Article 135 A of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:31:42
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 135
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 135
अनुच्छेद 135 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह संघीय न्यायालय की शक्तियों और अधिकारिता का सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रयोग (Jurisdiction and powers of the Federal Court under existing law to be exercisable by the Supreme Court) से संबंधित है। यह प्रावधान संविधान लागू होने से पहले की अवधि में संघीय न्यायालय (Federal Court) को प्राप्त शक्तियों और अधिकारिता को सर्वोच्च न्यायालय को हस्तांतरित करता है।
अनुच्छेद 135 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे, तब तक सर्वोच्च न्यायालय को वे सभी अधिकारिता और शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले भारत डोमिनियन में लागू किसी विधि के अधीन संघीय न्यायालय को प्राप्त थीं, और जो इस संविधान के उपबंधों के अधीन सर्वोच्च न्यायालय को नहीं दी गई हैं।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 135 एक संक्रमणकालीन प्रावधान (Transitional Provision) है, जो यह सुनिश्चित करता है कि संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) से पहले संघीय न्यायालय को प्राप्त शक्तियाँ और अधिकारिता सर्वोच्च न्यायालय को हस्तांतरित हो जाएँ, जब तक कि संसद कोई नया कानून न बनाए। यह न्यायिक निरंतरता और संवैधानिक स्थिरता को बनाए रखता है। इसका लक्ष्य संविधान लागू होने के बाद के शुरुआती दौर में न्यायिक शून्यता को रोकना था।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: संघीय न्यायालय (Federal Court) की स्थापना भारत सरकार अधिनियम, 1935 के तहत हुई थी। यह भारत डोमिनियन में सर्वोच्च न्यायिक संस्था थी, जो केंद्र और प्रांतों के बीच विवादों और अन्य मामलों को सुनती थी। संविधान लागू होने पर, सर्वोच्च न्यायालय ने संघीय न्यायालय की जगह ली। अनुच्छेद 135 ने इस हस्तांतरण को सुचारु बनाया। भारतीय संदर्भ: यह प्रावधान स्वतंत्रता के बाद के संक्रमणकाल में महत्वपूर्ण था, जब नई न्यायिक व्यवस्था स्थापित हो रही थी। प्रासंगिकता: वर्तमान में इस प्रावधान का उपयोग सीमित है, क्योंकि संसद ने अधिकांश मामलों में नए कानून बना दिए हैं, और सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता संविधान के अन्य अनुच्छेदों (जैसे 131, 132, 133, 134, 136) द्वारा परिभाषित हो चुकी है।
3. अनुच्छेद 135 के प्रमुख तत्व: (i) शक्तियों का हस्तांतरण: सर्वोच्च न्यायालय को वे सभी अधिकारिता और शक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो 26 जनवरी 1950 से ठीक पहले संघीय न्यायालय को भारत सरकार अधिनियम, 1935 या अन्य कानूनों के तहत प्राप्त थीं। यह उन मामलों पर लागू होता है, जो संविधान के उपबंधों के अधीन नहीं हैं। उदाहरण: 1950 के दशक में कुछ औपनिवेशिक कानूनों से संबंधित मामले।
(ii) संसद की शक्ति: यह हस्तांतरण तब तक लागू रहेगा, जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे। संसद को इन शक्तियों को संशोधित या समाप्त करने का अधिकार है। उदाहरण: संसद ने बाद में सर्वोच्च न्यायालय की अधिकारिता को अन्य कानूनों (जैसे सिविल प्रक्रिया संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता) के तहत विनियमित किया।
(iii) सीमाएँ: यह प्रावधान केवल उन मामलों पर लागू होता है, जो संविधान के अन्य प्रावधानों (जैसे अनुच्छेद 131, 132, 133, 134) के दायरे में नहीं आते। यह एक अस्थायी व्यवस्था थी, जो स्वतंत्रता के बाद के शुरुआती वर्षों में महत्वपूर्ण थी।
4. महत्व: न्यायिक निरंतरता: स्वतंत्रता के बाद संघीय न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय में शक्तियों का सुचारु हस्तांतरण। संवैधानिक स्थिरता: नई व्यवस्था में शून्यता से बचाव। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: सर्वोच्च न्यायालय की प्रभुता को मजबूत करना। संक्रमणकालीन प्रावधान: औपनिवेशिक कानूनों से संवैधानिक व्यवस्था में परिवर्तन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: संघीय न्यायालय की शक्तियाँ: सर्वोच्च न्यायालय को हस्तांतरण। संसद की शक्ति: संशोधन का अधिकार। सीमित दायरा: संविधान के बाहर के मामले। संक्रमणकालीन: अस्थायी व्यवस्था।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1950 के दशक: कुछ औपनिवेशिक कानूनों (जैसे, भारत सरकार अधिनियम, 1935) के तहत मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने संघीय न्यायालय की शक्तियों का प्रयोग किया। दिल्ली लॉज एक्ट मामले: शुरुआती दौर में अधिकारिता पर विचार। 2025 स्थिति: इस प्रावधान का उपयोग अब न्यूनतम, क्योंकि अधिकांश अधिकारिता अन्य अनुच्छेदों और कानूनों द्वारा परिभाषित।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित प्रासंगिकता: वर्तमान में इस प्रावधान का उपयोग दुर्लभ, क्योंकि नई कानूनी व्यवस्था स्थापित। अस्पष्टता: संविधान के बाहर के मामलों का दायरा स्पष्ट नहीं। न्यायिक समय: शुरुआती दौर में पुराने मामलों से कार्यभार।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। 1950s के मामले: संघीय न्यायालय की शक्तियों की व्याख्या।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, इस प्रावधान का उपयोग लगभग समाप्त। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत पुराने मामलों का डिजिटल रिकॉर्ड। आधुनिक कानूनों पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 131-134: अन्य अधिकारिताएँ। अनुच्छेद 136: विशेष अनुमति याचिका।
11. विशेष तथ्य: संक्रमणकालीन: 1950 में महत्वपूर्ण। 2025 प्रासंगिकता: न्यूनतम उपयोग। संघीय न्यायालय: 1935 अधिनियम। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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