Article 109 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 14:09:39
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 109
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 109
अनुच्छेद 109 का सार अनुच्छेद 109 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है। यह अनुच्छेद धन विधेयकों (Money Bills) के संबंध में संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) की प्रक्रिया और राज्यसभा की सीमित भूमिका को निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य वित्तीय मामलों में लोकसभा की प्राथमिकता सुनिश्चित करना और विधायी प्रक्रिया को सुचारु बनाना है।
मुख्य प्रावधान
अनुच्छेद 109 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं
धन विधेयक की प्रस्तुति: धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किया जा सकता है।
राज्यसभा की भूमिका: लोकसभा द्वारा धन विधेयक पारित होने के बाद, इसे राज्यसभा के पास भेजा जाता है। राज्यसभा को विधेयक प्राप्त होने के 14 दिनों के भीतर अपनी सिफारिशें (recommendations) लोकसभा को वापस भेजनी होती हैं।
राज्यसभा विधेयक में संशोधन सुझा सकती है, लेकिन ये सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं। लोकसभा की प्राथमिकता: लोकसभा राज्यसभा की सिफारिशों को स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है। यदि राज्यसभा 14 दिनों के भीतर विधेयक को वापस नहीं भेजती, तो विधेयक दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है।
राष्ट्रपति की सहमति: लोकसभा द्वारा अंतिम रूप से पारित धन विधेयक को राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है। राष्ट्रपति धन विधेयक को रोक नहीं सकता, लेकिन वह इसे सहमति दे सकता है।
धन विधेयक की परिभाषा: धन विधेयक की परिभाषा अनुच्छेद 110 में दी गई है, और यह लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय पर निर्भर करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं।
उद्देश्य: वित्तीय मामलों में लोकसभा की प्राथमिकता और प्रभुत्व सुनिश्चित करना, क्योंकि यह प्रत्यक्ष रूप से जनता द्वारा निर्वाचित होती है। धन विधेयकों की पारित होने की प्रक्रिया को तेज और सुचारु बनाना। राज्यसभा की सलाहकारी भूमिका को परिभाषित करना। वित्तीय नीतियों में संवैधानिक संतुलन बनाए रखना।
अनुच्छेद 109 की विशेषताएँ
लोकसभा का प्रभुत्व: धन विधेयकों में लोकसभा की अंतिम निर्णय लेने की शक्ति होती है, जो लोकतांत्रिक जवाबदेही को दर्शाता है।
राज्यसभा की सीमित भूमिका: राज्यसभा की सिफारिशें केवल सलाहकारी होती हैं, और वह धन विधेयक को रोक या देरी नहीं कर सकती।
राष्ट्रपति की बाध्यता: राष्ट्रपति को धन विधेयक पर सहमति देनी होती है, जिससे कार्यपालिका की भूमिका सीमित हो जाती है।
न्यायिक समीक्षा की सीमा: अनुच्छेद 122 के साथ मिलकर यह धन विधेयक की प्रक्रिया और लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय की सीमित न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करता है।
प्रक्रियात्मक दक्षता: 14 दिनों की समय-सीमा धन विधेयकों की शीघ्र पारित होने की प्रक्रिया को सुनिश्चित करती है।
अनुच्छेद 109 का महत्व
लोकतांत्रिक जवाबदेही: यह वित्तीय मामलों में प्रत्यक्ष निर्वाचित लोकसभा को प्राथमिकता देकर जनता की जवाबदेही सुनिश्चित करता है।
वित्तीय स्थिरता: धन विधेयकों की तेज प्रक्रिया सरकारी वित्तीय योजनाओं और बजट को समय पर लागू करने में मदद करती है।
द्विसदनीय संतुलन: यह लोकसभा और राज्यसभा के बीच संतुलन बनाए रखता है, जहाँ राज्यसभा सलाहकारी भूमिका निभाती है।
संवैधानिक स्पष्टता: यह धन विधेयकों की प्रक्रिया को स्पष्ट और व्यवस्थित करता है, जिससे विवाद कम होते हैं।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
आधार विधेयक मामला (जयराम रमेश बनाम भारत सरकार, 2016)
