Article 117 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 12:22:52
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 117
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 117
अनुच्छेद 117 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत अध्याय II (संसद) में आता है। यह वित्तीय विधेयकों पर विशेष प्रावधान (Special provisions as to financial Bills) से संबंधित है। यह प्रावधान धन विधेयकों और अन्य वित्तीय विधेयकों की प्रस्तुति और पारित करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करता है, जिसमें राष्ट्रपति की सिफारिश और लोकसभा की प्राथमिकता पर जोर दिया गया है।
अनुच्छेद 117 का पाठ संविधान के मूल पाठ (हिंदी अनुवाद) के अनुसार
"(1) कोई विधेयक या संशोधन, जो भारत की संचित निधि पर कोई व्यय भारित करता हो या उस निधि से धन की निकासी का उपबंध करता हो, तब तक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत या प्रस्तावित नहीं किया जाएगा, जब तक कि उसकी सिफारिश राष्ट्रपति द्वारा न की गई हो।
(2) कोई विधेयक, जो भारत की संचित निधि पर कोई व्यय भारित करता हो या उस निधि से धन की निकासी का उपबंध करता हो, केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किया जाएगा।
(3) कोई विधेयक, जो उपखंड (1) में निर्दिष्ट है, और जो यदि लागू हो तो धन विधेयक नहीं होगा, जब लोकसभा द्वारा पारित हो जाता है, तो उसे राज्यसभा को प्रेषित किया जाएगा, जो चौदह दिन के भीतर उसे अपनी सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के लोकसभा को वापस कर देगी, और यदि वह उस अवधि के भीतर उसे वापस नहीं करती है, तो वह विधेयक उक्त चौदह दिन की समाप्ति पर दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाएगा।"
विस्तृत विवरण
1. उद्देश्य: अनुच्छेद 117 वित्तीय विधेयकों (Financial Bills) के लिए विशेष प्रक्रिया प्रदान करता है, जो भारत की संचित निधि से व्यय या धन विधेयक से संबंधित मामलों को प्रभावित करते हैं। यह सुनिश्चित करता है कि ऐसे विधेयक राष्ट्रपति की सिफारिश के साथ और लोकसभा की प्राथमिकता के साथ प्रस्तुत किए जाएँ। यह लोकतांत्रिक जवाबदेही और वित्तीय नियंत्रण को बनाए रखता है।
2. ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: संवैधानिक ढांचा: यह प्रावधान ब्रिटिश संसदीय प्रणाली से प्रेरित है, जहाँ वित्तीय मामलों में हाउस ऑफ कॉमन्स की प्राथमिकता होती है। भारतीय संदर्भ: भारत में, लोकसभा की प्राथमिकता जनता के प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व को दर्शाती है, जबकि राज्यसभा की भूमिका सलाहकारी होती है। प्रासंगिकता: यह वित्तीय विधेयकों की प्रक्रिया को व्यवस्थित करता है।
3. अनुच्छेद 117 के प्रमुख उपखंड
खंड (1): राष्ट्रपति की सिफारिश कोई विधेयक या संशोधन, जो अनुच्छेद 110(1)(क) से (च) में निर्दिष्ट मामलों (जैसे, कर, उधार, संचित निधि से निकासी) से संबंधित हो, तब तक संसद में प्रस्तुत नहीं किया जा सकता, जब तक कि राष्ट्रपति की सिफारिश न हो।
उद्देश्य: यह सुनिश्चित करता है कि वित्तीय विधेयक सरकार की नीतियों के अनुरूप हों। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करते हैं (अनुच्छेद 74)। उदाहरण: 2025 में वित्त विधेयक के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश।
