Article 137 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:35:52
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 137
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 137
अनुच्छेद 137 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय की अपने निर्णयों की समीक्षा करने की शक्ति (Power of Supreme Court to review its own judgments) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को अपने निर्णयों, आदेशों, या डिक्रियों की समीक्षा करने की शक्ति देता है, यदि उनमें कोई स्पष्ट त्रुटि हो या अन्य पर्याप्त कारण हों।
अनुच्छेद 137 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय को अपने द्वारा दिए गए किसी निर्णय या आदेश की समीक्षा करने की शक्ति होगी, और ऐसी समीक्षा उन नियमों के अधीन होगी जो सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनुच्छेद 145 के अधीन बनाए गए हैं।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 137 सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही निर्णयों, आदेशों, या डिक्रियों की समीक्षा करने की शक्ति प्रदान करता है, ताकि न्याय में त्रुटियों को सुधारा जा सके। यह सुनिश्चित करता है कि स्पष्ट गलतियों (apparent errors) या अन्य पर्याप्त कारणों (substantial reasons) के आधार पर न्याय बहाल हो। इसका लक्ष्य न्यायिक निष्पक्षता, कानूनी सटीकता, और न्यायपालिका की विश्वसनीयता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान सामान्य कानून (Common Law) सिद्धांतों से प्रेरित है, जहाँ उच्च न्यायालयों को अपनी त्रुटियों को सुधारने की शक्ति होती है। भारतीय संदर्भ: सर्वोच्च न्यायालय भारत में संवैधानिक और कानूनी मामलों का अंतिम प्राधिकारी है। अनुच्छेद 137 इसे गलतियों को सुधारने का अवसर देता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है जब कोई निर्णय मौलिक अधिकारों (जैसे अनुच्छेद 21) को प्रभावित करता हो या कानून की गलत व्याख्या करता हो।
3. अनुच्छेद 137 के प्रमुख तत्व: (i) समीक्षा की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय अपने निर्णयों, आदेशों, या डिक्रियों की समीक्षा कर सकता है। समीक्षा के आधार: स्पष्ट त्रुटि (Apparent error): जैसे तथ्यों या कानून की गलत व्याख्या। नए साक्ष्य: जो पहले उपलब्ध नहीं थे। प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: निष्पक्ष सुनवाई की कमी। अन्य पर्याप्त कारण: जैसे जनहित या गंभीर अन्याय। उदाहरण: 2019 में, सबरीमाला मंदिर मामले में समीक्षा याचिका स्वीकार की गई।
(ii) नियमों के अधीन: समीक्षा प्रक्रिया अनुच्छेद 145 के तहत बनाए गए नियमों (सर्वोच्च न्यायालय नियम, 1966) द्वारा नियंत्रित होती है। प्रक्रिया: समीक्षा याचिका सामान्यतः वही पीठ सुनती है जिसने मूल निर्णय दिया। याचिका पहले चैंबर में (बिना मौखिक सुनवाई) विचार की जाती है। यदि याचिका स्वीकार की जाती है, तो खुली अदालत में सुनवाई हो सकती है।
(iii) संसद के कानून: समीक्षा की शक्ति संसद द्वारा बनाए गए किसी कानून या अनुच्छेद 145 के नियमों के अधीन है। उदाहरण: सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की धारा 114 और आदेश 47 नियम 1 समीक्षा के सामान्य सिद्धांत प्रदान करते हैं, जो सर्वोच्च न्यायालय पर लागू हो सकते हैं।
4. महत्व: न्याय का सुधार: त्रुटियों को ठीक करने का अवसर। मौलिक अधिकारों की रक्षा: विशेष रूप से अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता)। न्यायिक प्रभुता: सर्वोच्च न्यायालय की विश्वसनीयता। कानूनी एकरूपता: गलत व्याख्याओं को सुधारना।
5. प्रमुख विशेषताएँ: समीक्षा की शक्ति: विवेकाधीन। आधार: स्पष्ट त्रुटि, नए साक्ष्य, अन्याय। नियम: अनुच्छेद 145 और सर्वोच्च न्यायालय नियम। सीमित दायरा: पुनर्विचार नहीं, केवल सुधार।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: केशव सिंह मामला (1965): विधायी विशेषाधिकारों पर समीक्षा। सबरीमाला मंदिर मामला (2019): समीक्षा याचिका में पुनर्विचार के लिए रेफरल। 2025 स्थिति: नागरिकता और पर्यावरण मामलों में समीक्षा याचिकाएँ।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित दायरा: समीक्षा याचिका को पुनर्विचार (rehearing) के रूप में उपयोग नहीं किया जा सकता। विवेकाधीन शक्ति: स्वीकृति में असंगति की आलोचना। न्यायिक कार्यभार: समीक्षा याचिकाओं से बोझ।
8. न्यायिक व्याख्या: रूपा अशोक हुर्रा बनाम अशोक हुर्रा (2002): समीक्षा के दायरे और क्यूरेटिव याचिका की अवधारणा। केशवानंद भारती (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, कर, पर्यावरण, और कॉर्पोरेट मामलों में समीक्षा याचिकाएँ। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत याचिकाओं का डिजिटल रिकॉर्ड। समीक्षा प्रक्रिया में पारदर्शिता पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 145: सर्वोच्च न्यायालय के नियम। अनुच्छेद 132-134: अपीलीय अधिकारिता। अनुच्छेद 136: विशेष अनुमति याचिका।
11. विशेष तथ्य: सबरीमाला (2019): समीक्षा रेफरल। 2025 याचिकाएँ: कर, पर्यावरण। क्यूरेटिव याचिका: समीक्षा के बाद उपाय। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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