Article 163 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:40:17
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 163
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 163
अनुच्छेद 163 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय II (कार्यपालिका) में आता है। यह राज्य में मंत्रिपरिषद (Council of Ministers to aid and advise Governor) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को अपने कर्तव्यों के निर्वहन में सहायता और सलाह देने के लिए मंत्रिपरिषद की व्यवस्था करता है और यह भी स्पष्ट करता है कि कब राज्यपाल मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना स्वविवेक से कार्य कर सकता है।
अनुच्छेद 163 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) राज्य के राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा, और राज्यपाल अपने कर्तव्यों का निर्वहन इस संविधान के अनुसार मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार करेगा, सिवाय इसके कि जहाँ इस संविधान के अंतर्गत उसे अपने स्वविवेक से कार्य करने की आवश्यकता हो।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या कोई विषय ऐसा है, जिसमें राज्यपाल को अपने स्वविवेक से कार्य करना है, तो उस प्रश्न पर राज्यपाल का निर्णय अंतिम होगा।
(3) मंत्रिपरिषद द्वारा राज्यपाल को दी गई सलाह की वैधता को किसी न्यायालय में प्रश्नगत नहीं किया जाएगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 163 मंत्रिपरिषद की स्थापना करता है, जो मुख्यमंत्री के नेतृत्व में राज्यपाल को नीतिगत और प्रशासकीय मामलों में सहायता और सलाह देती है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्यपाल सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करे, लेकिन कुछ मामलों में वह स्वविवेक (discretion) से कार्य कर सकता है। इसका लक्ष्य लोकतांत्रिक जवाबदेही सुनिश्चित करना है, क्योंकि मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति जवाबदेह होती है, साथ ही संवैधानिक संकटों में राज्यपाल की भूमिका को परिभाषित करना।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 50 से प्रेरित है, जो प्रांतीय गवर्नर को मंत्रियों की सलाह पर कार्य करने की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश संसदीय प्रणाली में मंत्रियों की सलाह पर कार्य करने की परंपरा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, भारत के संघीय ढांचे में मंत्रिपरिषद को लोकतांत्रिक शासन का आधार बनाया गया, और राज्यपाल को संवैधानिक प्रमुख के रूप में स्थापित किया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र-राज्य संबंधों और लोकतांत्रिक शासन में मंत्रिपरिषद की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करता है।
3. अनुच्छेद 163 के प्रमुख तत्व: खंड (1): मंत्रिपरिषद की स्थापना और सलाह: प्रत्येक राज्य में एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रमुख मुख्यमंत्री होगा। राज्यपाल अपने कर्तव्यों का निर्वहन सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सलाह पर करेगा। अपवाद: जहाँ संविधान में स्पष्ट रूप से राज्यपाल को स्वविवेक से कार्य करने की आवश्यकता हो। उदाहरण: स्वविवेक के मामले: विधानसभा भंग करना (अनुच्छेद 174), राष्ट्रपति शासन की सिफारिश (अनुच्छेद 356), या बिलों को राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित करना (अनुच्छेद 200)।
खंड (2): स्वविवेक का निर्णय: यदि कोई प्रश्न उठता है कि क्या राज्यपाल को स्वविवेक से कार्य करना है, तो उसका निर्णय अंतिम होगा। यह राज्यपाल को स्वविवेक के मामलों में स्वायत्तता देता है। उदाहरण: यदि मंत्रिपरिषद और राज्यपाल के बीच सलाह पर विवाद हो, तो राज्यपाल का निर्णय मान्य होगा।
खंड (3): सलाह की गोपनीयता: मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह की वैधता को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। यह मंत्रिपरिषद और राज्यपाल के बीच सलाह की गोपनीयता और संवैधानिक सुरक्षा सुनिश्चित करता है। उदाहरण: सलाह की सामग्री को न्यायिक समीक्षा से बाहर रखा गया है।
4. महत्व: लोकतांत्रिक जवाबदेही: मंत्रिपरिषद विधानसभा के प्रति जवाबदेह होती है। संवैधानिक संतुलन: राज्यपाल की स्वविवेक शक्ति और मंत्रिपरिषद की सलाह का संतुलन। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय में मंत्रिपरिषद की भूमिका। निष्पक्षता: स्वविवेक के मामलों में राज्यपाल की संवैधानिक भूमिका।
5. प्रमुख विशेषताएँ: मंत्रिपरिषद: मुख्यमंत्री के नेतृत्व में। सलाह: सामान्यतः बाध्यकारी। स्वविवेक: संवैधानिक अपवाद। गोपनीयता: सलाह पर न्यायिक समीक्षा नहीं।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: मंत्रिपरिषद ने राज्यों में नीतिगत निर्णयों में केंद्रीय भूमिका निभाई। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): राज्यपाल की स्वविवेक शक्ति और मंत्रिपरिषद की सलाह पर सीमाएँ। 2025 स्थिति: डिजिटल और पर्यावरण नीतियों में मंत्रिपरिषद की सलाह।
7. चुनौतियाँ और विवाद: स्वविवेक का दुरुपयोग: राज्यपाल द्वारा मंत्रिपरिषद की सलाह को अनदेखा करने की आलोचना। केंद्र-राज्य तनाव: केंद्र के प्रभाव में स्वविवेक का उपयोग। न्यायिक हस्तक्षेप: स्वविवेक के दुरुपयोग पर कोर्ट की समीक्षा।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई (1994): स्वविवेक शक्ति की सीमाएँ। नबम रेबिया बनाम उप-मुख्यमंत्री (2016): राज्यपाल के स्वविवेक पर स्पष्टता।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, मंत्रिपरिषद की सलाह पर डिजिटल और पर्यावरण नीतियाँ। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत मंत्रिपरिषद के निर्णयों का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच स्वविवेक और सलाह पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यपालिका शक्ति। अनुच्छेद 164: मंत्रिपरिषद की नियुक्ति। अनुच्छेद 356: राष्ट्रपति शासन।
11. विशेष तथ्य: एस.आर. बोम्मई (1994): स्वविवेक की सीमाएँ। 2025 नीतियाँ: डिजिटल, पर्यावरण। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। मंत्रिपरिषद: लोकतांत्रिक जवाबदेही।
Conclusion
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