहकार की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश प्रणाली में एडवोकेट जनरल की भूमिका को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, महाधिवक्ता को राज्य सरकार का प्रमुख कानूनी सलाहकार बनाया गया, जो केंद्र में महान्यायवादी (अनुच्छेद 76) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यों को कानूनी और संवैधानिक मामलों में विशेषज्ञता प्रदान करता है, विशेष रूप से केंद्र-राज्य विवादों या न्यायिक मामलों में।
3. अनुच्छेद 165 के प्रमुख तत्व: खंड (1): नियुक्ति और योग्यता: नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा महाधिवक्ता की नियुक्ति की जाती है। योग्यता: भारत का नागरिक होना। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के लिए योग्य होना (अनुच्छेद 124 के तहत), या कम से कम 10 वर्ष तक किसी उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस, या प्रतिष्ठित विधिवेत्ता (राज्यपाल की राय में)। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र के महाधिवक्ता की नियुक्ति बॉम्बे उच्च न्यायालय के अनुभवी अधिवक्ता से।
खंड (2): कर्तव्य: महाधिवक्ता का कर्तव्य है: राज्य सरकार को कानूनी सलाह देना। संवैधानिक मामलों में सहायता करना। राज्यपाल द्वारा सौंपे गए अन्य कर्तव्यों का पालन करना। उदाहरण: केंद्र-राज्य
खंड (3): कार्यकाल और पारिश्रमिक: कार्यकाल: महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यंत (pleasure) तक पद पर रहता है। इसका अर्थ है कि राज्यपाल उसे किसी भी समय हटा सकता है। पारिश्रमिक: राज्यपाल द्वारा समय-समय पर निर्धारित। उदाहरण: 2025 में, महाधिवक्ता का पारिश्रमिक राज्य सरकार द्वारा निर्धारित।
4. महत्व: कानूनी विशेषज्ञता: राज्य सरकार को संवैधानिक और कानूनी मामलों में सलाह। संवैधानिक शासन: कानून के शासन को बनाए रखना। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य संबंधों में कानूनी समन्वय। न्यायिक प्रतिनिधित्व: उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय में राज्य का पक्ष।
5. प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा। योग्यता: नागरिकता, अनुभव, या प्रतिष्ठा। कर्तव्य: कानूनी सलाह और प्रतिनिधित्व। कार्यकाल: राज्यपाल के प्रसादपर्यंत।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों में महाधिवक्ताओं ने कानूनी मामलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 1980-90 के दशक: केंद्र-राज्य विवादों में महाधिवक्ता की भूमिका। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में कानूनी सलाह का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक नियुक्तियाँ: महाधिवक्ता की नियुक्ति में पक्षपात की आलोचना। केंद्र-राज्य तनाव: केंद्र के कानूनों और राज्य के हितों में टकराव। स्वतंत्रता: राज्यपाल के प्रसादपर्यंत कार्यकाल से स्वतंत्रता पर सवाल।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): महाधिवक्ता की भूमिका और स्वतंत्रता पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, महाधिवक्ताओं ने डिजिटल और पर्यावरण नीतियों पर सलाह दी। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत कानूनी सलाह का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच नियुक्ति और सलाह पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 76: महान्यायवादी (केंद्र)। अनुच्छेद 163: मंत्रिपरिषद की सलाह। अनुच्छेद 177: महाधिवक्ता के अधिकार।
11. विशेष तथ्य: योग्यता: 10 वर्ष की प्रैक्टिस। 2025 सलाह: डिजिटल और पर्यावरण। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा।
Conclusion
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