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Article 108 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 14:05:28
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 108

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 108
पिछले प्रश्न में अनुच्छेद 107 के बारे में विस्तार से बताया गया था। अब, अगले अनुच्छेद, यानी अनुच्छेद 108 के बारे में विस्तृत जानकारी और संबंधित मुकदमों का विवरण प्रस्तुत है।
अनुच्छेद 108 का सार अनुच्छेद 108 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है। यह अनुच्छेद संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के बीच विधेयकों पर असहमति होने की स्थिति में संयुक्त बैठक (Joint Sitting) के आयोजन से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। इसका उद्देश्य विधायी गतिरोध (deadlock) को हल करना और विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया को सुचारु बनाना है।
मुख्य प्रावधान
अनुच्छेद 108 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं
संयुक्त बैठक की स्थिति: संयुक्त बैठक तब बुलाई जा सकती है, जब:
एक सदन द्वारा पारित विधेयक को दूसरा सदन अस्वीकार कर दे।
दोनों सदन विधेयक के किसी संशोधन पर असहमत हों, और असहमति बनी रहे।
दूसरा सदन, जिसके पास विधेयक विचार के लिए भेजा गया हो, छह महीने तक उस पर कोई कार्रवाई न करे, और इस अवधि के बाद भी असहमति बनी रहे।
राष्ट्रपति की भूमिका: राष्ट्रपति, यदि वह उचित समझे, तो दोनों सदनों की संयुक्त बैठक बुला सकता है। राष्ट्रपति को इस संबंध में अधिसूचना जारी करनी होगी, जिसमें संयुक्त बैठक का समय और स्थान निर्धारित होगा।
संयुक्त बैठक की प्रक्रिया: संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष (Speaker) करता है, या उसकी अनुपस्थिति में कोई अन्य व्यक्ति, जैसा कि नियमों द्वारा निर्धारित हो। संयुक्त बैठक में विधेयक पर विचार किया जाता है, और उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के बहुमत से निर्णय लिया जाता है।
न विधेयक पर अपवाद: अनुच्छेद 108 धन विधेयकों (Money Bills) पर लागू नहीं होता, क्योंकि धन विधेयक केवल लोकसभा में प्रस्तुत किए जा सकते हैं, और राज्यसभा की भूमिका सीमित होती है (अनुच्छेद 109)।
लंबित विधेयक का प्रभाव: यदि विधेयक संयुक्त बैठक में पारित हो जाता है, तो इसे दोनों सदनों द्वारा पारित माना जाता है, और इसे राष्ट्रपति की सहमति के लिए प्रस्तुत किया जाता है।
उद्देश्य: संसद के दोनों सदनों के बीच विधायी गतिरोध को हल करना। विधायी प्रक्रिया को सुचारु और कुशल बनाना। दोनों सदनों की संतुलित भागीदारी सुनिश्चित करना। संसद की विधायी शक्ति और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूत करना।
अनुच्छेद 108 की विशेषताएँ
द्विसदनीय प्रणाली का समाधान: यह द्विसदनीय प्रणाली में उत्पन्न होने वाले गतिरोध को हल करने का एक संवैधानिक तंत्र प्रदान करता है। राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्ति: राष्ट्रपति को संयुक्त बैठक बुलाने का विवेकाधीन अधिकार है, जो कार्यपालिका और विधायिका के बीच संतुलन बनाए रखता है।
लोकसभा की प्राथमिकता: संयुक्त बैठक में लोकसभा की अधिक सदस्य संख्या के कारण उसका प्रभाव अधिक होता है, जो लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व को दर्शाता है।
न्यायिक समीक्षा की सीमा: अनुच्छेद 122 के साथ मिलकर यह संयुक्त बैठक की प्रक्रिया की सीमित न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करता है।
प्रक्रियात्मक लचीलापन: संयुक्त बैठक की प्रक्रिया को संसद के नियमों और परंपराओं द्वारा विनियमित किया जा सकता है।
अनुच्छेद 108 का महत्व
विधायी गतिरोध का समाधान: यह दोनों सदनों के बीच असहमति को हल करने का एक प्रभावी तंत्र प्रदान करता है, जिससे विधायी प्रक्रिया रुकती नहीं।
लोकतांत्रिक संतुलन: यह लोकसभा (प्रत्यक्ष निर्वाचित) और राज्यसभा (अप्रत्यक्ष निर्वाचित) के बीच संतुलन बनाए रखता है।
