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Article 111 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 14:20:50
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 111

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 111
अनुच्छेद 111 का सार अनुच्छेद 111 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है। यह अनुच्छेद संसद द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति की सहमति (Assent) से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य विधायी प्रक्रिया को पूर्ण करना और राष्ट्रपति को विधायी प्रक्रिया में एक संवैधानिक भूमिका प्रदान करना है। यह प्रावधान विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन सुनिश्चित करता है।
मुख्य प्रावधान
अनुच्छेद 111 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं
राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुति: जब कोई विधेयक संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) द्वारा पारित हो जाता है, या संयुक्त बैठक (अनुच्छेद 108) के माध्यम से पारित होता है, तो उसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
राष्ट्रपति के विकल्प: राष्ट्रपति निम्नलिखित में से कोई एक कार्य कर सकता है: सहमति देना: विधेयक को कानून बनने की मंजूरी देना। सहमति रोकना: विधेयक पर सहमति देने से इंकार करना (विटो करना), सिवाय धन विधेयक के। पुनर्विचार के लिए वापस भेजना: विधेयक को संशोधनों के साथ या बिना संशोधनों के पुनर्विचार के लिए संसद को वापस भेजना (सिवाय धन विधेयक के)।
पुनर्विचार के बाद की प्रक्रिया: यदि राष्ट्रपति विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेजता है, और संसद उसे उसी रूप में या संशोधनों के साथ फिर से पारित करती है, तो राष्ट्रपति को उस पर सहमति देनी होगी। धन विधेयक पर अपवाद: धन विधेयक (अनुच्छेद 110) के मामले में, राष्ट्रपति को सहमति देनी होगी और वह इसे रोक या पुनर्विचार के लिए वापस नहीं भेज सकता।
उद्देश्य: विधायी प्रक्रिया को पूर्ण करना और कानून निर्माण में राष्ट्रपति की संवैधानिक भूमिका को सुनिश्चित करना। विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखना। धन विधेयकों में लोकसभा की प्राथमिकता को रेखांकित करना। संसद को पुनर्विचार का अवसर प्रदान करके विधायी गुणवत्ता को बढ़ाना।
अनुच्छेद 111 की विशेषताएँ
राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्ति: गैर-धन विधेयकों के मामले में राष्ट्रपति के पास सहमति देने, रोकने, या पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की विवेकाधीन शक्ति होती है।
धन विधेयक पर बाध्यता: धन विधेयकों में राष्ट्रपति की शक्ति सीमित होती है, जो लोकसभा की वित्तीय प्राथमिकता को दर्शाता है।
पुनर्विचार की प्रक्रिया: राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए वापस भेजे गए विधेयक पर संसद को फिर से विचार करने का अवसर मिलता है, जो विधायी प्रक्रिया में जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
न्यायिक समीक्षा की सीमा: अनुच्छेद 122 के साथ मिलकर यह राष्ट्रपति के निर्णय और संसद की कार्यवाही की सीमित न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करता है।
संवैधानिक संतुलन: यह विधायिका (संसद) और कार्यपालिका (राष्ट्रपति) के बीच संतुलन बनाए रखता है।
अनुच्छेद 111 का महत्व
लोकतांत्रिक जवाबदेही: यह राष्ट्रपति को विधायी प्रक्रिया में एक संवैधानिक जांच (check) प्रदान करता है, जिससे संसद के निर्णयों की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है।
वित्तीय प्राथमिकता: धन विधेयकों में लोकसभा की प्राथमिकता को रेखांकित करता है, जो जनता की प्रत्यक्ष जवाबदेही को दर्शाता है।
प्रक्रियात्मक पूर्णता: यह विधेयकों के कानून बनने की प्रक्रिया को पूर्ण और व्यवस्थित करता है।
संवैधानिक संतुलन: यह विधायिका और कार्यपालिका के बीच संतुलन बनाए रखता है, जिससे संवैधानिक प्रणाली मजबूत होती है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
इन रे: विशेष संदर्भ 1, 1964 (केरल शिक्षा विधेयक मामला)
मामला: केरल शिक्षा विधेयक को राष्ट्रपति ने पुनर्विचार के लिए वापस भेजा था, और इसकी संवैधानिक वैधता को अनुच्छेद 111 के तहत चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति की पुनर्विचार शक्ति का उपयोग अनुचित था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 111 राष्ट्रपति को गैर-धन विधेयकों को पुनर्विचार के लिए वापस भेजने का अधिकार देता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि संसद विधेयक को फिर से पारित करती है, तो राष्ट्रपति को सहमति देनी होगी। इस मामले में प्रक्रिया को वैध ठहराया गया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 111 को राष्ट्रपति की पुनर्विचार शक्ति और विधायी प्रक्रिया में संतुलन के लिए महत्वपूर्ण माना।
संसद बनाम चारु चंद्र (2000)
मामला: इस मामले में एक विधेयक को राष्ट्रपति द्वारा पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की प्रक्रिया को अनुच्छेद 111 के तहत चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राष्ट्रपति का निर्णय संवैधानिक नहीं था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 111 के तहत राष्ट्रपति को पुनर्विचार के लिए विधेयक वापस भेजने का अधिकार है, और यह संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 111 को राष्ट्रपति की भूमिका और विधायी प्रक्रिया में संतुलन के लिए प्रासंगिक माना।
रामदास अठावले बनाम भारत सरकार (2010)
मामला: इस मामले में एक विधेयक की प्रक्रिया को चुनौती दी गई, जिसमें यह तर्क दिया गया कि राष्ट्रपति की सहमति की प्रक्रिया अनुच्छेद 111 का उल्लंघन करती थी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 111 विधायी प्रक्रिया को पूर्ण करता है, और राष्ट्रपति की सहमति या पुनर्विचार का निर्णय संवैधानिक ढांचे के भीतर है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि संसद की कार्यवाही अनुच्छेद 122 के तहत सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
महत्व: इसने अनुच्छेद 111 को विधायी प्रक्रिया की पूर्णता और संवैधानिक संतुलन के लिए महत्वपूर्ण माना।
जयराम रमेश बनाम भारत सरकार (2016) (आधार विधेयक मामला)
मामला: आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने और राष्ट्रपति की सहमति प्राप्त करने की प्रक्रिया को अनुच्छेद 111 (और 109, 110) के तहत चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह धन विधेयक नहीं था, और राष्ट्रपति की सहमति अनुचित थी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 111 के तहत धन विधेयक पर राष्ट्रपति को सहमति देनी होगी, और लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय कि यह धन विधेयक है, अंतिम है। कोर्ट ने प्रक्रिया को वैध ठहराया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 111 को धन विधेयकों में राष्ट्रपति की बाध्यता और विधायी प्रक्रिया की वैधता के लिए प्रासंगिक माना।
केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2018) (आधार मामला)
मामला: आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते समय याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इसे धन विधेयक के रूप में पारित करना और राष्ट्रपति की सहमति अनुच्छेद 111 का उल्लंघन थी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने अपने 2016 के निर्णय को दोहराया और कहा कि अनुच्छेद 111 के तहत धन विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति बाध्यकारी है। कोर्ट ने अधिनियम को वैध ठहराया, लेकिन कुछ प्रावधानों को हटाया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 111 को धन विधेयकों में राष्ट्रपति की भूमिका और विधायी प्रक्रिया की पूर्णता के लिए महत्वपूर्ण माना।
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