खंड (2): केवल लोकसभा में प्रस्तुति कोई विधेयक, जो भारत की संचित निधि पर व्यय या निकासी का उपबंध करता हो, केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है
उद्देश्य: यह लोकसभा की वित्तीय प्राथमिकता को रेखांकित करता है। उदाहरण: विनियोग विधेयक और वित्त विधेयक हमेशा लोकसभा में प्रस्तुत किए जाते हैं।
खंड (3): गैर-धन वित्तीय विधेयकों पर प्रक्रिया यदि कोई विधेयक संचित निधि पर व्यय करता हो, लेकिन धन विधेयक (अनुच्छेद 110) न हो, तो: लोकसभा द्वारा पारित होने के बाद, उसे राज्यसभा को भेजा जाता है।
राज्यसभा को 14 दिनों के भीतर सिफारिशों के साथ या बिना सिफारिशों के विधेयक वापस करना होगा। यदि राज्यसभा 14 दिनों में विधेयक वापस नहीं करती, तो वह दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है। उदाहरण: कुछ वित्तीय सुधार विधेयक, जो धन विधेयक नहीं थे, इस प्रक्रिया के तहत पारित।
4. महत्व: लोकसभा की प्राथमिकता: वित्तीय मामलों में जनता के प्रतिनिधियों का नियंत्रण।
राष्ट्रपति की सिफारिश: कार्यपालिका और विधायिका में संतुलन।
राज्यसभा की भूमिका: सलाहकारी, लेकिन समयबद्ध।
पारदर्शिता: वित्तीय विधेयकों पर संसदीय नियंत्रण।
5. प्रमुख विशेषताएँ
राष्ट्रपति की सिफारिश: अनिवार्य।
लोकसभा में प्रस्तुति: वित्तीय विधेयकों के लिए।
राज्यसभा की भूमिका: 14 दिन की सीमा।
धन विधेयक बनाम अन्य वित्तीय विधेयक: भेद।
6. ऐतिहासिक उदाहरण
आधार विधेयक (2016): धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत, लेकिन वित्तीय विधेयक की परिभाषा पर विवाद।
वित्त विधेयक (2017): राष्ट्रपति की सिफारिश के साथ लोकसभा में प्रस्तुत।
2025 वित्त विधेयक: डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था के लिए।
7. चुनौतियाँ और विवाद: धन विधेयक का दुरुपयोग: गैर-वित्तीय विधेयकों को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत करने पर विवाद, जैसे आधार (2016)। राज्यसभा की सीमित भूमिका: विपक्ष की आपत्तियाँ। न्यायिक समीक्षा: लोकसभा अध्यक्ष का धन विधेयक पर निर्णय अंतिम, लेकिन संवैधानिक उल्लंघन पर समीक्षा संभव।
8. न्यायिक व्याख्या: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973): वित्तीय प्रक्रिया मूल ढांचे के अधीन। आधार मामले (2018): वित्तीय विधेयकों पर सीमित समीक्षा।
9. वर्तमान संदर्भ (2025): वर्तमान स्थिति: लोकसभा: अध्यक्ष ओम बिरला। राज्यसभा: सभापति जगदीप धनखड़। राष्ट्रपति: द्रौपदी मुर्मू। 2025 में, वित्त विधेयक और डिजिटल अर्थव्यवस्था से संबंधित विधेयक चर्चा में।
प्रासंगिकता: विपक्ष ने वित्तीय विधेयकों पर अधिक चर्चा की माँग की। डिजिटल संसद पहल के तहत प्रक्रिया रिकॉर्ड की जा रही है। राजनीतिक परिदृश्य: NDA और INDIA गठबंधन के बीच वित्तीय विधेयकों पर तनाव।
10. संबंधित प्रावधान
अनुच्छेद 110: धन विधेयक की परिभाषा।
अनुच्छेद 112: वार्षिक वित्तीय विवरण।
अनुच्छेद 113: मांगों की प्रक्रिया।
11. विशेष तथ्य: आधार (2016): वित्तीय विधेयक विवाद। 2025 वित्त विधेयक: डिजिटल और हरित अर्थव्यवस्था। राज्यसभा की सीमा: 14 दिन। राष्ट्रपति की सिफारिश: अनिवार्य।
Conclusion
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