Article 142 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:49:12
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 142
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्ण न्याय करने के लिए आदेशों का प्रवर्तन (Enforcement of decrees and orders of Supreme Court and orders as to discovery, etc.) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक आदेश देने की व्यापक शक्ति प्रदान करता है।
अनुच्छेद 142 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी) के अनुसार
"(1) सर्वोच्च न्यायालय अपनी अधिकारिता का प्रयोग करते समय ऐसी डिक्री या आदेश दे सकता है, जो पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो, और ऐसी डिक्री या आदेश भारत के राज्यक्षेत्र में सभी प्राधिकारियों पर बाध्यकारी होगा।
(2) इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को खोज, हलफनामों, दस्तावेजों के प्रस्तुति, गवाहों की उपस्थिति और जांच आदि के संबंध में आदेश देने की शक्ति होगी, जो संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून के अधीन हो।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को पूर्ण न्याय (complete justice) करने के लिए व्यापक और असाधारण शक्ति प्रदान करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णयों, डिक्रियों, या आदेशों को प्रभावी ढंग से लागू कर सके, और यह किसी भी स्थिति में अन्याय को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठा सकता है। इसका लक्ष्य न्यायिक प्रभुता, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा, और कानूनी प्रक्रियाओं की प्रभावशीलता को सुनिश्चित करना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान सामान्य कानून (Common Law) की अवधारणा से प्रेरित है, जहाँ उच्चतम न्यायालय को असाधारण परिस्थितियों में पूर्ण न्याय करने की शक्ति होती है। यह सर्वोच्च न्यायालय को संवैधानिक और कानूनी मामलों में अंतिम प्राधिकारी बनाता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, जहाँ जटिल सामाजिक, आर्थिक, और कानूनी मुद्दे हैं, अनुच्छेद 142 सर्वोच्च न्यायालय को लचीलापन देता है ताकि वह ऐसी परिस्थितियों में हस्तक्षेप कर सके, जहाँ सामान्य कानूनी प्रक्रियाएँ अपर्याप्त हों। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष रूप से जनहित याचिकाओं (PILs), पर्यावरण, मानवाधिकार, और सामाजिक न्याय के मामलों में महत्वपूर्ण है।
3. अनुच्छेद 142 के प्रमुख तत्व: खंड (1): पूर्ण न्याय की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय अपनी अधिकारिता के प्रयोग में ऐसी डिक्री या आदेश दे सकता है, जो पूर्ण न्याय करने के लिए आवश्यक हो। ये आदेश भारत के सभी प्राधिकारियों (न्यायिक, कार्यकारी, प्रशासकीय) पर बाध्यकारी होंगे। उदाहरण: पर्यावरण मामलों में, सर्वोच्च न्यायालय ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए विशेष आदेश दिए। अयोध्या विवाद (2019): सर्वोच्च न्यायालय ने पूर्ण न्याय के लिए ट्रस्ट गठन का आदेश दिया।
खंड (2): पूरक आदेश: सर्वोच्च न्यायालय को खोज, हलफनामे, दस्तावेज, गवाहों की उपस्थिति, और जांच से संबंधित आदेश देने की शक्ति है। यह शक्ति संसद द्वारा बनाए गए कानूनों के अधीन है। उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रष्टाचार के मामलों में विशेष जांच समितियों (SITs) का गठन किया।
सीमाएँ: यह शक्ति संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन है। आदेश मूल ढांचे (Basic Structure) का उल्लंघन नहीं कर सकते। यह शक्ति विवेकाधीन है और केवल असाधारण परिस्थितियों में प्रयोग की जाती है।
4. महत्व: पूर्ण न्याय: सामान्य कानूनी प्रक्रियाओं के अभाव में अन्याय को रोकना। न्यायिक प्रभुता: सर्वोच्च न्यायालय का अंतिम प्राधिकारी। लचीलापन: जटिल सामाजिक और कानूनी मुद्दों पर हस्तक्षेप। जनहित: जनहित याचिकाओं (PILs) में व्यापक उपयोग।
5. प्रमुख विशेषताएँ: पूर्ण न्याय: असाधारण शक्ति। बाध्यकारी आदेश: सभी प्राधिकारियों पर लागू। पूरक आदेश: जांच, दस्तावेज, गवाह। संविधान के अधीन: मूल ढांचा।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: विशाखा बनाम राजस्थान राज्य (1997): कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के लिए दिशानिर्देश, अनुच्छेद 142 के तहत। अयोध्या विवाद (2019): ट्रस्ट गठन और भूमि आवंटन के आदेश। 2025 स्थिति: डेटा गोपनीयता और पर्यावरण मामलों में आदेश।
7. चुनौतियाँ और विवाद: अतिशय उपयोग: कुछ मामलों में विधायी क्षेत्र में हस्तक्षेप की आलोचना। विवेकाधीन शक्ति: असंगति की आशंका। न्यायिक कार्यभार: व्यापक आदेशों से बोझ।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): मूल ढांचे की सीमा। यूनियन कार्बाइड बनाम भारत संघ (1989): भोपाल गैस त्रासदी में मुआवजे के लिए अनुच्छेद 142 का उपयोग।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, साइबर अपराध और पर्यावरण मामलों में आदेश। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत आदेशों का डिजिटल रिकॉर्ड। जनहित और डिजिटल अधिकारों पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सक्रियता पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 32: रिट की शक्ति। अनुच्छेद 136: विशेष अनुमति याचिका। अनुच्छेद 141: बाध्यकारी नजीरें।
11. विशेष तथ्य: विशाखा (1997): यौन उत्पीड़न दिशानिर्देश। 2025 मामले: साइबर, पर्यावरण। पूर्ण न्याय: असाधारण शक्ति। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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