Article 132of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:22:15
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 132
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 132
अनुच्छेद 132 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय की अपीलीय अधिकारिता (Appellate Jurisdiction of Supreme Court) से संबंधित है, विशेष रूप से उच्च न्यायालयों से दीवानी, फौजदारी, या अन्य कार्यवाहियों में अपील के मामलों में। यह प्रावधान उन मामलों में अपील की अनुमति देता है, जिनमें महत्वपूर्ण विधि का प्रश्न शामिल हो।
अनुच्छेद 132 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) किसी उच्च न्यायालय द्वारा दीवानी, फौजदारी या अन्य कार्यवाही में दिए गए किसी निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से सर्वोच्च न्यायालय में अपील तब की जा सकती है, यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करता है कि उस मामले में इस संविधान की व्याख्या से संबंधित कोई महत्वपूर्ण विधि का प्रश्न शामिल है।
(2) यदि उच्च न्यायालय ऐसी अपील की अनुमति देने से इन्कार करता है, तो सर्वोच्च न्यायालय उस उच्च न्यायालय के निर्णय, डिक्री या अंतिम आदेश से अपील की अनुमति दे सकता है, यदि वह संतुष्ट हो कि उस मामले में इस संविधान की व्याख्या से संबंधित कोई महत्वपूर्ण विधि का प्रश्न शामिल है।
(3) जहाँ ऐसी अपील की अनुमति दी जाती है, वह अपील केवल उस महत्वपूर्ण विधि के प्रश्न तक ही सीमित होगी, जो इस संविधान की व्याख्या से संबंधित है।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 132 सर्वोच्च न्यायालय को उच्च न्यायालयों के निर्णयों, डिक्रियों, या अंतिम आदेशों के खिलाफ अपीलीय अधिकारिता प्रदान करता है, बशर्ते मामला संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण विधि के प्रश्न से जुड़ा हो। यह सुनिश्चित करता है कि संवैधानिक व्याख्या के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय अंतिम प्राधिकारी बना रहे। यह संवैधानिक एकरूपता और न्यायिक प्रभुता को बनाए रखता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान अन्य लोकतांत्रिक प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय संवैधानिक मामलों में अंतिम अपीलीय प्राधिकारी होता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक और व्याख्याता है। अनुच्छेद 132 संवैधानिक व्याख्या के मामलों में इसकी भूमिका को मजबूत करता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान संवैधानिक विवादों में एकरूपता और स्पष्टता सुनिश्चित करता है।
3. अनुच्छेद 132 के प्रमुख तत्व: खंड (1): उच्च न्यायालय का प्रमाणन सर्वोच्च न्यायालय में अपील तभी हो सकती है, जब उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करे कि मामला संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण विधि के प्रश्न से जुड़ा है। यह लागू होता है: दीवानी मामलों (Civil cases): जैसे संपत्ति या अनुबंध विवाद। फौजदारी मामलों (Criminal cases): जैसे आपराधिक सजा। अन्य कार्यवाहियाँ: जैसे प्रशासकीय या कर मामले। उदाहरण: यदि उच्च न्यायालय यह प्रमाणित करता है कि अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) की व्याख्या शामिल है, तो अपील संभव।
खंड (2): विशेष अनुमति अपील (Special Leave to Appeal) यदि उच्च न्यायालय प्रमाणन देने से इन्कार करता है, तो सर्वोच्च न्यायालय स्वयं विशेष अनुमति दे सकता है, बशर्ते वह संतुष्ट हो कि मामला संविधान की व्याख्या से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को लचीलापन देता है। उदाहरण: 1970 के दशक में, कई मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने विशेष अनुमति दी।
खंड (3): अपील का दायरा अपील केवल संविधान की व्याख्या से संबंधित महत्वपूर्ण विधि के प्रश्न तक सीमित होगी। तथ्यात्मक प्रश्न या अन्य कानूनी मुद्दे इस दायरे में नहीं आते। उदाहरण: अपील में केवल अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) की व्याख्या पर विचार।
4. महत्व: संवैधानिक व्याख्या: सर्वोच्च न्यायालय संविधान का अंतिम व्याख्याता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: अपीलीय अधिकारिता से प्रभुता। संघीय संतुलन: केंद्र और राज्यों के अधिकारों की व्याख्या। न्यायिक एकरूपता: संवैधानिक मामलों में एकसमानता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: मूल अधिकारिता: संविधान की व्याख्या। उच्च न्यायालय का प्रमाणन: अनिवार्य या विशेष अनुमति। सीमित दायरा: केवल विधि का प्रश्न। विशेष अनुमति: सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: रोमेश ठापर बनाम मद्रास राज्य (1950): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) की व्याख्या। शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ (1951): संविधान संशोधन की वैधता पर। 2025 स्थिति: संवैधानिक व्याख्या पर अपीलें, जैसे कर या नागरिकता मामले।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित दायरा: केवल संवैधानिक व्याख्या तक सीमित, तथ्यात्मक विवाद बाहर। उच्च न्यायालय का इन्कार: प्रमाणन में असंगति की आलोचना। न्यायिक समय: अपीलों से कार्यभार बढ़ने की चुनौती।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती (1973): मूल ढांचे की अवधारणा, अनुच्छेद 132 के तहत। रोमेश ठापर (1950): अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की व्याख्या।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, नागरिकता संशोधन और कर कानूनों पर अपीलें। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत अपीलों का डिजिटल रिकॉर्ड। संवैधानिक व्याख्या पर जोर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच संवैधानिक मामलों पर बहस
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 131: मूल अधिकारिता। अनुच्छेद 133-134: दीवानी और फौजदारी अपील। अनुच्छेद 136: विशेष अनुमति याचिका।
11. विशेष तथ्य: शंकरी प्रसाद (1951): संशोधन पर। 2025 मामले: नागरिकता, कर। महत्वपूर्ण विधि: संवैधानिक व्याख्या। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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