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Article 153 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 15:16:19
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 153

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 153
अनुच्छेद 153 भारतीय संविधान के भाग VI (राज्य) के अंतर्गत अध्याय II (कार्यपालिका) में आता है। यह राज्य के राज्यपाल (Governors of States) से संबंधित है। यह प्रावधान प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल की व्यवस्था करता है, साथ ही यह भी प्रावधान करता है कि एक ही व्यक्ति दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल हो सकता है।
अनुच्छेद 153 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार: "प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होगा: परंतु इसमें कोई बात एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिए राज्यपाल नियुक्त करने से निवारण नहीं करेगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 153 प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल की नियुक्ति की व्यवस्था करता है, जो राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होता है। यह यह भी सुनिश्चित करता है कि एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है, जिससे प्रशासकीय दक्षता और समन्वय बढ़ता है। इसका लक्ष्य संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच संतुलन बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 45 से प्रेरित है, जो प्रांतों के लिए गवर्नर की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश प्रणाली के गवर्नर की भूमिका को दर्शाता है, जो औपनिवेशिक प्रशासन में केंद्र का प्रतिनिधि था। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, भारत के संघीय ढांचे में राज्यपाल को केंद्र और राज्यों के बीच एक कड़ी के रूप में स्थापित किया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र-राज्य संबंधों में राज्यपाल की भूमिका को महत्वपूर्ण बनाता है, विशेष रूप से संवैधानिक संकटों या केंद्र-राज्य विवादों में।
3. अनुच्छेद 153 के प्रमुख तत्व
(i) प्रत्येक राज्य के लिए राज्यपाल: प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल की नियुक्ति अनिवार्य है। राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख होता है। उदाहरण: महाराष्ट्र के राज्यपाल (2025): सी.पी. राधाकृष्णन।
(ii) एक व्यक्ति, दो या अधिक राज्य: एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। यह प्रावधान छोटे राज्यों या निकटवर्ती राज्यों के लिए प्रशासकीय दक्षता बढ़ाता है। उदाहरण: 2025 में, कुछ राज्यपाल जैसे आनंदीबेन पटेल उत्तर प्रदेश के साथ-साथ मणिपुर के अतिरिक्त राज्यपाल के रूप में कार्यरत हैं।
(iii) केंद्र-राज्य कड़ी: राज्यपाल केंद्र द्वारा नियुक्त होता है (अनुच्छेद 155), और यह केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय की भूमिका निभाता है। उदाहरण: राज्यपाल का विधायी बिलों को स्वीकृति देना या राष्ट्रपति को भेजना।
4. महत्व: संवैधानिक प्रमुख: राज्यपाल राज्य कार्यपालिका का नेतृत्व करता है। संघीय ढांचा: केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय। प्रशासकीय दक्षता: एक व्यक्ति द्वारा कई राज्यों का प्रशासन। संवैधानिक संकटों में भूमिका: जैसे मंत्रिपरिषद की नियुक्ति या विघटन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: राज्यपाल: प्रत्येक राज्य के लिए। दो या अधिक राज्य: एक व्यक्ति की नियुक्ति। संघीय कड़ी: केंद्र-राज्य समन्वय। संवैधानिक भूमिका: कार्यपालिका प्रमुख।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: कई छोटे राज्यों के लिए एक ही राज्यपाल की नियुक्ति। पंजाब और हरियाणा: एक ही राज्यपाल ने दोनों राज्यों का प्रशासन संभाला। 2025 स्थिति: उत्तर-पूर्वी राज्यों में एक ही व्यक्ति को कई राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
7. चुनौतियाँ और विवाद: केंद्र का प्रभाव: राज्यपाल को केंद्र का "एजेंट" माना जाता है, जिससे स्वायत्तता पर सवाल। राजनीतिक दुरुपयोग: राज्यपाल की भूमिका पर विवाद, जैसे विधानसभा भंग करना। केंद्र-राज्य तनाव: राज्य सरकारों के साथ मतभेद।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): संघीय ढांचा मूल ढांचे का हिस्सा। एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ (1994): राज्यपाल की भूमिका और अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग पर सीमाएँ।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, कई राज्यपाल एक से अधिक राज्यों का कार्यभार संभाल रहे हैं। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत राज्यपालों के प्रशासन का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य संबंधों में समन्वय। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच राज्यपाल की भूमिका पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 155: राज्यपाल की नियुक्ति। अनुच्छेद 156: राज्यपाल का कार्यकाल। अनुच्छेद 157: राज्यपाल की योग्यता।
11. विशेष तथ्य: 2025 में: एक व्यक्ति, कई राज्य। एस.आर. बोम्मई (1994): राज्यपाल की सीमाएँ। संघीय ढांचा: मूल ढांचा। राज्यपाल: संवैधानिक प्रमुख।
Conclusion
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