Article 161 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:35:57
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 161
अनुच्छेद 161 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय II (कार्यपालिका) में आता है। यह राज्यपाल की क्षमादान शक्ति (Power of Governor to grant pardons, etc., and to suspend, remit or commute sentences in certain cases) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल को कुछ मामलों में दंड को माफ करने, निलंबित करने, कम करने, या बदलने की शक्ति प्रदान करता है।
अनुच्छेद 161 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"किसी राज्य के राज्यपाल को इसकी शक्ति होगी कि वह किसी अपराध के लिए, जिसके लिए वह उस राज्य की कार्यपालिका शक्ति के अधीन दंडित किया गया हो, किसी व्यक्ति को क्षमादान, दंड का निलंबन, दंड का परिहार या दंड का लघुकरण करे, या दंड को स्थगित, परिहृत या बदले, और यह तब तक प्रभावी रहेगा जब तक कि वह अपराध भारत सरकार की कार्यपालिका शक्ति के अधीन न हो।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 161 राज्यपाल को उन मामलों में क्षमादान, निलंबन, परिहार, या दंड के लघुकरण की शक्ति देता है, जो राज्य की कार्यपालिका शक्ति के अधीन हैं। इसका लक्ष्य न्याय के साथ दया को संतुलित करना, विशेष रूप से उन मामलों में जहाँ कठोर दंड को कम करने की आवश्यकता हो। यह संघीय ढांचे में राज्यों को सीमित दायरे में स्वायत्तता प्रदान करता है, लेकिन केंद्र की शक्तियों को प्रभावित नहीं करता।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 295 से प्रेरित है, जो प्रांतीय गवर्नर को क्षमादान की शक्ति देता था। यह ब्रिटिश प्रणाली में सम्राट या गवर्नर की दया (prerogative of mercy) की अवधारणा को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, राज्यपाल को राज्य स्तर पर सीमित क्षमादान शक्ति दी गई, जो केंद्र (अनुच्छेद 72) के समानांतर है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान न्यायिक निर्णयों में मानवीय दृष्टिकोण को शामिल करता है, विशेष रूप से संवैधानिक संकटों या असाधारण परिस्थितियों में।
3. अनुच्छेद 161 के प्रमुख तत्व
(i) क्षमादान की शक्ति: राज्यपाल को निम्नलिखित शक्तियाँ दी गई हैं: क्षमादान (Pardon): पूर्ण रूप से दंड माफ करना। निलंबन (Suspension): दंड को अस्थायी रूप से रोकना। परिहार (Remission): दंड की मात्रा कम करना। लघुकरण (Commutation): दंड को कम गंभीर दंड में बदलना (जैसे मृत्युदंड को आजीवन कारावास में)। स्थगन (Respite): विशेष परिस्थितियों (जैसे गर्भावस्था) में दंड को टालना। उदाहरण: 2025 में, किसी राज्य में सजा प्राप्त व्यक्ति को मानवीय आधार पर राज्यपाल द्वारा दंड कम किया गया।
(ii) लागू दायरा: यह शक्ति केवल उन अपराधों पर लागू होती है, जो राज्य की कार्यपालिका शक्ति के अधीन हैं। सातवीं अनुसूची की राज्य सूची (जैसे, सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस) के तहत अपराध शामिल हैं। उदाहरण: राज्य के कानून (जैसे, स्थानीय आपराधिक कानून) के तहत सजा पर क्षमादान।
(iii) केंद्र की शक्ति पर सीमा: यह शक्ति केंद्र सरकार की कार्यपालिका शक्ति (अनुच्छेद 72) के अधीन अपराधों पर लागू नहीं होती। जैसे, केंद्रीय कानूनों (IPC, CrPC) या सैन्य कानूनों के तहत अपराध। उदाहरण: आतंकवाद से संबंधित अपराधों पर राज्यपाल की शक्ति लागू नहीं।
(iv) मंत्रिपरिषद की सलाह: अनुच्छेद 163 के तहत, राज्यपाल सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सलाह पर यह शक्ति प्रयोग करता है। उदाहरण: मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद की सिफारिश पर क्षमादान।
4. महत्व: न्याय और दया का संतुलन: कठोर दंड में मानवीय दृष्टिकोण। राज्य की स्वायत्तता: राज्य सूची के अपराधों पर शक्ति। संवैधानिक जवाबदेही: मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्य की शक्तियों का विभाजन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: क्षमादान: पूर्ण या आंशिक। दायरा: राज्य सूची के अपराध। मंत्रिपरिषद: सलाह पर कार्य। केंद्र की शक्ति: अप्रभावित।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1980-90 के दशक: कई राज्यों में मानवीय आधार पर क्षमादान। 1997 तमिलनाडु मामला: मुरुगन बनाम तमिलनाडु में राज्यपाल की क्षमादान शक्ति पर चर्चा। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में क्षमादान याचिकाओं का डिजिटल रिकॉर्ड।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक दुरुपयोग: क्षमादान में पक्षपात की आलोचना। केंद्र-राज्य तनाव: केंद्रीय और राज्य कानूनों के बीच अस्पष्टता। न्यायिक हस्तक्षेप: क्षमादान निर्णयों पर न्यायालय की समीक्षा।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। मारु राम बनाम भारत संघ (1980): क्षमादान शक्ति की सीमाएँ और मंत्रिपरिषद की सलाह। एप्पू गौंडर बनाम तमिलनाडु (1997): राज्यपाल की शक्ति का दायरा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, कुछ राज्यों में मानवीय आधार पर क्षमादान। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत क्षमादान याचिकाओं का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच क्षमादान शक्ति पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 72: राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति। अनुच्छेद 163: मंत्रिपरिषद की सलाह। सातवीं अनुसूची: राज्य सूची।
11. विशेष तथ्य: मारु राम (1980): सलाह की बाध्यता। 2025 याचिकाएँ: डिजिटल रिकॉर्ड। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। दया: न्याय का संतुलन।
Conclusion
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