Preamble of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-02 06:23:09
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भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान की प्रस्तावना
भारतीय संविधान की उद्देशिका (Preamble) संविधान का सार है, जो भारत के आदर्शों, उद्देश्यों और मूल्यों को संक्षेप में व्यक्त करती है। इसे संविधान सभा ने 26 नवंबर 1949 को अपनाया और 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया। यह संविधान की आत्मा मानी जाती है और भारत के शासन तंत्र की दिशा निर्धारित करती है।
उद्देशिका
हम, भारत के लोग, भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के लिए, तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, समानता की स्थिति और अवसर, और
उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुत्व बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।
प्रमुख तत्व और विशेषताएँ:
भारत के लोग:
उद्देशिका की शुरुआत "हम, भारत के लोग" से होती है, जो यह दर्शाता है कि संविधान की शक्ति और प्रभुसत्ता जनता से प्राप्त होती है।
संप्रभु:
भारत एक स्वतंत्र राष्ट्र है, जो बाहरी और आंतरिक मामलों में स्वायत्त है।
समाजवादी:
42वें संशोधन (1976) द्वारा जोड़ा गया, जो सामाजिक-आर्थिक समानता और संसाधनों के न्यायपूर्ण वितरण को दर्शाता है।
धर्मनिरपेक्ष:
42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया, जो राज्य के सभी धर्मों के प्रति तटस्थ और समान दृष्टिकोण को दर्शाता है।
लोकतांत्रिक:
जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता का शासन, जिसमें स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव शामिल हैं।
गणराज्य:
राज्य का प्रमुख वंशानुगत न होकर निर्वाचित होता है।
न्याय:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक स्तर पर सभी नागरिकों के लिए निष्पक्षता।
स्वतंत्रता:
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की आजादी।
समानता:
कानून के समक्ष समानता और अवसर की समानता।
बंधुत्व:
व्यक्तिगत गरिमा और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देना।
महत्व:
संविधान का दर्पण:
उद्देशिका संविधान के दर्शन और लक्ष्यों को संक्षेप में प्रस्तुत करती है।
कानूनी स्थिति:
सर्वोच्च न्यायालय ने केसवानंद भारती मामले (1973) में कहा कि उद्देशिका संविधान का हिस्सा है और इसका उपयोग संविधान की व्याख्या में किया जा सकता है, लेकिन इसे स्वतंत्र रूप से लागू नहीं किया जा सकता।
संशोधन:
उद्देशिका में 42वें संशोधन (1976) द्वारा "समाजवादी", "धर्मनिरपेक्ष" और "राष्ट्र की अखंडता" शब्द जोड़े गए।
प्रेरणा का स्रोत:
यह नागरिकों और शासकों को समानता, न्याय और एकता के लिए प्रेरित करती है।
कानूनी विवाद:
बेरुबारी यूनियन केस (1960):
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि उद्देशिका संविधान का हिस्सा नहीं है, लेकिन बाद में केसवानंद भारती केस में इसे संविधान का अभिन्न हिस्सा माना गया।
मूल संरचना सिद्धांत:
उद्देशिका में उल्लिखित मूलभूत तत्व (लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, आदि) संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं, जिन्हें संशोधन द्वारा बदला नहीं जा सकता।
Conclusion
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jp Singh
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