Article 129 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:13:22
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 129
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 129
अनुच्छेद 129 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय को रिकॉर्ड का न्यायालय (Supreme Court to be a court of record) घोषित करता है और इसे अवमानना की शक्ति प्रदान करता है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा, प्राधिकार, और स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 129 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"सर्वोच्च न्यायालय रिकॉर्ड का न्यायालय होगा और उसकी अपनी अवमानना को दंडित करने की शक्ति सहित ऐसी सभी शक्तियाँ होंगी जो रिकॉर्ड के न्यायालय को प्राप्त होती हैं।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 129 सर्वोच्च न्यायालय को रिकॉर्ड का न्यायालय (Court of Record) के रूप में स्थापित करता है, जिसका अर्थ है कि इसके निर्णय और कार्यवाही स्थायी रिकॉर्ड के रूप में रखे जाते हैं और कानूनी रूप से बाध्यकारी होते हैं। यह सर्वोच्च न्यायालय को अपनी अवमानना को दंडित करने की शक्ति देता है, ताकि इसकी गरिमा और प्राधिकार की रक्षा हो। यह प्रावधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता और न्यायिक प्रभुता को सुनिश्चित करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान ब्रिटिश सामान्य कानून (Common Law) से प्रेरित है, जहाँ उच्च न्यायालयों को रिकॉर्ड का न्यायालय माना जाता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक और अंतिम व्याख्याता है। अनुच्छेद 129 इसकी सर्वोच्चता और स्वतंत्रता को मजबूत करता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान न्यायालय की गरिमा को बनाए रखने और इसके निर्णयों को बाध्यकारी बनाने में महत्वपूर्ण है।
3. अनुच्छेद 129 के प्रमुख तत्व: (i) रिकॉर्ड का न्यायालय: अर्थ: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय और कार्यवाही स्थायी रिकॉर्ड के रूप में रखे जाते हैं। ये रिकॉर्ड कानूनी प्रमाण के रूप में स्वीकार्य हैं और इनका नजीर (precedent) के रूप में उपयोग होता है। इसके निर्णय बाध्यकारी होते हैं और निचली अदालतों पर लागू होते हैं (अनुच्छेद 141 के तहत)। उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय, जैसे केशवानंद भारती (1973), नजीर के रूप में उपयोग किए जाते हैं।
(ii) अवमानना की शक्ति: सर्वोच्च न्यायालय को अपनी अवमानना को दंडित करने की शक्ति प्राप्त है। अवमानना के प्रकार: नागरिक अवमानना (Civil Contempt): न्यायालय के आदेशों का जानबूझकर उल्लंघन। आपराधिक अवमानना (Criminal Contempt): न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाली टिप्पणियाँ, प्रकाशन, या कार्य। कानूनी आधार: अवमानना अधिनियम, 1971 इस शक्ति को विनियमित करता है। उदाहरण: 2017 में, जस्टिस सी.एस. करनन को अवमानना के लिए 6 माह की सजा।
4. महत्व: न्यायपालिका की स्वतंत्रता: अवमानना की शक्ति से न्यायालय का प्राधिकार और गरिमा बरकरार रहती है। न्यायिक प्रभुता: रिकॉर्ड का न्यायालय होने से निर्णय बाध्यकारी और नजीर बनते हैं। शक्ति पृथक्करण: कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्रता। लोकतांत्रिक जवाबदेही: अवमानना की शक्ति से न्यायिक प्रक्रिया की पवित्रता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: रिकॉर्ड का न्यायालय: स्थायी रिकॉर्ड और बाध्यकारी निर्णय। अवमानना की शक्ति: नागरिक और आपराधिक। न्यायिक प्रभुता: नजीर की शक्ति। संवैधानिक आधार: स्वतंत्रता की गारंटी।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1961: ई.एम.एस. नंबूदरीपाद मामला: केरल के मुख्यमंत्री की टिप्पणी को अवमानना माना गया। 1996: शिवनाथ शिंदे मामला: अवमानना के लिए सजा। 2017: जस्टिस सी.एस. करनन: अवमानना के लिए 6 माह की जेल।
7. चुनौतियाँ और विवाद: अवमानना की शक्ति का दुरुपयोग: कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता (अनुच्छेद 19) को सीमित करता है। न्यायिक जवाबदेही: अवमानना की शक्ति की आलोचना, क्योंकि यह न्यायालय को असीमित शक्ति देती है। न्यायिक समीक्षा: अवमानना के मामलों में सीमित समीक्षा।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। सी.के. दफ्तरी बनाम ओ.पी. गुप्ता (1971): अवमानना की शक्ति की व्याख्या। प्रशांत भूषण मामला (2020): ट्वीट्स को अवमानना माना गया, लेकिन सजा न्यूनतम।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, अवमानना मामलों में पारदर्शिता की माँग।
प्रासंगिकता: डिजिटल युग में सोशल मीडिया टिप्पणियों पर अवमानना की शक्ति का उपयोग। डिजिटल संसद पहल के तहत अवमानना मामलों का रिकॉर्ड। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच अवमानना कानून और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 141: निर्णयों की बाध्यकारी प्रकृति। अनुच्छेद 215: उच्च न्यायालयों के लिए रिकॉर्ड का न्यायालय।
11. विशेष तथ्य: 2017 करनन मामला: ऐतिहासिक सजा। 2020 प्रशांत भूषण: सोशल मीडिया और अवमानना। 2025 डिजिटल युग: अवमानना की नई चुनौतियाँ। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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