Article 128 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 13:11:12
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 128
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 128
अनुच्छेद 128 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह सर्वोच्च न्यायालय के सत्रों में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की उपस्थिति (Attendance of retired Judges at sittings of the Supreme Court) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को विशेष परिस्थितियों में अस्थायी रूप से सत्रों में भाग लेने की अनुमति देता है।
अनुच्छेद 128 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"इस संविधान के किसी अन्य उपबंध के होते हुए भी, भारत का मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन से, किसी भी समय, सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के किसी ऐसे व्यक्ति से, जो पहले सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश रह चुका हो, लिखित में अनुरोध कर सकता है कि वह सर्वोच्च न्यायालय के सत्रों में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में उपस्थित हो, और ऐसी अवधि के लिए, जैसी आवश्यक हो, वह व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय के सत्रों में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए उपस्थित हो सकता है, और इस तरह कार्य करते समय वह सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश की सभी शक्तियों, विशेषाधिकारों और कर्तव्यों का हकदार होगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 128 का उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय को विशेष परिस्थितियों में, जैसे भारी कार्यभार या कोरम की कमी, में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को तदर्थ (ad hoc) न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की अनुमति देना है। यह न्यायिक दक्षता और निरंतरता सुनिश्चित करता है, विशेष रूप से तब जब स्थायी न्यायाधीशों की संख्या अपर्याप्त हो। यह प्रावधान न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए अनुभवी न्यायाधीशों की विशेषज्ञता का उपयोग करता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान अन्य लोकतांत्रिक प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को अस्थायी रूप से न्यायिक कार्यों के लिए बुलाया जा सकता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, सर्वोच्च न्यायालय पर भारी कार्यभार और रिक्तियों की समस्या रही है। अनुच्छेद 128 इस स्थिति में लचीलापन प्रदान करता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष रूप से जटिल या महत्वपूर्ण मामलों में अनुभवी न्यायाधीशों की सहायता लेने के लिए उपयोगी है।
3. अनुच्छेद 128 का विश्लेषण: नियुक्ति की प्रक्रिया: मुख्य न्यायाधीश (CJI), राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन के साथ, किसी सेवानिवृत्त सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है। यह अनुरोध लिखित रूप में होना चाहिए। योग्यता: केवल वही व्यक्ति पात्र हैं जो पहले सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश रह चुके हों।
शक्तियाँ और विशेषाधिकार: तदर्थ न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की तरह सभी शक्तियाँ, विशेषाधिकार, और कर्तव्य प्राप्त होंगे। उदाहरण: 1988 में, जटिल मामलों के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को तदर्थ नियुक्त किया गया।
4. महत्व: न्यायिक निरंतरता: भारी कार्यभार या रिक्तियों में कार्यवाही निर्बाध। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति से बाहरी प्रभाव से बचाव। शक्ति पृथक्करण: राष्ट्रपति की मंजूरी मंत्रिपरिषद की सलाह पर, जो संवैधानिक संतुलन बनाए रखती है। अनुभव का उपयोग: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की विशेषज्ञता का लाभ।
5. प्रमुख विशेषताएँ: तदर्थ न्यायाधीश: सेवानिवृत्त न्यायाधीशों से। CJI की भूमिका: अनुरोध शुरू करना। राष्ट्रपति की मंजूरी: मंत्रिपरिषद की सलाह पर। शक्तियाँ: स्थायी न्यायाधीशों के समान।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1988: जटिल संवैधानिक मामलों के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति। 2000s: कार्यभार प्रबंधन के लिए सीमित उपयोग। 2025 स्थिति: कोई हालिया तदर्थ नियुक्ति की स्पष्ट रिपोर्ट नहीं, लेकिन कार्यभार के कारण विचार संभव।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित उपयोग: यह प्रावधान दुर्लभ रूप से उपयोग होता है, क्योंकि स्थायी नियुक्तियाँ प्राथमिकता। कार्यपालिका का प्रभाव: राष्ट्रपति की मंजूरी में कार्यपालिका की सलाह की आशंका। न्यायिक समीक्षा: तदर्थ नियुक्तियाँ सामान्य रूप से समीक्षा योग्य नहीं, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा संभव।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): नियुक्तियों में कार्यपालिका का सीमित प्रभाव।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, कोलेजियम ने रिक्तियों को भरने की सिफारिश की, जिससे तदर्थ नियुक्तियों की आवश्यकता कम। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत नियुक्ति प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड। भारी कार्यभार के कारण तदर्थ नियुक्तियों पर विचार संभव। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक नियुक्तियों और कार्यभार प्रबंधन पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 126: कार्यवाहक CJI। अनुच्छेद 127: तदर्थ न्यायाधीश (उच्च न्यायालय से)।
11. विशेष तथ्य: सेवानिवृत्त न्यायाधीश: तदर्थ नियुक्ति पात्र। 1988 नियुक्तियाँ: जटिल मामलों के लिए। 2025 कार्यभार: रिक्तियों पर चर्चा। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा।
Conclusion
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