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Article 148 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 14:04:11
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 148

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 148
अनुच्छेद 148 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय V (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) में आता है। यह भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor-General of India CAG) की नियुक्ति, कर्तव्यों, और स्वतंत्रता से संबंधित है। यह प्रावधान CAG को भारत की वित्तीय जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र और शक्तिशाली संस्था के रूप में स्थापित करता है।
अनुच्छेद 148 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) भारत का एक नियंत्रक और महालेखा परीक्षक होगा, जिसे राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुहर के अधीन अध्यादेश द्वारा नियुक्त करेगा, और वह तब तक पद पर रहेगा जब तक कि वह इस संविधान के उपबंधों के अनुसार हटाया न जाए।
(2) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अपने कार्यालय की शपथ या प्रतिज्ञान राष्ट्रपति के समक्ष या उनके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष इस संविधान की तीसरी अनुसूची में निर्धारित प्रपत्र में लेगा।
(3) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक का वेतन और सेवा की अन्य शर्तें संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित की जाएंगी, और जब तक वे निर्धारित नहीं हो जातीं, तब तक वे वही होंगी जो भारत सरकार अधिनियम, 1935 के अधीन थीं।
(4) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की सेवा शर्तें ऐसी होंगी कि उनके कार्यकाल के दौरान उनके वेतन और अन्य शर्तों में कोई प्रतिकूल परिवर्तन न हो।
(5) नियंत्रक और महालेखा परीक्षक अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य नियुक्ति के लिए पात्र नहीं होगा।
(6) संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन रहते हुए, नियंत्रक और महालेखा परीक्षक के कर्तव्यों, शक्तियों और सेवा शर्तों को निर्धारित करने के लिए नियम बनाए जा सकते हैं।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 148 नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) को एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकारी के रूप में स्थापित करता है, जो सरकार के वित्तीय लेखा-जोखा की जाँच करता है। इसका लक्ष्य वित्तीय जवाबदेही, पारदर्शिता, और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को रोकना है। यह न्यायपालिका की स्वतंत्रता के समान CAG की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 166 से प्रेरित है, जो भारत के ऑडिटर-जनरल की व्यवस्था करता था। यह ब्रिटिश प्रणाली के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की अवधारणा से प्रभावित है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, CAG को एक स्वतंत्र संस्था के रूप में स्थापित किया गया ताकि केंद्र और राज्य सरकारों के वित्तीय प्रशासन की निगरानी हो सके। प्रासंगिकता: यह प्रावधान भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं को रोकने में महत्वपूर्ण है, विशेष रूप से डिजिटल और बड़े पैमाने की सरकारी परियोजनाओं के युग में।
3. अनुच्छेद 148 के प्रमुख तत्व: खंड (1): नियुक्ति और पदावधि: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश के माध्यम से की जाती है। CAG का हटाया जाना सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान प्रक्रिया (अनुच्छेद 124(4)) के तहत होता है, अर्थात् संसद द्वारा महाभियोग। उदाहरण: वर्तमान CAG (2025): गिरीश चंद्र मुरमू।
खंड (2): शपथ: CAG को राष्ट्रपति या उनके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची के प्रपत्र में शपथ लेनी होती है। यह शपथ निष्पक्षता और संवैधानिक कर्तव्यों के प्रति प्रतिबद्धता सुनिश्चित करती है।
खंड (3): वेतन और सेवा शर्तें: CAG का वेतन और सेवा शर्तें संसद द्वारा निर्धारित की जाती हैं। जब तक संसद कोई कानून नहीं बनाती, भारत सरकार अधिनियम, 1935 की शर्तें लागू होती हैं। उदाहरण: CAG का वेतन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के समान।
खंड (4): सेवा शर्तों की सुरक्षा: CAG के कार्यकाल के दौरान उनके वेतन या सेवा शर्तों में कोई प्रतिकूल परिवर्तन नहीं किया जा सकता। यह उनकी स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।
खंड (5): पुनर्नियुक्ति पर प्रतिबंध: CAG अपने कार्यकाल की समाप्ति के बाद भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी अन्य पद के लिए पात्र नहीं होता। यह सुनिश्चित करता है कि CAG कार्यपालिका के प्रभाव से मुक्त रहे।
खंड (6): कर्तव्यों और शक्तियों के नियम: CAG के कर्तव्यों और शक्तियों को संसद द्वारा बनाए गए कानूनों और नियमों द्वारा विनियमित किया जा सकता है। उदाहरण: नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (कर्तव्य, शक्तियाँ और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1971।
4. महत्व: वित्तीय जवाबदेही: CAG सरकार के लेखा-जोखा की जाँच करता है। पारदर्शिता: सार्वजनिक धन के उपयोग पर निगरानी। संवैधानिक स्वतंत्रता: कार्यपालिका से स्वतंत्रता। लोकतांत्रिक जवाबदेही: संसद को CAG की रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
5. प्रमुख विशेषताएँ: नियुक्ति: राष्ट्रपति द्वारा। स्वतंत्रता: महाभियोग और पुनर्नियुक्ति पर प्रतिबंध। वेतन: संचित निधि से। कर्तव्य: वित्तीय लेखा-जोखा।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2010): CAG की रिपोर्ट ने अनियमितताओं को उजागर किया। कोयला खदान आवंटन (2012): CAG ने वित्तीय नुकसान की ओर ध्यान दिलाया। 2025 स्थिति: डिजिटल परियोजनाओं और पर्यावरण निधियों की जाँच।
7. चुनौतियाँ और विवाद: कार्यपालिका का दबाव: सरकार द्वारा CAG की स्वतंत्रता पर प्रभाव की आशंका। सीमित शक्ति: CAG की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं। जटिल लेखा-जोखा: डिजिटल और जटिल परियोजनाओं की जाँच में चुनौतियाँ।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): CAG की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। अरविंद गुप्ता बनाम भारत संघ (2013): CAG की भूमिका की पुष्टि।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। CAG: गिरीश चंद्र मुरमू। 2025 में, डिजिटल परियोजनाओं और जलवायु निधियों की जाँच। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत लेखा-जोखा का डिजिटल रिकॉर्ड। साइबर और पर्यावरण निधियों पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच वित्तीय जवाबदेही पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 149: CAG के कर्तव्य। अनुच्छेद 150: लेखा प्रपत्र। अनुच्छेद 151: CAG की रिपोर्ट।
11. विशेष तथ्य: 2G घोटाला (2010): CAG की भूमिका। 2025 जाँच: डिजिटल, पर्यावरण। स्वतंत्रता: मूल ढांचा। संचित निधि: वेतन का स्रोत।
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