Article 147 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 14:01:20
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 147
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 147
अनुच्छेद 147 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णयों की व्याख्या (Interpretation) से संबंधित है। यह प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णयों की व्याख्या करते समय संविधान के भाग V और VI के प्रावधानों को ध्यान में रखा जाए।
अनुच्छेद 147 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"इस संविधान के भाग V के अध्याय IV और V और भाग VI के अध्याय V में निहित उपबंधों की व्याख्या इस प्रकार की जाएगी कि वे एक-दूसरे के साथ सामंजस्य में हों, और जहाँ तक संभव हो, किसी एक उपबंध की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जाएगी कि वह किसी अन्य उपबंध को प्रभावित करे।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 147 यह सुनिश्चित करता है कि भाग V (संघीय न्यायपालिका और नियंत्रक-महालेखा परीक्षक) और भाग VI (राज्य न्यायपालिका) के प्रावधानों की व्याख्या सामंजस्यपूर्ण ढंग से की जाए। इसका लक्ष्य यह है कि सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के निर्णयों की व्याख्या में कोई विरोधाभास न हो और संवैधानिक प्रावधानों का सम्मान हो। यह न्यायिक एकरूपता, संवैधानिक सुसंगतता, और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान संविधान के संघीय ढांचे को ध्यान में रखकर बनाया गया, जहाँ केंद्र और राज्यों की न्यायपालिका की शक्तियाँ और भूमिकाएँ अलग-अलग परिभाषित हैं। यह सामान्य कानून (Common Law) सिद्धांतों से प्रेरित है, जो न्यायिक व्याख्या में एकरूपता पर जोर देता है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता थी। अनुच्छेद 147 यह सुनिश्चित करता है कि इनकी व्याख्या में कोई टकराव न हो। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है जब संवैधानिक प्रावधानों की व्याख्या में जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं, जैसे केंद्र-राज्य विवादों में।
3. अनुच्छेद 147 के प्रमुख तत्व: (i) सामंजस्यपूर्ण व्याख्या: भाग V, अध्याय IV: सर्वोच्च न्यायालय (अनुच्छेद 124-147)। भाग V, अध्याय V: नियंत्रक-महालेखा परीक्षक (अनुच्छेद 148-151)। भाग VI, अध्याय V: उच्च न्यायालय (अनुच्छेद 214-231)। इन प्रावधानों की व्याख्या इस प्रकार की जाएगी कि वे एक-दूसरे के साथ सामंजस्य में हों। उदाहरण: यदि सर्वोच्च न्यायालय का कोई निर्णय उच्च न्यायालय की शक्तियों (जैसे अनुच्छेद 226) को प्रभावित करता है, तो व्याख्या सामंजस्यपूर्ण होनी चाहिए।
(ii) गैर-विरोधी व्याख्या: किसी एक प्रावधान की व्याख्या इस प्रकार नहीं की जाएगी कि वह दूसरे प्रावधान को प्रभावित करे। यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक प्रावधानों के बीच टकराव न हो। उदाहरण: अनुच्छेद 136 (विशेष अनुमति याचिका) की व्याख्या अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय की रिट शक्ति) को कमजोर नहीं कर सकती।
4. महत्व: न्यायिक एकरूपता: सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के बीच सुसंगत व्याख्या। संवैधानिक सुसंगतता: संविधान के प्रावधानों का सामंजस्य। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: दोनों स्तरों की शक्तियों का सम्मान। संघीय संतुलन: केंद्र और राज्यों की न्यायिक शक्तियों में संतुलन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: सामंजस्यपूर्ण व्याख्या: प्रावधानों में एकरूपता। गैर-विरोधी: टकराव से बचाव। लागू दायरा: भाग V और VI। न्यायिक स्वायत्तता: शक्तियों का सम्मान।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सामंजस्यपूर्ण व्याख्या। एल. चंद्रा कुमार बनाम भारत संघ (1997): अनुच्छेद 226 और 136 के बीच सामंजस्य। 2025 स्थिति: डिजिटल और पर्यावरण कानूनों की व्याख्या में उपयोग।
7. चुनौतियाँ और विवाद: जटिल व्याख्या: प्रावधानों के बीच सामंजस्य स्थापित करना जटिल हो सकता है। न्यायिक टकराव: सर्वोच्च और उच्च न्यायालयों के बीच व्याख्या में मतभेद। न्यायिक कार्यभार: जटिल व्याख्याओं से समय की बर्बादी।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): मूल ढांचे की अवधारणा, जो व्याख्या को सीमित करती है। एल. चंद्रा कुमार (1997): उच्च न्यायालयों की रिट शक्ति की पुष्टि।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, साइबर कानून और पर्यावरण नीतियों की व्याख्या में सामंजस्य। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत व्याख्याओं का डिजिटल रिकॉर्ड। डिजिटल और पर्यावरण मामलों पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124-145: सर्वोच्च न्यायालय। अनुच्छेद 214-231: उच्च न्यायालय। अनुच्छेद 148-151: नियंत्रक-महालेखा परीक्षक।
11. विशेष तथ्य: एल. चंद्रा कुमार (1997): रिट शक्ति। 2025 व्याख्या: साइबर, पर्यावरण। सामंजस्य: संवैधानिक एकरूपता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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