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Article 138 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:37:55
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 138

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 138
अनुच्छेद 138 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता का विस्तार (Enlargement of the jurisdiction of the Supreme Court) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद और राज्य विधानसभाओं को सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता को बढ़ाने की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 138 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) संसद, विधि द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय को ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियाँ प्रदान कर सकती है, जो इस संविधान के उपबंधों के अधीन नहीं हैं।
(2) किसी राज्य की विधान सभा, विधि द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय को ऐसी अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियाँ प्रदान कर सकती है, जो उस राज्य के संबंध में इस संविधान के उपबंधों के अधीन नहीं हैं।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 138 संसद और राज्य विधानसभाओं को यह शक्ति देता है कि वे सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता को बढ़ाने के लिए कानून बना सकें। यह प्रावधान संघ सूची (Union List) और राज्य सूची (State List) के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को विस्तार देने की अनुमति देता है। इसका लक्ष्य न्यायिक लचीलापन प्रदान करना और संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों की आवश्यकताओं के अनुरूप सर्वोच्च न्यायालय की शक्तियों को बढ़ाना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत के संघीय ढांचे को ध्यान में रखकर बनाया गया, जहाँ शक्तियाँ केंद्र (संघ सूची) और राज्यों (राज्य सूची) के बीच बँटी हैं। यह अन्य लोकतांत्रिक प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ विधायिका उच्च न्यायालयों की अधिकारिता को विस्तार दे सकती है। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, सर्वोच्च न्यायालय की मूल और अपीलीय अधिकारिता अनुच्छेद 131-136 में परिभाषित की गई। अनुच्छेद 138 इस अधिकारिता को और विस्तार देने का लचीलापन प्रदान करता है।
प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष रूप से तब उपयोगी हो सकता है, जब नए कानूनी क्षेत्रों (जैसे साइबर कानून, पर्यावरण) में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता हो।
3. अनुच्छेद 138 के प्रमुख तत्व: खंड (1): संसद की शक्ति संसद विधि द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को संघ सूची (सातवीं अनुसूची) के मामलों में अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियाँ प्रदान कर सकती है। संघ सूची: इसमें रक्षा, विदेशी मामले, रेलवे, बैंकिंग, कर, आदि शामिल हैं। उदाहरण: संसद ने अभी तक इस प्रावधान का व्यापक उपयोग नहीं किया, लेकिन कर या कॉर्पोरेट मामलों में विशेष कानून बनाए जा सकते हैं।
खंड (2): राज्य विधानसभा की शक्ति किसी राज्य की विधान सभा विधि द्वारा सर्वोच्च न्यायालय को राज्य सूची के मामलों में अतिरिक्त अधिकारिता और शक्तियाँ प्रदान कर सकती है। राज्य सूची: इसमें पुलिस, सार्वजनिक स्वास्थ्य, कृषि, स्थानीय शासन, आदि शामिल हैं। उदाहरण: कोई राज्य विधान सभा सर्वोच्च न्यायालय को स्थानीय कानूनों से संबंधित अपील सुनने की शक्ति दे सकती है।
सीमाएँ: यह प्रावधान संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन है। अतिरिक्त अधिकारिता संविधान के मूल ढांचे (Basic Structure) का उल्लंघन नहीं कर सकती।
4. महत्व: न्यायिक लचीलापन: संसद और राज्य विधानसभाएँ नए कानूनी क्षेत्रों में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका बढ़ा सकती हैं। संघीय संतुलन: केंद्र और राज्यों को उनकी विधायी शक्तियों के दायरे में सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता को विस्तार देने का अधिकार। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: यह प्रावधान कार्यपालिका या विधायिका के नियंत्रण के बिना न्यायिक शक्तियों को बढ़ाता है। आधुनिक चुनौतियाँ: साइबर अपराध, पर्यावरण, और डिजिटल कानूनों में संभावित उपयोग।
5. प्रमुख विशेषताएँ: संसद की शक्ति: संघ सूची में अधिकारिता विस्तार। राज्य विधानसभा की शक्ति: राज्य सूची में अधिकारिता विस्तार। संविधान के अधीन: मूल ढांचे का पालन। लचीलापन: नए कानूनी क्षेत्र।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के बाद: इस प्रावधान का उपयोग सीमित रहा, क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता मुख्य रूप से अनुच्छेद 131-136 और 145 द्वारा परिभाषित। संभावित उपयोग: 1970-80 के दशक में कर और कॉर्पोरेट कानूनों में विचार। 2025 स्थिति: डिजिटल और पर्यावरण कानूनों में संभावित उपयोग पर चर्चा।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित उपयोग: संसद और राज्य विधानसभाओं ने इस प्रावधान का व्यापक उपयोग नहीं किया। संवैधानिक सीमाएँ: मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। न्यायिक कार्यभार: अतिरिक्त अधिकारिता से बोझ की आशंका।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): मूल ढांचे की अवधारणा, जो इस प्रावधान को सीमित करती है। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर जोर।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, साइबर और पर्यावरण कानूनों में अधिकारिता विस्तार पर चर्चा। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत नए कानूनों का डिजिटल रिकॉर्ड। आधुनिक चुनौतियों (साइबर अपराध, पर्यावरण) पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों और डिजिटल कानूनों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 131-136: सर्वोच्च न्यायालय की अन्य अधिकारिताएँ। अनुच्छेद 145: सर्वोच्च न्यायालय के नियम। सातवीं अनुसूची: संघ और राज्य सूची।
11. विशेष तथ्य: सीमित उपयोग: ऐतिहासिक रूप से कम लागू। 2025 चर्चा: साइबर, पर्यावरण कानून। संघीय ढांचा: केंद्र-राज्य संतुलन। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
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