Article 158 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 15:29:18
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 158
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 158
अनुच्छेद 158 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय II (कार्यपालिका) में आता है। यह राज्यपाल की सेवा शर्तें (Conditions of Governor’s office) से संबंधित है। यह प्रावधान राज्यपाल के पद की शर्तों, जैसे कोई अन्य लाभ का पद न रखना, वेतन, और अन्य सुविधाओं को परिभाषित करता है।
अनुच्छेद 158 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
(2) राज्यपाल अपने कार्यकाल के दौरान:
(क) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य पद पर नियुक्त नहीं होगा;
(ख) संसद या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं होगा, और यदि कोई व्यक्ति जो संसद या किसी राज्य के विधानमंडल का सदस्य है, राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया जाता है, तो वह उस तारीख से, जिस दिन वह अपने कर्तव्यों का कार्यभार ग्रहण करता है, संसद या उस विधानमंडल का सदस्य नहीं माना जाएगा।
(3) राज्यपाल को अपने कार्यकाल के दौरान निम्नलिखित के लिए हकदार होगा:
(क) ऐसा वेतन और भत्ते, जो संसद समय-समय पर कानून द्वारा निर्धारित करे, और जब तक कि इस प्रकार निर्धारित न हो, तब तक वह जो इस संविधान की दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं;
(ख) ऐसा निवास स्थान, जो बिना किराए के उपलब्ध कराया जाए, और ऐसी अन्य सुविधाएँ जो समय-समय पर निर्धारित की जाएँ।
(4) राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उसके वेतन और भत्तों में कोई कमी नहीं की जाएगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 158 राज्यपाल की सेवा शर्तों को परिभाषित करता है ताकि वह निष्पक्षता और स्वतंत्रता के साथ अपने संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन कर सके। यह सुनिश्चित करता है कि राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद न रखे और उसका वेतन, भत्ते, और सुविधाएँ संवैधानिक रूप से सुरक्षित हों। इसका लक्ष्य राज्यपाल की स्वतंत्रता, संवैधानिक जवाबदेही, और प्रशासकीय निष्पक्षता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51 से प्रेरित है, जो प्रांतीय गवर्नर की सेवा शर्तों को परिभाषित करता था। यह ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली में गवर्नर की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की व्यवस्था को दर्शाता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, राज्यपाल को केंद्र और राज्यों के बीच कड़ी के रूप में स्थापित किया गया, और उसकी सेवा शर्तें केंद्र के नियंत्रण में रखी गईं। प्रासंगिकता: यह प्रावधान राज्यपाल की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से केंद्र-राज्य संबंधों में।
3. अनुच्छेद 158 के प्रमुख तत्व: खंड (1): लाभ का पद नहीं: राज्यपाल कोई अन्य लाभ का पद (office of profit) धारण नहीं कर सकता। यह सुनिश्चित करता है कि वह केवल संवैधानिक कर्तव्यों पर ध्यान दे। उदाहरण: राज्यपाल किसी निजी कंपनी या अन्य सरकारी पद पर नहीं रह सकता।
खंड (2): अन्य पदों और सदस्यता पर प्रतिबंध: (क): राज्यपाल को भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन कोई अन्य पद नहीं दिया जाएगा। (ख): राज्यपाल संसद या राज्य विधानमंडल का सदस्य नहीं हो सकता। यदि कोई सांसद या विधायक राज्यपाल नियुक्त होता है, तो वह पद ग्रहण की तारीख से सदस्यता खो देता है। उदाहरण: 2025 में, कई पूर्व सांसदों को राज्यपाल नियुक्त किया गया, और उन्होंने अपनी सदस्यता छोड़ी।
खंड (3): वेतन, भत्ते, और सुविधाएँ: (क) वेतन और भत्ते: राज्यपाल का वेतन और भत्ते संसद द्वारा कानून या दूसरी अनुसूची में निर्धारित। उदाहरण: 2025 में, राज्यपाल का वेतन लगभग ₹3.5 लाख प्रति माह। (ख) निवास और सुविधाएँ: राज्यपाल को बिना किराए का निवास (राजभवन) और अन्य सुविधाएँ (जैसे वाहन, स्टाफ)। उदाहरण: राजभवन में रहने की सुविधा।
खंड (4): वेतन में कमी पर रोक: राज्यपाल के कार्यकाल के दौरान उसके वेतन और भत्तों में कमी नहीं की जा सकती। यह उसकी वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
4. महत्व: स्वतंत्रता: लाभ के पद पर प्रतिबंध से निष्पक्षता। वित्तीय सुरक्षा: वेतन और भत्तों की स्थिरता। संवैधानिक जवाबदेही: केवल संवैधानिक कर्तव्यों पर ध्यान। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य समन्वय में निष्पक्षता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: लाभ का पद: प्रतिबंध। वेतन: संसद या दूसरी अनुसूची। निवास: बिना किराए का राजभवन। वित्तीय सुरक्षा: कमी पर रोक।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: राज्यपालों को राजभवन और निर्धारित वेतन प्रदान किया गया। 1980-90 के दशक: वेतन और सुविधाओं में संशोधन। 2025 स्थिति: डिजिटल युग में सुविधाओं का आधुनिकीकरण।
7. चुनौतियाँ और विवाद: राजनीतिक नियुक्तियाँ: पूर्व राजनेताओं की नियुक्ति पर निष्पक्षता का सवाल। वेतन विवाद: कुछ राज्यों में सुविधाओं पर बहस। केंद्र-राज्य तनाव: राज्यपाल की स्वतंत्रता पर केंद्र का प्रभाव।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। बी.पी. सिंघल बनाम भारत संघ (2010): राज्यपाल की सेवा शर्तों और स्वतंत्रता पर चर्चा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, राज्यपालों के लिए आधुनिक सुविधाएँ। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत सेवा शर्तों का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य समन्वय पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच राज्यपाल की भूमिका पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 153: राज्यपाल की व्यवस्था। अनुच्छेद 155: नियुक्ति। अनुच्छेद 156: कार्यकाल।
11. विशेष तथ्य: वेतन: ₹3.5 लाख (2025)। राजभवन: बिना किराए का निवास। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। निष्पक्षता: लाभ के पद पर रोक।
Conclusion
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