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Article 134 A of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:29:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 134A.png

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 134A.png
अनुच्छेद 134A भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह उच्च न्यायालय द्वारा अपील के लिए प्रमाणपत्र (Certificate for appeal to the Supreme Court) से संबंधित है। यह प्रावधान अनुच्छेद 132, 133, और 134 के तहत अपील के लिए प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है। यह 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़ा गया था।
अनुच्छेद 134A का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"प्रत्येक उच्च न्यायालय, जो अनुच्छेद 132, अनुच्छेद 133 या अनुच्छेद 134 के अधीन किसी अपील के लिए प्रमाणपत्र देने का विचार कर रहा हो, वह ऐसा प्रमाणपत्र तभी देगा, जब वह मौखिक आवेदन पर तत्काल निर्णय देता हो, जो ऐसी अपील के लिए उपयुक्तता के लिए आवेदक द्वारा किया गया हो, और जहाँ ऐसा आवेदन किया जाता है, वह पक्षकारों को सुनने के बाद, संक्षिप्त कारणों सहित लिखित रूप में अपना निर्णय देगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 134A उच्च न्यायालयों द्वारा अनुच्छेद 132, 133, और 134 के तहत सर्वोच्च न्यायालय में अपील के लिए प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया को पारदर्शी और व्यवस्थित बनाता है। यह सुनिश्चित करता है कि प्रमाणपत्र केवल मौखिक आवेदन पर और पक्षकारों को सुनने के बाद, लिखित कारणों के साथ दिया जाए। इसका लक्ष्य न्यायिक पारदर्शिता, जवाबदेही, और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता को बढ़ावा देना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान 42वें संविधान संशोधन, 1976 द्वारा जोड़ा गया, जिसका उद्देश्य न्यायिक प्रक्रियाओं में सुधार और पारदर्शिता लाना था। भारतीय संदर्भ: उच्च न्यायालयों में प्रमाणपत्र देने की प्रक्रिया में असंगतियों की आलोचना के बाद यह प्रावधान लाया गया। प्रासंगिकता: यह प्रावधान अपील प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करता है और पक्षपात की आशंकाओं को कम करता है।
3. अनुच्छेद 134A के प्रमुख तत्व:
(i) मौखिक आवेदन: प्रमाणपत्र के लिए मौखिक आवेदन अनिवार्य है। यह सुनिश्चित करता है कि अपील की माँग औपचारिक रूप से और तत्काल दर्ज हो। उदाहरण: दीवानी या फौजदारी मामले में पक्षकार उच्च न्यायालय में मौखिक रूप से प्रमाणपत्र माँगता है।
(ii) पक्षकारों को सुनना: उच्च न्यायालय को पक्षकारों को सुनने के बाद निर्णय लेना होगा। यह प्राकृतिक न्याय (Natural Justice) के सिद्धांत को लागू करता है। उदाहरण: दोनों पक्षों को अपनी दलीलें प्रस्तुत करने का अवसर।
(iii) लिखित कारण: उच्च न्यायालय को अपने निर्णय के लिए संक्षिप्त लिखित कारण दर्ज करने होंगे। यह पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। उदाहरण: प्रमाणपत्र देने या अस्वीकार करने का कारण।
(iv) संबंधित अनुच्छेद: यह प्रावधान अनुच्छेद 132 (संवैधानिक व्याख्या), अनुच्छेद 133 (दीवानी मामले), और अनुच्छेद 134 (फौजदारी मामले) के तहत प्रमाणपत्रों पर लागू होता है।
4. महत्व: न्यायिक पारदर्शिता: लिखित कारणों से निर्णय की जवाबदेही। प्राकृतिक न्याय: पक्षकारों को सुनने की अनिवार्यता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: प्रक्रियात्मक निष्पक्षता। कानूनी एकरूपता: अपील प्रक्रिया में स्थिरता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: मौखिक आवेदन: अनिवार्य। पक्षकारों को सुनना: प्राकृतिक न्याय। लिखित कारण: पारदर्शिता। लागू अनुच्छेद: 132, 133, 134।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1976 के बाद: 42वें संशोधन के बाद प्रमाणपत्र प्रक्रिया में सुधार। 2000s: दीवानी और फौजदारी मामलों में प्रमाणपत्र पर निर्णय। 2025 स्थिति: पारदर्शी प्रक्रिया पर जोर।
7. चुनौतियाँ और विवाद: प्रमाणन में असंगति: उच्च न्यायालयों की भिन्न व्याख्या। न्यायिक समय: मौखिक सुनवाई और लिखित कारणों में समय। प्रक्रियात्मक बोझ: अतिरिक्त प्रक्रिया से देरी की आशंका।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचा। 1980s के मामले: प्रमाणपत्र प्रक्रिया की व्याख्या।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, प्रमाणपत्र प्रक्रिया में डिजिटल रिकॉर्डिंग। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड। अपीलों में पारदर्शिता पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक सुधारों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 132: संवैधानिक अपील। अनुच्छेद 133: दीवानी अपील। अनुच्छेद 134: फौजदारी अपी
11. विशेष तथ्य: 42वाँ संशोधन: 1976 में जोड़ा गया। 2025 प्रक्रिया: डिजिटल रिकॉर्ड। पारदर्शिता: लिखित कारण। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
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