मामला: आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) विधेयक, 2016 को धन विधेयक के रूप में प्रस्तुत और पारित किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह धन विधेयक नहीं था, और अनुच्छेद 109 के तहत राज्यसभा की भूमिका को दरकिनार करना संवैधानिक उल्लंघन था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 110 के तहत धन विधेयक की परिभाषा को लोकसभा अध्यक्ष द्वारा अंतिम रूप से तय किया जाता है, और यह निर्णय न्यायिक समीक्षा के लिए सामान्य रूप से खुला नहीं है, जब तक कि स्पष्ट संवैधानिक उल्लंघन न हो। कोर्ट ने आधार विधेयक को धन विधेयक के रूप में वैध ठहराया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 109 को धन विधेयकों की प्रक्रिया और लोकसभा की प्राथमिकता के लिए महत्वपूर्णमाना, और अध्यक्ष के निर्णय की सीमित समीक्षा को रेखांकित किया।
केएस पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार (2018) (आधार मामला)
मामला: आधार अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते समय याचिकाकर्ताओं ने फिर से तर्क दिया कि इसे धन विधेयक के रूप में पारित करना अनुच्छेद 109 और 110 का उल्लंघन था, क्योंकि यह केवल वित्तीय मामलों तक सीमित नहीं था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने अपने 2016 के निर्णय को दोहराया और कहा कि लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय कि आधार विधेयक एक धन विधेयक है, अंतिम है। कोर्ट ने अधिनियम को वैध ठहराया, लेकिन कुछ प्रावधानों को हटाया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 109 को धन विधेयक की प्रक्रिया में लोकसभा की प्राथमिकता और अध्यक्ष की भूमिका के लिए प्रासंगिक माना।
रामदास अठावले बनाम भारत सरकार (2010)
मामला: इस मामले में एक विधेयक की प्रक्रिया को चुनौती दी गई, जिसमें यह तर्क दिया गया कि इसे धन विधेयक के रूप में गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया, जो अनुच्छेद 109 का उल्लंघन था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 109 और 110 के तहत धन विधेयक की परिभाषा और प्रक्रियलोकसभा अध्यक्ष के निर्णय पर निर्भर करती है, और यह अनुच्छेद 122 के तहत सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 109 को धन विधेयक की प्रक्रिया की वैधता और लोकसभा की स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण माना।
महत्व: इसने अनुच्छेद 109 को धन विधेयक की प्रक्रिया की वैधता और लोकसभा की स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण माना।
मंगल सिंह बनाम भारत सरकार (1967)
मामला: इस मामले में एक वित्त विधेयक को धन विधेयक के रूप में पारित करने की प्रक्रिया को अनुच्छेद 109 के तहत चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि राज्यसभा की सिफारिशों को अनदेखा करना संवैधानिक था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 109 के तहत राज्यसभा की सिफारिशें बाध्यकारी नहीं हैं, और लोकसभा को उन्हें अस्वीकार करने का अधिकार है। कोर्ट ने प्रक्रिया को वैध ठहराया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 109 को धन विधेयकों में लोकसभा की प्राथमिकता और राज्यसभा की सीमित भूमिका के लिए महत्वपूर्ण माना।
यशवंत सिन्हा बनाम भारत सरकार (2019)
मामला: इस मामले में वित्त विधेयक, 2017 को धन विधेयक के रूप में पारित करने को चुनौती दी गई, यह दावा करते हुए कि इसमें गैर-वित्तीय प्रावधान शामिल थे, जो अनुच्छेद 109 और 110 का उल्लंघन था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष का निर्णय कि विधेयक धन विधेयक है, सामान्य रूप से अंतिम होता है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन यह सुझाव दिया कि भविष्य में ऐसी प्रथाओं की समीक्षा की जा सकती है।
महत्व: इसने अनुच्छेद 109 को धन विधेयक की प्रक्रिया में लोकसभा की शक्ति और सीमित न्यायिक समीक्षा के लिए प्रासंगिक माना।
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