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Article 105 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 13:51:14
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 105
अनुच्छेद 105 का सार अनुच्छेद 105 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है। यह संसद के सदस्यों और संसद की समितियों के विशेषाधिकारों (Privileges) और उनकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है। इसका उद्देश्य संसद के सदस्यों को अपनी विधायी जिम्मेदारियों को निष्पक्ष और स्वतंत्र रूप से निभाने में सक्षम बनाना है, ताकि संसद की कार्यवाही सुचारु रूप से चल सके।
मुख्य प्रावधान
अनुच्छेद 105 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: संसद के किसी भी सदन में (लोकसभा या राज्यसभा) कोई भी सदस्य अपने भाषण या मतदान के लिए किसी भी न्यायालय में कार्यवाही के अधीन नहीं होगा।
संसद के विशेषाधिकार: संसद के दोनों सदनों, उनके सदस्यों, और समितियों को कुछ विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ प्राप्त होंगी, जो समय-समय पर संसद द्वारा बनाए गए कानूनों या संसद की परंपराओं के अनुसार निर्धारित होंगी। जब तक संसद द्वारा कानून नहीं बनाया जाता, तब तक ये विशेषाधिकार और उन्मुक्तियाँ वही होंगी, जो 26 जनवरी 1950 (संविधान लागू होने की तारीख) को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स, इसके सदस्यों, और समितियों को प्राप्त थीं।
प्रकाशन की उन्मुक्ति: संसद की कार्यवाही से संबंधित कोई भी प्रकाशन, जो सदन के प्राधिकार के तहत किया जाता है, किसी भी न्यायालय में कार्यवाही के अधीन नहीं होगा। कानून बनाने की शक्ति: संसद को अपने विशेषाधिकारों और उन्मुक्तियों को परिभाषित करने के लिए कानून बनाने का अधिकार है।
उद्देश्य: संसद के सदस्यों को बिना किसी बाहरी दबाव या कानूनी कार्रवाई के डर के अपनी राय व्यक्त करने और मतदान करने की स्वतंत्रता देना। संसद की स्वायत्तता और गरिमा को बनाए रखना। संसद की कार्यवाही को सुचारु और निष्पक्ष रूप से संचालित करना। संसद के विशेषाधिकारों को परिभाषित और संरक्षित करना।
अनुच्छेद 105 की विशेषताएँ
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: यह संसद के सदस्यों को बिना कानूनी परिणामों के डर के अपनी राय व्यक्त करने की आजादी देता है, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया का आधार है।
संसदीय विशेषाधिकार: यह संसद और इसके सदस्यों को विशेष शक्तियाँ और उन्मुक्तियाँ प्रदान करता है, जैसे अवमानना (contempt) के मामलों में कार्रवाई करने का अधिकार।
न्यायिक समीक्षा की सीमा: अनुच्छेद 122 के साथ मिलकर यह संसद की कार्यवाही और विशेषाधिकारों की सीमित न्यायिक समीक्षा सुनिश्चित करता है।
ब्रिटिश परंपरा का प्रभाव: जब तक संसद द्वारा विशेषाधिकारों को परिभाषित करने वाला कानून नहीं बनाया जाता, तब तक ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स की परंपराएँ लागू होती हैं।
लचीलापन: संसद को अपने विशेषाधिकारों को कानून द्वारा परिभाषित करने का अधिकार देता है, जिससे यह समय के साथ बदलावों के अनुकूल हो सकता है।
अनुच्छेद 105 का महत्व
लोकतांत्रिक स्वतंत्रता: यह संसद के सदस्यों को बिना डर या पक्षपात के अपनी विधायी जिम्मेदारियों को निभाने में सक्षम बनाता है।
संसद की स्वायत्तता: यह संसद को कार्यपालिका और न्यायपालिका से स्वतंत्र रखता है, जो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को मजबूत करता है।
संसद की गरिमा: विशेषाधिकारों के माध्यम से संसद की गरिमा और प्राधिकार को बनाए रखता है।
सार्वजनिक हित: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कार्यवाही के प्रकाशन की उन्मुक्ति संसद की पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ाती है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
सर्चलाइट केस (एम.एस.एम. शर्मा बनाम श्रीकृष्ण सिन्हा, 1959)
