Recent Blogs

Article 136 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:33:45
searchkre.com@gmail.com / 8392828781

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 136
अनुच्छेद 136 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय की विशेष अनुमति याचिका (Special Leave Petition SLP) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को किसी भी न्यायालय या अधिकरण के निर्णय, डिक्री, दंडादेश, या आदेश के खिलाफ विशेष अनुमति द्वारा अपील सुनने की व्यापक शक्ति देता है।
अनुच्छेद 136 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "(1) इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के होते हुए भी, सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेक से, भारत के राज्यक्षेत्र में किसी भी न्यायालय या अधिकरण द्वारा दीवानी, फौजदारी या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री, दंडादेश, अंतिम आदेश या अंतरिम आदेश से अपील की विशेष अनुमति दे सकता है।
(2) इस अनुच्छेद में कोई बात इस संविधान के अनुच्छेद 132, 133 या 134 के उपबंधों को प्रभावित नहीं करेगी।
(3) इस अनुच्छेद के अधीन दी गई किसी अपील में, सर्वोच्च न्यायालय, यदि वह उचित समझे, उस मामले में उठने वाले किसी भी प्रश्न पर विचार कर सकता है।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 136 सर्वोच्च न्यायालय को विशेष अनुमति याचिका (SLP) के माध्यम से व्यापक अपीलीय अधिकारिता प्रदान करता है, जिससे यह भारत के किसी भी न्यायालय या अधिकरण के निर्णय की समीक्षा कर सकता है। यह प्रावधान न्याय सुनिश्चित करने और कानूनी त्रुटियों को सुधारने के लिए एक असाधारण उपाय है। इसका लक्ष्य न्यायिक प्रभुता, मौलिक अधिकारों की रक्षा, और कानूनी एकरूपता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान ब्रिटिश सामान्य कानून में प्रिवी काउंसिल की शक्तियों से प्रेरित है, जो औपनिवेशिक भारत में अंतिम अपीलीय प्राधिकारी थी। भारतीय संदर्भ: संविधान लागू होने पर, सर्वोच्च न्यायालय को यह शक्ति दी गई ताकि यह निचली अदालतों और अधिकरणों की त्रुटियों को सुधार सके। प्रासंगिकता: यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को असाधारण मामलों में हस्तक्षेप करने की शक्ति देता है, विशेष रूप से जहाँ न्याय का गंभीर हनन हो।
3. अनुच्छेद 136 के प्रमुख तत्व: खंड (1): विशेष अनुमति याचिका (SLP) सर्वोच्च न्यायालय अपने विवेक से किसी भी न्यायालय (उच्च न्यायालय, जिला न्यायालय, आदि) या अधिकरण (जैसे आयकर अधिकरण, NCLT) के निर्णय, डिक्री, दंडादेश, या आदेश के खिलाफ अपील की अनुमति दे सकता है। यह अधिकारिता दीवानी, फौजदारी, या अन्य कार्यवाहियों पर लागू होती है। विवेकाधीन शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय स्वयं तय करता है कि अपील स्वीकार करनी है या नहीं।
सामान्य आधार: कानूनी त्रुटि: गंभीर कानूनी गलती। प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: निष्पक्ष सुनवाई की कमी। महत्वपूर्ण विधि प्रश्न: सामान्य महत्व का मुद्दा। उदाहरण: 2019 में, किसान आंदोलन से संबंधित अधिकरण के आदेश पर SLP।
खंड (2): अन्य अनुच्छेदों पर प्रभाव: अनुच्छेद 136 की शक्ति अनुच्छेद 132, 133, और 134 की अपीलीय अधिकारिता को प्रभावित नहीं करती। इसका अर्थ है कि SLP एक अतिरिक्त उपाय है, जो अन्य प्रावधानों से स्वतंत्र है।
खंड (3): अपील का दायरा: यदि SLP स्वीकार की जाती है, तो सर्वोच्च न्यायालय मामले में उठने वाले किसी भी प्रश्न पर विचार कर सकता है, न कि केवल उस प्रश्न तक सीमित रहता है जिसके आधार पर अनुमति दी गई। यह व्यापक शक्ति सर्वोच्च न्यायालय को पूर्ण न्याय करने की अनुमति देता है। उदाहरण: फौजदारी मामले में सजा की समीक्षा के साथ-साथ प्रक्रियात्मक त्रुटि पर विचार।
4. महत्व: न्याय का अंतिम मंच: सर्वोच्च न्यायालय को निचली अदालतों और अधिकरणों की त्रुटियों को सुधारने की शक्ति। मौलिक अधिकारों की रक्षा: विशेष रूप से अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता)। न्यायिक प्रभुता: सर्वोच्च न्यायालय का सर्वोच्च प्राधिकारी। कानूनी एकरूपता: कानून की व्याख्या में स्थिरता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: विशेष अनुमति: विवेकाधीन शक्ति। व्यापक दायरा: सभी न्यायालय और अधिकरण। स्वतंत्रता: अनुच्छेद 132-134 से अलग। पूर्ण न्याय: सभी प्रश्नों पर विचार।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: प्रितम सिंह बनाम पंजाब राज्य (1950): SLP के दायरे की प्रारंभिक व्याख्या। निर्भया मामला (2017): फौजदारी सजा पर SLP। 2025 स्थिति: कॉर्पोरेट, श्रम, और पर्यावरण अधिकरणों के आदेशों पर SLP।
7. चुनौतियाँ और विवाद: विवेकाधीन शक्ति का दुरुपयोग: कुछ मामलों में SLP की स्वीकृति पर असंगति की आलोचना। न्यायिक कार्यभार: SLP की संख्या से सर्वोच्च न्यायालय पर बोझ। सीमित समीक्षा: सामान्य रूप से तथ्यात्मक प्रश्नों पर हस्तक्षेप नहीं।
8. न्यायिक व्याख्या: प्रितम सिंह (1950): SLP केवल असाधारण मामलों में। केशवानंद भारती (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचा। पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य (1996): SLP के दायरे की व्याख्या।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, SLP के माध्यम से पर्यावरण, कर, और कॉर्पोरेट मामलों की समीक्षा। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत SLP का डिजिटल रिकॉर्ड। अधिकरणों के निर्णयों पर बढ़ता जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 132: संवैधानिक अपील। अनुच्छेद 133: दीवानी अपील। अनुच्छेद 134: फौजदारी अपील।
11. विशेष तथ्य: निर्भया (2017): SLP में सजा समीक्षा। 2025 मामले: पर्यावरण, कॉर्पोरेट। विवेकाधीन शक्ति: असाधारण उपयोग। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh searchkre.com@gmail.com 8392828781

Our Services

Scholarship Information

Add Blogging

Course Category

Add Blogs

Coaching Information

Add Blogging

Add Blogging

Add Blogging

Our Course

Add Blogging

Add Blogging

Hindi Preparation

English Preparation

SearchKre Course

SearchKre Services

SearchKre Course

SearchKre Scholarship

SearchKre Coaching

Loan Offer

JP GROUP

Head Office :- A/21 karol bag New Dellhi India 110011
Branch Office :- 1488, adrash nagar, hapur, Uttar Pradesh, India 245101
Contact With Our Seller & Buyer