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Article 126 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 13:07:10
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 126

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 126
अनुच्छेद 126 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय IV (संघीय न्यायपालिका) में आता है। यह कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति (Appointment of acting Chief Justice) से संबंधित है। यह प्रावधान तब लागू होता है जब भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) का पद रिक्त हो या CJI अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो।
अनुच्छेद 126 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"जब भारत के मुख्य न्यायाधीश का पद रिक्त हो या जब मुख्य न्यायाधीश अनुपस्थिति या अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तो राष्ट्रपति, सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्य करने के लिए नियुक्त करेगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 126 यह सुनिश्चित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय का प्रशासनिक और न्यायिक नेतृत्व निर्बाध रूप से चलता रहे, भले ही मुख्य न्यायाधीश (CJI) का पद रिक्त हो या CJI अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो। यह न्यायपालिका की निरंतरता और संवैधानिक स्थिरता को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है। यह राष्ट्रपति को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश नियुक्त करने की शक्ति देता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान अन्य लोकतांत्रिक प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ सर्वोच्च न्यायालय के नेतृत्व में रिक्तता को भरने के लिए अस्थायी व्यवस्था की जाती है। भारतीय संदर्भ: भारत में, सर्वोच्च न्यायालय संविधान का संरक्षक है, और CJI इसका प्रशासक। यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि CJI की अनुपस्थिति में भी न्यायिक कार्य बाधित न हों। प्रासंगिकता: यह प्रावधान CJI की अनुपस्थिति में त्वरित और प्रभावी नेतृत्व सुनिश्चित करता है।
3. अनुच्छेद 126 का विश्लेषण: नियुक्ति की शर्तें: पद रिक्त होने पर: CJI की मृत्यु, इस्तीफा, या महाभियोग के कारण। अनुपस्थिति या असमर्थता: जैसे बीमारी, अवकाश, या अन्य कारण। राष्ट्रपति की शक्ति: राष्ट्रपति सर्वोच्च न्यायालय के किसी अन्य न्यायाधीश को कार्यवाहक CJI नियुक्त करता है। यह नियुक्ति आमतौर पर वरिष्ठता के आधार पर होती है, हालांकि संविधान में यह अनिवार्य नहीं है। उदाहरण: 2022 में, CJI एन.वी. रमना की अनुपस्थिति में जस्टिस यू.यू. ललित को कार्यवाहक CJI नियुक्त किया गया।
4. महत्व: न्यायिक निरंतरता: CJI की अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का सुचारु संचालन। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: कार्यवाहक CJI की नियुक्ति न्यायपालिका के भीतर से। शक्ति पृथक्करण: राष्ट्रपति की शक्ति मंत्रिपरिषद की सलाह पर, जो संवैधानिक संतुलन बनाए रखती है। लोकतांत्रिक जवाबदेही: अस्थायी नियुक्ति से स्थिरता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: कार्यवाहक CJI: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश से। राष्ट्रपति की शक्ति: मंत्रिपरिषद की सलाह पर। वरिष्ठता का रिवाज: गैर-अनिवार्य लेकिन प्रथागत। अस्थायी व्यवस्था: रिक्तता या असमर्थता तक।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1973: CJI सिकरी की सेवानिवृत्ति के बाद जस्टिस ए.एन. रे कार्यवाहक CJI। 2018: CJI दीपक मिश्रा की अनुपस्थिति में जस्टिस रंजन गोगोई कार्यवाहक। 2022: जस्टिस यू.यू. ललित कार्यवाहक CJI।
7. चुनौतियाँ और विवाद: वरिष्ठता का विवाद: हालांकि वरिष्ठता प्रथागत है, कुछ मामलों में जूनियर न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सवाल उठे। कार्यपालिका का प्रभाव: राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं, जिससे कार्यपालिका के प्रभाव की आशंका। न्यायिक समीक्षा: कार्यवाहक CJI की नियुक्ति सामान्य रूप से समीक्षा योग्य नहीं, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा संभव।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): कार्यवाहक नियुक्तियों में कार्यपालिका का सीमित प्रभाव।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। CJI: डी.वाई. चंद्रचूड़। 2025 में, कोई कार्यवाहक CJI नियुक्ति की हालिया रिपोर्ट नहीं। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत नियुक्ति प्रक्रिया का डिजिटल रिकॉर्ड। कोलेजियम प्रणाली के तहत नियुक्तियों में पारदर्शिता की माँग। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायिक नियुक्तियों पर बहस।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय का गठन। अनुच्छेद 125: न्यायाधीशों का वेतन। अनुच्छेद 127: तदर्थ न्यायाधीश।
11. विशेष तथ्य: वरिष्ठता का रिवाज: प्रथागत लेकिन गैर-अनिवार्य। 2022 नियुक्ति: जस्टिस यू.यू. ललित। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा। अस्थायी प्रकृति: रिक्तता तक सीमित।
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