मामला: इस मामले में बिहार विधानसभा ने एक समाचार पत्र (सर्चलाइट) के संपादक को विशेषाधिकार हनन के लिए तलब किया, क्योंकि उसने विधानसभा की कार्यवाही का एक हिस्सा प्रकाशित किया था, जिसे विधानसभा ने हटाने का आदेश दिया था। संपादक ने अनुच्छेद 19(1)(a) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) के तहत इसे चुनौती दी, और अनुच्छेद 105 का उल्लेख हुआ।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 105(3) के तहत विधानसभा के विशेषाधिकार ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स की परंपराओं के समान हैं, और विधानसभा को अपने विशेषाधिकारों की रक्षा करने का अधिकार है। कोर्ट ने यह भी कहा कि अनुच्छेद 19(1)(a) संसदीय विशेषाधिकारों के अधीन है।
महत्व: इसने अनुच्छेद 105 को संसदीय विशेषाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन के लिए महत्वपूर्ण माना।
केसरी केस (रामचंद्र केसरी बनाम यूपी विधानसभा, 1964)
मामला: इस मामले में एक व्यक्ति को उत्तर प्रदेश विधानसभा ने विशेषाधिकार हनन के लिए दंडित किया, क्योंकि उसने विधानसभा के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी। याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 105 के तहत विशेषाधिकारों की वैधता को चुनौती दी।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 105 विधानमंडलों को विशेषाधिकार प्रदान करता है, जो उनकी स्वायत्तता और गरिमा के लिए आवश्यक हैं। कोर्ट ने दंड को वैध ठहराया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 105 को संसद और विधानमंडलों की स्वायत्तता के लिए महत्वपूर्ण माना।
राजा राम पाल बनाम लोकसभा अध्यक्ष (2007) (कैश फॉर क्वेरी मामला)
मामला: इस मामले में कुछ सांसदों को "कैश फॉर क्वेरी" घोटाले में संसद से निष्कासित किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि निष्कासन अनुच्छेद 105 के तहत विशेषाधिकारों का दुरुपयोग था और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता था।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 105 के तहत संसद को अपने विशेषाधिकारों की रक्षा करने का अधिकार है, और निष्कासन की प्रक्रिया संसद की आंतरिक कार्यवाही का हिस्सा है। कोर्ट ने अनुच्छेद 122 का हवाला देते हुए सीमित न्यायिक समीक्षा की बात कही, लेकिन यह भी कहा कि विशेषाधिकारों का प्रयोग संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होना चाहिए।
महत्व: इसने अनुच्छेद 105 को संसद की स्वायत्तता और विशेषाधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण माना, लेकिन न्यायिक समीक्षा की सीमित संभावना को रेखांकित किया।
आलोक वर्मा बनाम भारत सरकार (1998)
मामला: इस मामले में एक व्यक्ति को संसद की विशेषाधिकार समिति ने विशेषाधिकार हनन के लिए दंडित किया। याचिकाकर्ता ने अनुच्छेद 105 के तहत विशेषाधिकारों की वैधता और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होने का तर्क दिया।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 105 संसद को विशेषाधिकार प्रदान करता है, लेकिन इनका प्रयोग प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। कोर्ट ने दंड को वैध ठहराया, क्योंकि प्रक्रिया उचित थी।
महत्व: इसने अनुच्छेद 105 को विशेषाधिकारों के प्रयोग में निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण माना।
पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम भारत सरकार (1998) (झारखंड मुक्ति मोर्चा रिश्वत कांड)
मामला: इस मामले में कुछ सांसदों पर आरोप था कि उन्होंने संसद में मतदान के लिए रिश्वत ली थी। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अनुच्छेद 105(2) के तहत उनके भाषण और मतदान को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 105(2) सांसदों को उनके भाषण और मतदान के लिए उन्मुक्ति प्रदान करता है, लेकिन यह उन्मुक्ति रिश्वत जैसे आपराधिक कृत्यों तक विस्तारित नहीं होती। कोर्ट ने रिश्वत लेने वाले सांसदों के खिलाफ कार्यवाही को वैध ठहराया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 105(2) की उन्मुक्ति की सीमाओं को स्पष्ट किया और संसद की शुद्धता को बनाए रखने पर जोर दिया।
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