Article 131 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:19:35
searchkre.com@gmail.com /
8392828781
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 131
अनुच्छेद 131 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय की मूल अधिकारिता (Original Jurisdiction of the Supreme Court) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय को केंद्र और राज्यों या राज्यों के बीच विवादों को सुनने का विशेष अधिकार देता है।
अनुच्छेद 131 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के अधीन रहते हुए, सर्वोच्च न्यायालय की मूल अधिकारिता होगी, निम्नलिखित के बीच किसी विवाद में— (क) भारत सरकार और एक या अधिक राज्यों के बीच; या
(ख) भारत सरकार और किसी राज्य या राज्यों के एक पक्ष पर और एक या अधिक अन्य राज्यों के दूसरे पक्ष पर; या
(ग) दो या अधिक राज्यों के बीच, यदि और जहाँ तक विवाद में कोई ऐसा प्रश्न (चाहे वह विधि का हो या तथ्य का) उठता हो, जिस पर इस संविधान के उपबंधों की व्याख्या पर या किसी विधि के अंतर्गत अधिकारों, कर्तव्यों या दायित्वों का निर्धारण निर्भर करता हो।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 131 सर्वोच्च न्यायालय को मूल अधिकारिता (Original Jurisdiction) प्रदान करता है, जिसके तहत यह केंद्र और राज्यों या राज्यों के बीच विवादों को सीधे सुन सकता है। यह संघीय ढांचे को मजबूत करता है, क्योंकि यह केंद्र और राज्यों के बीच संवैधानिक और कानूनी विवादों को निपटाने का एक तटस्थ मंच प्रदान करता है। इसका लक्ष्य संवैधानिक संतुलन और न्यायिक प्रभुता को बनाए रखना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान अन्य संघीय संविधानों, जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, से प्रेरित है, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय को संघ और राज्यों के बीच विवादों में मूल अधिकारिता प्राप्त है। भारतीय संदर्भ: भारत के संघीय ढांचे में केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों का विभाजन (सातवीं अनुसूची) होने के कारण विवाद उत्पन्न हो सकते हैं। अनुच्छेद 131 इन विवादों को सुलझाने का तंत्र प्रदान करता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान केंद्र-राज्य संबंधों में संवैधानिक विवादों को हल करने में महत्वपूर्ण है।
3. अनुच्छेद 131 के प्रमुख तत्व: (i) मूल अधिकारिता: सर्वोच्च न्यायालय की मूल अधिकारिता का अर्थ है कि वह इन विवादों को सीधे सुन सकता है, बिना किसी निचली अदालत के माध्यम के। यह अधिकारिता विशिष्ट (exclusive) है, यानी कोई अन्य अदालत इन मामलों को नहीं सुन सकती। विवाद के प्रकार: केंद्र और एक या अधिक राज्यों के बीच: जैसे, केंद्र द्वारा बनाए गए कानून पर विवाद। केंद्र और कुछ राज्यों बनाम अन्य राज्य: जैसे, जल विवाद। दो या अधिक राज्यों के बीच: जैसे, सीमा विवाद।
(ii) विवाद का दायरा: विवाद में विधि या तथ्य का प्रश्न शामिल होना चाहिए, जिस पर कानूनी अधिकारों का निर्धारण निर्भर करता हो। उदाहरण: जल बंटवारे, सीमा विवाद, या संवैधानिक व्याख्या से संबंधित मामले।
(iii) सीमाएँ: अनुच्छेद 131 में "इस संविधान के अन्य उपबंधों के अधीन" का उल्लेख है, जिसका अर्थ है कि यह अन्य संवैधानिक प्रावधानों, जैसे अनुच्छेद 262 (अंतर-राज्य जल विवाद), से सीमित हो सकता है। निजी पक्षों के मामले: निजी व्यक्तियों या गैर-सरकारी संस्थाओं के विवाद इस अधिकारिता में नहीं आते।
उदाहरण: पश्चिम बंगाल बनाम भारत संघ (1963): पश्चिम बंगाल ने केंद्र के कानून को चुनौती दी। कावेरी जल विवाद: कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच।
4. महत्व: संघीय संतुलन: केंद्र और राज्यों के बीच विवादों का निपटारा। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: तटस्थ मंच के रूप में सर्वोच्च न्यायालय। शक्ति पृथक्करण: कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र समाधान। संवैधानिक व्याख्या: संविधान के उपबंधों की व्याख्या में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका।
5. प्रमुख विशेषताएँ: मूल अधिकारिता: विशिष्ट और सीधा। विवाद का दायरा: केंद्र-राज्य, राज्य-राज्य। कानूनी अधिकार: विधि और तथ्य पर आधारित। सीमाएँ: अन्य संवैधानिक प्रावधान।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: पश्चिम बंगाल बनाम भारत संघ (1963): केंद्र की विधायी शक्ति की वैधता पर। कावेरी जल विवाद (1990s-2020s): कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच जल बंटवारा। 2025 स्थिति: अंतर-राज्य जल विवादों और केंद्र-राज्य कर विवादों पर सुनवाई।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित दायरा: केवल सरकारी पक्षों के बीच विवाद, निजी पक्ष बाहर। अनुच्छेद 262 का प्रभाव: अंतर-राज्य जल विवादों में सीमित अधिकारिता। न्यायिक समय: जटिल विवादों में समय और संसाधन की चुनौती।
8. न्यायिक व्याख्या: पश्चिम बंगाल बनाम भारत संघ (1963): अनुच्छेद 131 के दायरे की व्याख्या। केशवानंद भारती (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचा। कावेरी जल विवाद (2018): सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, जल विवाद और कर बंटवारे पर मामले लंबित। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत विवादों का डिजिटल रिकॉर्ड। केंद्र-राज्य संबंधों में तनाव, विशेष रूप से वित्तीय बंटवारे पर। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच संघीय विवादों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 131A: (अब निरस्त, 42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया, 43वें द्वारा हटाया गया)। अनुच्छेद 262: अंतर-राज्य जल विवाद।
11. विशेष तथ्य: कावेरी विवाद: लंबे समय तक चला। 2025 मामले: जल और कर विवाद। मूल अधिकारिता: विशिष्ट और सीमित। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
Thanks For Read
jp Singh
searchkre.com@gmail.com
8392828781