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Article 121 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-02 12:46:12
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 121

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 121
अनुच्छेद 121 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय II (संसद) में आता है। यह न्यायाधीशों के वेतन आदि पर संसद में चर्चा पर प्रतिबंध (Restriction on discussion in Parliament) से संबंधित है। यह प्रावधान संसद में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों, और अन्य शर्तों पर चर्चा को सीमित करता है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता की रक्षा होती है।
अनुच्छेद 121 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार: "संसद के किसी भी सदन में, इस संविधान के अधीन सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश या उच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के वेतन, भत्तों, या सेवा की अन्य शर्तों के संबंध में कोई चर्चा नहीं की जाएगी, सिवाय इसके कि जब कोई प्रस्ताव विचाराधीन हो, जो इस संविधान के उपबंधों के अधीन उनके पद से हटाने के लिए हो।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 121 न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संसद में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों, और सेवा शर्तों पर चर्चा को प्रतिबंधित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर संसदीय चर्चा के माध्यम से कोई दबाव न पड़े। अपवाद के रूप में, चर्चा केवल तब हो सकती है जब न्यायाधीश को हटाने के लिए प्रस्ताव (महाभियोग) विचाराधीन हो।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान ब्रिटिश और अन्य लोकतांत्रिक प्रणालियों से प्रेरित है, जहाँ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को विधायिका के हस्तक्षेप से बचाया जाता है। भारतीय संदर्भ: भारत में, न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान का मूल ढांचा है, और अनुच्छेद 121 इसकी रक्षा करता है। प्रासंगिकता: यह विधायिका और न्यायपालिका के बीच शक्ति पृथक्करण को सुनिश्चित करता है।
3. अनुच्छेद 121 का विश्लेषण: चर्चा पर प्रतिबंध: संसद (लोकसभा या राज्यसभा) में सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन, भत्तों, या सेवा शर्तों पर चर्चा नहीं हो सकती। यह प्रतिबंध न्यायाधीशों को संसदीय दबाव से बचाता है। अपवाद: चर्चा केवल तब हो सकती है जब कोई महाभियोग प्रस्ताव (अनुच्छेद 124(4) या 218) विचाराधीन हो। महाभियोग प्रस्ताव में न्यायाधीश को "सिद्ध कदाचार" या "अक्षमता" के आधार पर हटाने की प्रक्रिया शामिल है। उदाहरण: 1993 में, जस्टिस वी. रामास्वामी के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा।
4. महत्व: न्यायपालिका की स्वतंत्रता: न्यायाधीशों के वेतन और सेवा शर्तों पर चर्चा से बचाकर स्वतंत्रता की रक्षा। शक्ति पृथक्करण: विधायिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन। लोकतांत्रिक जवाबदेही: महाभियोग के दौरान सीमित चर्चा से जवाबदेही सुनिश्चित। संवैधानिक संतुलन: संसद की शक्ति पर अंकुश।
5. प्रमुख विशेषताएँ: चर्चा पर प्रतिबंध: वेतन, भत्ते, सेवा शर्तें। महाभियोग अपवाद: सीमित चर्चा की अनुमति। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: संरक्षण। संविधान के अधीन: प्रक्रिया सीमित।
6. ऐतिहासिक उदाहरण: 1993: जस्टिस वी. रामास्वामी: महाभियोग प्रस्ताव पर चर्चा, लेकिन प्रस्ताव असफल। 2010: जस्टिस सौमित्र सेन: महाभियोग चर्चा, राज्यसभा में पारित, लेकिन इस्तीफे के कारण प्रक्रिया रुकी। 2018: जस्टिस दीपक मिश्रा: महाभियोग प्रस्ताव खारिज, चर्चा नहीं हुई।
7. चुनौतियाँ और विवाद: महाभियोग प्रक्रिया: महाभियोग की जटिल प्रक्रिया और दुर्लभ उपयोग पर विपक्ष की शिकायत। न्यायाधीशों की जवाबदेही: कुछ लोग तर्क देते हैं कि प्रतिबंध जवाबदेही को सीमित करता है। न्यायिक समीक्षा: संसद की आंतरिक कार्रवाइयों पर सीमित समीक्षा।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): न्यायपालिका की स्वतंत्रता मूल ढांचे का हिस्सा। एस.पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981): न्यायाधीशों की स्वतंत्रता पर जोर।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। 2025 में, न्यायाधीशों के वेतन में संशोधन पर चर्चा की माँग, लेकिन अनुच्छेद 121 के कारण सीमित। प्रासंगिकता: डिजिटल संसद पहल के तहत महाभियोग प्रक्रिया को डिजिटल रिकॉर्डिंग। विपक्ष ने न्यायिक जवाबदेही पर बहस की माँग की। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर चर्चा।
10. संबंधित प्रावधान: अनुच्छेद 124: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश। अनुच्छेद 218: उच्च न्यायालय के न्यायाधीश। अनुच्छेद 125: न्यायाधीशों का वेतन।
11. विशेष तथ्य: 1993 महाभियोग: जस्टिस वी. रामास्वामी। 2025 चर्चा: वेतन संशोधन। न्यायपालिका की स्वतंत्रता: मूल ढांचा। महाभियोग की दुर्लभता: सीमित उपयोग।
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