Article 164 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:42:37
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 164
अनुच्छेद 164 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय II (कार्यपालिका) में आता है। यह मंत्रिपरिषद की नियुक्ति और अन्य प्रावधान (Other provisions as to Ministers) से संबंधित है। यह प्रावधान मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति, शपथ, वेतन, और मंत्रिपरिषद की संरचना से संबंधित नियमों को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 164 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी, और मंत्री अपने पद ग्रहण की तारीख से तब तक अपने पद पर बने रहेंगे जब तक कि वे राज्यपाल के प्रसादपर्यंत (pleasure) बने रहें।
परंतु, कोई भी मंत्री जो लगातार छह मास की अवधि तक किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर अपना पद धारण करना बंद कर देगा।
(1क) [कुछ राज्यों के लिए विशेष प्रावधान, जैसे नगालैंड, मेघालय आदि के लिए मंत्रियों की संख्या पर सीमा।]
(2) मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से उस राज्य के विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होगी।
(3) कोई मंत्री अपने कर्तव्यों का कार्यभार ग्रहण करने से पहले, राज्यपाल के समक्ष इस संविधान की तीसरी अनुसूची में निर्धारित प्रपत्र में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा।
(4) [उप-खंड (1) में उल्लिखित छह मास की अवधि के संबंध में विशेष प्रावधान।]
(5) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होंगे जैसे कि उस राज्य का विधानमंडल समय-समय पर कानून द्वारा निर्धारित करे, और जब तक कि इस प्रकार निर्धारित न हो, तब तक वे इस संविधान की दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट होंगे।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 164 मंत्रिपरिषद की संरचना, नियुक्ति, शपथ, और जवाबदेही को परिभाषित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि मुख्यमंत्री और मंत्री लोकतांत्रिक रूप से विधानसभा के प्रति जवाबदेह हों। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक शासन, संवैधानिक जवाबदेही, और संघीय ढांचे में केंद्र-राज्य समन्वय को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51 से प्रेरित है, जो प्रांतीय मंत्रियों की नियुक्ति और जवाबदेही को परिभाषित करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में मंत्रियों की नियुक्ति और जवाबदेही की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, मंत्रिपरिषद को राज्यों में लोकतांत्रिक शासन का आधार बनाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यों में लोकतांत्रिक शासन को सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से विधानसभा के प्रति मंत्रिपरिषद की जवाबदेही के माध्यम से।
3. अनुच्छेद 164 के प्रमुख तत्व: खंड (1): नियुक्ति और कार्यकाल: मुख्यमंत्री की नियुक्ति: राज्यपाल द्वारा की जाती है। सामान्यतः, विधानसभा में बहुमत प्राप्त दल का नेता नियुक्त होता है। उदाहरण: 2025 में, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की नियुक्ति। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति: मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा। कार्यकाल: मंत्री राज्यपाल के प्रसादपर्यंत (pleasure) तक पद पर रहते हैं। यदि कोई मंत्री छह माह तक विधानमंडल का सदस्य नहीं बनता, तो वह पद छोड़ देगा। उदाहरण: गैर-निर्वाचित व्यक्ति को मंत्री नियुक्त किया जा सकता है, लेकिन उसे छह माह में विधानमंडल का सदस्य बनना होगा।
खंड (1क): विशेष प्रावधान: कुछ राज्यों (जैसे नगालैंड, मेघालय) में मंत्रियों की संख्या पर सीमा। यह छोटे राज्यों में प्रशासकीय दक्षता सुनिश्चित करता है।
खंड (2): सामूहिक जवाबदेही: मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से विधानसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। यह लोकतांत्रिक शासन का आधार है। उदाहरण: यदि मंत्रिपरिषद विधानसभा का विश्वास खो दे, तो उसे त्यागपत्र देना पड़ता है।
खंड (3): शपथ: प्रत्येक मंत्री को राज्यपाल के समक्ष तीसरी अनुसूची में निर्धारित प्रपत्र में शपथ या प्रतिज्ञान लेना होगा। शपथ में संविधान के प्रति निष्ठा और कर्तव्यों का निष्पक्ष निर्वहन शामिल होता है। उदाहरण: 2025 में, नए मंत्रियों ने राजभवन में शपथ ली।
खंड (5): वेतन और भत्ते: मंत्रियों का वेतन और भत्ते राज्य विधानमंडल द्वारा कानून के तहत निर्धारित। यदि कानून नहीं, तो दूसरी अनुसूची के अनुसार। उदाहरण: 2025 में, मंत्रियों का वेतन लगभग ₹2 लाख प्रति माह।
4. महत्व: लोकतांत्रिक जवाबदेही: मंत्रिपरिषद की विधानसभा के प्रति जवाबदेही। संवैधानिक शासन: शपथ और नियुक्ति प्रक्रिया। संघीय ढांचा: राज्य की स्वायत्तता और केंद्र के साथ समन्वय। प्रशासकीय दक्षता: मंत्रियों की संख्या और योग्यता पर नियंत्रण।
5. प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राज्यपाल और मुख्यमंत्री। जवाबदेही: विधानसभा के प्रति। शपथ: तीसरी अनुसूची। वेतन: विधानमंडल या दूसरी अनुसूची।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यों में मंत्रिपरिषद की स्थापना और जवाबदेही। एस.आर. बोम्मई (1994): मंत्रिपरिषद की जवाबदेही और विधानसभा के विश्वास पर चर्चा। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में मंत्रियों की नियुक्ति और शपथ का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राज्यपाल का स्वविवेक: मुख्यमंत्री की नियुक्ति में दुरुपयोग की आलोचना। केंद्र-राज्य तनाव: केंद्र के प्रभाव में नियुक्तियाँ। छह माह की सीमा: गैर-निर्वाचित मंत्रियों पर विवाद।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई (1994): मंत्रिपरिषद की जवाबदेही और राज्यपाल की भूमिका।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, मंत्रिपरिषद की नियुक्तियाँ और डिजिटल नीतियाँ। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत नियुक्ति और शपथ का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच मंत्रिपरिषद की नियुक्ति पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 163: मंत्रिपरिषद की सलाह। अनुच्छेद 177: मंत्रियों के अधिकार। तीसरी अनुसूची: शपथ का प्रपत्र।
11. विशेष तथ्य: एस.आर. बोम्मई (1994): जवाबदेही। 2025 शपथ: डिजिटल रिकॉर्ड। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। जवाबदेही: विधानसभा के प्रति।
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