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Article 123 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 12:52:04
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 123

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 123
अनुच्छेद 123 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय II (संसद) में आता है। यह राष्ट्रपति की अध्यादेश प्रख्यापित करने की शक्ति (Power of President to promulgate Ordinances) से संबंधित है। यह प्रावधान राष्ट्रपति को संसद के सत्र में न होने पर तत्काल आवश्यकता के लिए अध्यादेश जारी करने की शक्ति देता है।
अनुच्छेद 123 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) यदि किसी समय, सिवाय इसके कि जब संसद के दोनों सदन सत्र में हों, राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि ऐसी परिस्थितियाँ विद्यमान हैं जो तत्काल कार्यवाही करना आवश्यक बनाती हैं, तो वह ऐसी अध्यादेश प्रख्यापित कर सकता है जैसी परिस्थितियों में उचित प्रतीत हो, और वह ऐसी अध्यादेश प्रख्यापित कर सकता है जो संसद के किसी विधेयक के समान प्रभाव और शक्ति रखेगी।
(2) इस अनुच्छेद के अधीन प्रख्यापित कोई भी अध्यादेश—
(क) संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखी जाएगी और उस समय से छह सप्ताह की समाप्ति पर या उस समय से पहले, यदि दोनों सदनों द्वारा अस्वीकृत करने का संकल्प पारित कर दिया जाए, प्रभावहीन हो जाएगी:
परंतु यह कि यदि और जब तक दोनों सदनों द्वारा ऐसा संकल्प पारित नहीं किया जाता, तब तक वह अध्यादेश उस समय से छह सप्ताह की समाप्ति पर प्रभावहीन हो जाएगी जब वह सदन, जो पहले सत्र में आता है, अपने पहले सत्र की समाप्ति के बाद छह सप्ताह की समाप्ति पर या उससे पहले, यदि वह सदन उस अध्यादेश को अस्वीकृत करने का संकल्प पारित कर देता है।
(ख) उसे संसद द्वारा विधि द्वारा प्रतिस्थापित किए जाने से पहले किसी भी समय राष्ट्रपति द्वारा वापस लिया जा सकता है।
स्पष्टीकरण—जहाँ संसद के दोनों सदन विभिन्न तारीखों पर सत्र में बुलाए जाते हैं, वहाँ इस खंड में 'वह समय जब संसद का वह सदन अपने पहले सत्र में आता है' के उल्लेख को उस तारीख के रूप में समझा जाएगा जिस दिन बाद में सत्र में बुलाया गया सदन अपने पहले सत्र में आता है।
(3) यदि और जहाँ तक कोई अध्यादेश इस अनुच्छेद के अधीन ऐसी बातों का उपबंध करता है जो संसद के किसी विधान द्वारा किए गए उपबंधों के साथ असंगत हैं, तो वह अध्यादेश उस सीमा तक प्रभावहीन होगी।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को संसद के सत्र में न होने पर अध्यादेश (Ordinance) जारी करने की शक्ति देता है, जब तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता हो। यह कार्यपालिका को आपातकालीन परिस्थितियों में त्वरित विधायी कार्रवाई करने की अनुमति देता है। यह सुनिश्चित करता है कि अध्यादेश संसद की निगरानी के अधीन रहें और अस्थायी हों।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान भारत शासन अधिनियम, 1935 से प्रेरित है, जिसमें वायसराय को अध्यादेश जारी करने की शक्ति थी। भारतीय संदर्भ: भारत में, यह प्रावधान कार्यपालिका को विधायी शक्ति देता है, लेकिन संसद की अंतिम प्रभुता को बनाए रखता है। प्रासंगिकता: यह सरकार को तत्काल नीतिगत जरूरतों, जैसे आपातकाल, आर्थिक सुधार, या प्राकृतिक आपदा, में कार्य करने की अनुमति देता है।
3. अनुच्छेद 123 के प्रमुख उपखंड: खंड (1): अध्यादेश प्रख्यापन राष्ट्रपति अध्यादेश तब जारी कर सकते हैं, जब: संसद के दोनों सदन (लोकसभा और राज्यसभा) सत्र में न हों। राष्ट्रपति संतुष्ट हों कि तत्काल कार्यवाही की आवश्यकता है। अध्यादेश का प्रभाव संसद के विधान के समान होता है। उदाहरण: 2020 में, कृषि सुधार अध्यादेश कोविड-19 के दौरान जारी।
