Article 122 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 12:49:30
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 122
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 122
अनुच्छेद 122 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय II (संसद) में आता है। यह संसद की कार्यवाही की वैधता पर न्यायालयों द्वारा प्रश्न उठाने पर प्रतिबंध (Courts not to inquire into proceedings of Parliament) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद की आंतरिक कार्यवाही को प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के आधार पर न्यायिक समीक्षा से बचाता है, जिससे संसद की स्वायत्तता और शक्ति पृथक्करण सुनिश्चित होता है।
अनुच्छेद 122 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) संसद की कार्यवाही की वैधता को, इस आधार पर कि वह कार्यवाही इस संविधान के उपबंधों के अनुसार नहीं थी, किसी भी न्यायालय में प्रश्न नहीं किया जाएगा।
(2) संसद का कोई भी अधिकारी या सदस्य, जिसके अधीन वह अपनी शक्तियों का प्रयोग करता है, इस आधार पर कि ऐसी शक्तियों का प्रयोग नियमित रूप से नहीं हुआ, किसी भी न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं होगा।"
विस्तृत विश्लेषण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 122 संसद की आंतरिक कार्यवाही को न्यायिक समीक्षा से संरक्षण प्रदान करता है, जब तक कि यह केवल प्रक्रियात्मक अनियमितता से संबंधित हो। यह संसद की स्वायत्तता को सुनिश्चित करता है, ताकि विधायिका बिना बाहरी हस्तक्षेप के अपने कार्य कर सके। यह संसद के अधिकारियों (जैसे, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा सभापति) और सदस्यों को उनकी प्रक्रियात्मक शक्तियों के प्रयोग में न्यायिक हस्तक्षेप से बचाता है। इसका उद्देश्य शक्ति पृथक्करण (Separation of Powers) को बनाए रखना और विधायिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान ब्रिटिश संसदीय प्रणाली से प्रेरित है, जहाँ हाउस ऑफ कॉमन्स और हाउस ऑफ लॉर्ड्स की कार्यवाही को प्रक्रियात्मक आधार पर न्यायालयों में चुनौती नहीं दी जा सकती। भारतीय संदर्भ: भारत में, यह प्रावधान संसद की स्वायत्तता को मजबूत करता है, विशेष रूप से इसके नियमों और प्रक्रियाओं के संदर्भ में। प्रासंगिकता: यह सुनिश्चित करता है कि संसद की कार्यवाही, जैसे विधेयक पारित करना, चर्चाएँ, या निलंबन, बिना न्यायिक हस्तक्षेप के सुचारु रूप से चलें।
खंड (1): कार्यवाही की वैधता संसद की कार्यवाही की वैधता को न्यायालयों में इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती कि वह प्रक्रियात्मक अनियमितता (procedural irregularity) के कारण अमान्य है। इसका मतलब है कि संसद के नियमों (जैसे, मतदान प्रक्रिया, चर्चा का समय, या समिति की कार्यवाही) में कोई त्रुटि न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं बनेगी। उदाहरण: यदि कोई विधेयक गलत प्रक्रिया (जैसे, अपर्याप्त चर्चा) के तहत पारित हुआ माना जाए, तो यह न्यायालय में चुनौती का आधार नहीं होगा, जब तक कि यह संवैधानिक उल्लंघन न हो। 2004 में, एक विधेयक की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए, लेकिन अनुच्छेद 122 के तहत न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया।
खंड (2): अधिकारियों और सदस्यों का संरक्षण संसद के अधिकारी (जैसे, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा सभापति) या सदस्य, जो प्रक्रिया को विनियमित करने, कार्य संचालन, या व्यवस्था बनाए रखने की शक्ति का प्रयोग करते हैं, को उनके कार्यों के लिए न्यायालय के क्षेत्राधिकार के अधीन नहीं किया जा सकता। यह संरक्षण सुनिश्चित करता है कि अध्यक्ष या सभापति के निर्णय, जैसे सांसदों का निलंबन या सत्र का प्रबंधन, प्रक्रियात्मक आधार पर चुनौती नहीं दिए जा सकते। उदाहरण: 2020 में, लोकसभा में सांसदों के निलंबन पर अध्यक्ष के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी गई, लेकिन अनुच्छेद 122 के तहत खारिज किया गया।
