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Article 127 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:09:16
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 127

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 127
अनुच्छेद 127 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति (Appointment of ad hoc Judges) से संबंधित है। यह प्रावधान सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी होने पर अस्थायी रूप से तदर्थ (ad hoc) न्यायाधीशों की नियुक्ति की व्यवस्था करता है, ताकि न्यायिक कार्य बाधित न हो।
अनुच्छेद 127 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) यदि किसी समय सर्वोच्च न्यायालय में कोरम की कमी के कारण मुख्य न्यायाधीश, भारत के राष्ट्रपति के पूर्व अनुमोदन और भारत के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श से, किसी उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश से अनुरोध कर सकता है कि वह सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में भाग लेने के लिए उपस्थित हो, और इस प्रकार अनुरोधित कोई भी व्यक्ति, जब वह इस प्रकार कार्य करता है, तब तक सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश की सभी शक्तियों और विशेषाधिकारों का हकदार होगा।
(2) इस अनुच्छेद के अधीन तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त कोई व्यक्ति, यदि वह उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नहीं है, तो भी उच्च न्यायालय में अपने कर्तव्यों का पालन करना जारी रखेगा, जब तक कि वह सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य कर रहा हो।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 127 का उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की कमी होने पर तदर्थ न्यायाधीश नियुक्त करके न्यायिक कार्यवाही की निरंतरता सुनिश्चित करना है। यह प्रावधान न्यायिक दक्षता और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखता है। यह उच्च न्यायालयों के योग्य न्यायाधीशों को अस्थायी रूप से सर्वोच्च न्यायालय में सेवा देने की अनुमति देता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान अन्य लोकतांत्रिक प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय में रिक्तियों को अस्थायी नियुक्तियों से भरा जाता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, सर्वोच्च न्यायालय के पास भारी कार्यभार और सीमित संख्या में न्यायाधीश (वर्तमान में 34) हैं। अनुच्छेद 127 रिक्तियों या असमर्थता के समय कार्यभार को संभालने में मदद करता है। प्रासंगिकता: यह प्रावधान विशेष रूप से तब महत्वपूर्ण है जब कई न्यायाधीश अनुपस्थित हों या रिक्तियाँ हों।
3. अनुच्छेद 127 के प्रमुख उपखंड: खंड (1): तदर्थ न्यायाधीश की नियुक्ति यदि सर्वोच्च न्यायालय में कोरम की कमी हो (अर्थात, आवश्यक संख्या में न्यायाधीश उपलब्ध न हों), तो: मुख्य न्यायाधीश (CJI), राष्ट्रपति के अनुमोदन और संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बाद, किसी उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य करने का अनुरोध कर सकता है। तदर्थ न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की तरह सभी शक्तियाँ और विशेषाधिकार प्राप्त होंगे। योग्यता: तदर्थ न्यायाधीश को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता (अनुच्छेद 124(3)) पूरी करनी होगी। उदाहरण: 1980 के दशक में, उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को तदर्थ नियुक्तियाँ दी गईं।
खंड (2): उच्च न्यायालय के कर्तव्यों का पालन तदर्थ न्यायाधीश, यदि वह उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नहीं है, तो उच्च न्यायालय में अपने कर्तव्यों को जारी रखेगा, जब तक कि वह सर्वोच्च न्यायालय में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में कार्य न कर रहा हो। उद्देश्य: यह सुनिश्चित करता है कि उच्च न्यायालय का कार्य भी बाधित न हो।
4. महत्व: न्यायिक निरंतरता: सर्वोच्च न्यायालय में कोरम की कमी होने पर कार्यवाही निर्बाध। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: तदर्थ नियुक्तियाँ न्यायपालिका के भीतर से। शक्ति पृथक्करण: राष्ट्रपति की मंजूरी मंत्रिपरिषद की सलाह पर, जो संतुलन बनाए रखती है। लचीलापन: अस्थायी नियुक्तियों से कार्यभार प्रबंधन।
5. प्रमुख विशेषताएँ: तदर्थ न्यायाधीश: उच्च न्यायालय से। CJI की भूमिका: अनुरोध और परामर्श। राष्ट्रपति की मंजूरी: मंत्रिपरिषद की सलाह पर। उच्च न्यायालय कर्तव्य: समवर्ती रूप से।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1980s: भारी कार्यभार के कारण उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को तदर्थ नियुक्तियाँ। 2019: रिक्तियों के कारण तदर्थ नियुक्तियों पर विचार। 2025 स्थिति: कोई हालिया तदर्थ नियुक्ति की रिपोर्ट नहीं, लेकिन कार्यभार प्रबंधन पर चर्चा।
7. चुनौतियाँ और विवाद: सीमित उपयोग: तदर्थ नियुक्तियाँ दुर्लभ हैं, क्योंकि स्थायी नियुक्तियाँ प्राथमिकता। कार्यपालिका का प्रभाव: राष्ट्रपति की मंजूरी में कार्यपालिका की सलाह की आशंका। न्यायिक समीक्षा: तदर्थ नियुक्तियाँ सामान्य रूप से समीक्षा योग्य नहीं, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा संभव।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): नियुक्तियों में कार्यपालिका का सीमित प्रभाव।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, कोलेजियम ने रिक्तियों को भरने की सिफारिश की, तदर्थ नियुक्तियों की आवश्यकता कम।
प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत नियुक्ति प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड। भारी कार्यभार के कारण तदर्थ नियुक्तियों पर विचार। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक नियुक्तियों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 126: कार्यवाहक CJI। अनुच्छेद 217: उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश।
11. विशेष तथ्य: तदर्थ नियुक्तियाँ: दुर्लभ लेकिन महत्वपूर्ण। 2025 कार्यभार: रिक्तियों पर चर्चा। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा। उच्च न्यायालय कर्तव्य: समवर्ती।
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