संसद की स्वायत्तता: यह संसद को अपनी विधायी शक्तियों का उपयोग करने की स्वतंत्रता देता है।
राष्ट्रपति की भूमिका: यह राष्ट्रपति को विधायी प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान करता है, जो संवैधानिक संतुलन को मजबूत करता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
रामदास अठावले बनाम भारत सरकार (2010)
मामला: इस मामले में एक विधेयक की पारित होने की प्रक्रिया को चुनौती दी गई, जिसमें यह तर्क दिया गया कि दोनों सदनों के बीच असहमति के बावजूद संयुक्त बैठक नहीं बुलाई गई, जो अनुच्छेद 108 का उल्लंघन हो सकता है।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त बैठक बुलाना राष्ट्रपति का विवेकाधीन अधिकार है, और यह अनिवार्य नहीं है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, यह कहते हुए कि संसद की कार्यवाही अनुच्छेद 122 के तहत सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
महत्व: इसने अनुच्छेद 108 को विधायी गतिरोध के समाधान के लिए एक विवेकाधीन तंत्र के रूप में रेखांकित किया।
केसरी नंदन बनाम भारत सरकार (1975)
मामला: इस मामले में एक विधेयक की पारित होने की प्रक्रिया को अनुच्छेद 107 और 108 के तहत चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि दोनों सदनों के बीच असहमति के बावजूद उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 108 संयुक्त बैठक के माध्यम से गतिरोध को हल करने का एक संवैधानिक तंत्र प्रदान करता है, लेकिन यह राष्ट्रपति के विवेक पर निर्भर करता है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, क्योंकि कोई स्पष्ट संवैधानिक उल्लंघन नहीं था।
महत्व: इसने अनुच्छेद 108 को विधायी प्रक्रिया में संतुलन और स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण माना।
आंध्र प्रदेश विधानसभा बनाम भारत सरकार (2005)
मामला: इस मामले में एक विधेयक की प्रक्रिया को अनुच्छेद 108 (और समकक्ष अनुच्छेद 197) के तहत चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि दोनों सदनों के बीच असहमति को हल करने के लिए संयुक्त बैठक की आवश्यकता थी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त बैठक बुलाना अनिवार्य नहीं है, और संसद की कार्यवाही अनुच्छेद 122 (या 212) के तहत सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 108 को विधायी प्रक्रिया की स्वायत्तता के लिए प्रासंगिक माना।
आधार विधेयक मामला (2016) (नोट: यह अप्रत्यक्ष रूप से संबंधित है):
मामला: आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) विधेयक, 2016 को धन विधेयक के रूप में पारित किया गया, जिसे राज्यसभा में असहमति के बावजूद लोकसभा ने पारित किया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि यह धन विधेयक नहीं था, और अनुच्छेद 108 के तहत संयुक्त बैठक बुलाई जानी चाहिए थी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि धन विधेयक की परिभाषा (अनुच्छेद 110) और उसकी प्रक्रिया अनुच्छेद 108 से अलग है। कोर्ट ने लोकसभा अध्यक्ष के निर्णय को वैध ठहराया और याचिका खारिज कर दी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 108 को धन विधेयकों से बाहर रखने और विधायी प्रक्रिया की स्वायत्तता को रेखांकित किया।
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन बनाम भारत सरकार (1998):
मामला: इस मामले में एक विधेयक की प्रक्रिया को अनुच्छेद 107 और 108 के तहत चुनौती दी गई, यह दावा करते हुए कि दोनों सदनों के बीच असहमति को हल करने के लिए उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 108 संयुक्त बैठक के माध्यम से गतिरोध को हल करने का एक विवेकाधीन तंत्र प्रदान करता है, और संसद की कार्यवाही अनुच्छेद 122 के तहत सीमित समीक्षा के अधीन है। कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 108 को विधायी प्रक्रिया में संतुलन के लिए महत्वपूर्ण माना।
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