4. महत्व: संसद की स्वायत्तता: यह संसद को अपनी आंतरिक प्रक्रिया स्वतंत्र रूप से संचालित करने की स्वतंत्रता देता है। शक्ति पृथक्करण: विधायिका और न्यायपालिका के बीच स्पष्ट विभाजन बनाए रखता है। प्रक्रियात्मक संरक्षण: संसद के अधिकारियों को उनके कर्तव्यों में बाहरी दबाव से सुरक्षा। लोकतांत्रिक प्रक्रिया: संसद की कार्यवाही को बिना रुकावट के चलाने में सहायता।
5. प्रमुख विशेषताएँ: प्रक्रियात्मक अनियमितता: न्यायिक समीक्षा से मुक्त। अधिकारियों का संरक्षण: अध्यक्ष/सभापति की शक्तियाँ सुरक्षित। संसद की स्वायत्तता: आंतरिक प्रक्रिया पर नियंत्रण। संवैधानिक सीमा: संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा संभव।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1970: सांसद निलंबन: लोकसभा में सांसदों के निलंबन पर अध्यक्ष के निर्णय को प्रक्रियात्मक आधार पर न्यायालय में चुनौती दी गई, लेकिन अनुच्छेद 122 के तहत खारिज। 2004: विधेयक प्रक्रिया: एक विधेयक की पारित प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए, लेकिन न्यायालय ने हस्तक्षेप नहीं किया। 2018: आधार विधेयक: धन विधेयक की प्रक्रिया पर सवाल, लेकिन अनुच्छेद 122 ने समीक्षा को सीमित किया।
7. चुनौतियाँ और विवाद: प्रक्रियात्मक दुरुपयोग: विपक्ष अक्सर दावा करता है कि प्रक्रियात्मक नियमों का दुरुपयोग होता है, जैसे अपर्याप्त चर्चा समय। न्यायिक समीक्षा की सीमा: अनुच्छेद 122 प्रक्रियात्मक मामलों में समीक्षा को रोकता है, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन (जैसे, मूल ढांचे का उल्लंघन) पर न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं। संसद की जवाबदेही: कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह प्रावधान संसद को अत्यधिक स्वायत्तता देता है।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): संसद की प्रक्रिया मूल ढांचे के अधीन है। यदि कार्यवाही संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन करती है, तो समीक्षा संभव। रमेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006): सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि प्रक्रियात्मक अनियमितताएँ अनुच्छेद 122 के तहत समीक्षा से बाहर हैं, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन समीक्षा योग्य हैं। आधार मामले (2018): धन विधेयक की प्रक्रिया पर सवाल उठे, लेकिन अनुच्छेद 122 के कारण सीमित समीक्षा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। 2025 में, डिजिटल संसद पहल के तहत संसद की कार्यवाही को डिजिटल रूप से रिकॉर्ड किया जा रहा है, जिससे प्रक्रियात्मक पारदर्शिता बढ़ी है। प्रासंगिकता: विपक्ष ने कुछ विधेयकों (जैसे, चुनाव सुधार विधेयक) की प्रक्रिया पर सवाल उठाए, लेकिन अनुच्छेद 122 के कारण न्यायिक हस्तक्षेप सीमित। डिजिटल रिकॉर्डिंग ने प्रक्रियात्मक नियमों की निगरानी को बढ़ाया। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच प्रक्रियात्मक नियमों और संसद की स्वायत्तता पर तनाव।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 118: संसद के नियम बनाने की शक्ति। अनुच्छेद 121: न्यायाधीशों के वेतन पर चर्चा का प्रतिबंध। अनुच्छेद 212: राज्य विधानमंडलों की कार्यवाही पर समान प्रावधान।
11. विशेष तथ्य: 1970 निलंबन: प्रक्रियात्मक निर्णय पर संरक्षण। 2018 आधार मामला: सीमित समीक्षा। 2025 डिजिटल संसद: प्रक्रिया रिकॉर्डिंग। न्यायिक सीमा: संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा।
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