खंड (2): अध्यादेश की अवधि और निगरानी संसद के समक्ष प्रस्तुति: अध्यादेश को संसद के दोनों सदनों के समक्ष रखा जाना चाहिए। यह संसद के पुन: एकत्र होने के 6 सप्ताह बाद या दोनों सदनों द्वारा अस्वीकृति पर प्रभावहीन हो जाता है। वापसी: राष्ट्रपति अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकते हैं। स्पष्टीकरण: यदि दोनों सदन अलग-अलग तारीखों पर सत्र में आते हैं, तो 6 सप्ताह की गणना बाद की तारीख से होगी।
उदाहरण: 2015 में, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को संसद की अस्वीकृति के कारण वापस लिया गया।
खंड (3): अध्यादेश की वैधता यदि अध्यादेश ऐसी बातों का उपबंध करता है जो संसद के विधान के रूप में वैध नहीं हो सकते, तो वह उस सीमा तक अमान्य होगा। उदाहरण: यदि अध्यादेश मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है, तो वह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकता है।
4. महत्व: कार्यपालिका की शक्ति: तत्काल विधायी कार्रवाई के लिए लचीलापन। संसदीय निगरानी: अध्यादेश को संसद की मंजूरी की आवश्यकता। शक्ति पृथक्करण: कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन। लोकतांत्रिक जवाबदेही: अध्यादेश अस्थायी, संसद द्वारा समीक्षा योग्य।
5. प्रमुख विशेषताएँ: अध्यादेश की शक्ति: संसद के सत्र में न होने पर।
6 सप्ताह की अवधि: संसद की समीक्षा। राष्ट्रपति की भूमिका: मंत्रिपरिषद की सलाह पर। न्यायिक समीक्षा: संवैधानिक उल्लंघन पर संभव।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1982: राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश: आंतरिक सुरक्षा के लिए। 2015: भूमि अधिग्रहण अध्यादेश: विवाद के बाद वापस लिया गया। 2020: कृषि अध्यादेश: बाद में विधेयक के रूप में पारित, फिर वापस लिया गया।
7. चुनौतियाँ और विवाद: अध्यादेश का दुरुपयोग: विपक्ष अक्सर दावा करता है कि अध्यादेश का उपयोग संसद को दरकिनार करने के लिए होता है। न्यायिक समीक्षा: अध्यादेश की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार हस्तक्षेप किया, जैसे डी.सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य (1987) में पुन:प्रख्यापन पर रोक। लोकतांत्रिक चिंताएँ: अध्यादेश की अस्थायी प्रकृति के बावजूद, लगातार उपयोग पर सवाल।
8. न्यायिक व्याख्या: डी.सी. वाधवा बनाम बिहार राज्य (1987): सुप्रीम कोर्ट ने अध्यादेशों के पुन:प्रख्यापन को असंवैधानिक माना। कृष्ण कुमार सिंह बनाम बिहार राज्य (2017): अध्यादेश संसद के समक्ष रखना अनिवार्य। केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): अध्यादेश मूल ढांचे के अधीन।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। 2025 में, डिजिटल अर्थव्यवस्था और साइबर सुरक्षा के लिए अध्यादेश पर चर्चा। प्रासंगिकता: विपक्ष ने अध्यादेश के उपयोग पर सवाल उठाए, विशेष रूप से डिजिटल गोपनीयता पर। डिजिटल संसद पहल के तहत अध्यादेश प्रक्रिया रिकॉर्ड। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच अध्यादेश की आवश्यकता पर तनाव।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 85: संसद का सत्र। अनुच्छेद 213: राज्यपाल की अध्यादेश शक्ति। अनुच्छेद 123: राष्ट्रपति की अध्यादेश शक्ति।
11. विशेष तथ्य: 1987 वाधवा मामला: पुन:प्रख्यापन पर रोक। 2020 कृषि अध्यादेश: विवाद और वापसी। 2025 डिजिटल अध्यादेश: साइबर सुरक्षा। संसदीय निगरानी: 6 सप्ताह की सीमा।
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