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Article 104 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 13:46:53
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 104

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 104
अनुच्छेद 104 का सार अनुच्छेद 104 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के अंतर्गत आता है। यह अनुच्छेद संसद के किसी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) की बैठक में उस सदस्य द्वारा मतदान करने या बैठने से संबंधित दंड (penalty) को निर्धारित करता है, जो अयोग्य हो गया हो या अयोग्य होने की प्रक्रिया में हो। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि केवल योग्य सदस्य ही संसद की कार्यवाही में भाग लें और अयोग्य व्यक्तियों की भागीदारी को रोका जाए।
मुख्य प्रावधान
अनुच्छेद 104 में निम्नलिखित प्रावधान शामिल हैं
अयोग्यता के बावजूद मतदान या बैठना: यदि कोई व्यक्ति, जो अनुच्छेद 102 के तहत अयोग्य हो गया हो या अयोग्यता की प्रक्रिया में हो (उदाहरण के लिए, लाभ का पद, दल-बदल, या अन्य आधारों पर), संसद के किसी सदन की बैठक में बैठता है या मतदान करता है, तो वह प्रत्येक दिन के लिए पाँच सौ रुपये के दंड का पात्र होगा।
दंड की वसूली: यह दंड उस व्यक्ति से एक ऋण के रूप में वसूला जा सकता है, जो भारत सरकार को देय हो। आवेदन का समय: यह दंड तब लागू होता है, जब तक कि अयोग्यता का अंतिम निर्णय (जैसे, राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 103 के तहत या सभापति द्वारा दसवीं अनुसूची के तहत) नहीं लिया जाता।
उद्देश्य: संसद की कार्यवाही की शुद्धता और वैधता को बनाए रखना। अयोग्य व्यक्तियों को संसद की कार्यवाही में भाग लेने से रोकना। संसद की सदस्यता और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता को सुनिश्चित करना। अयोग्यता के नियमों का पालन करने के लिए एक निवारक उपाय प्रदान करना।
अनुच्छेद 104 की विशेषताएँ
दंडात्मक प्रावधान: यह एक स्पष्ट दंड (पाँच सौ रुपये प्रति दिन) निर्धारित करता है, जो अयोग्य व्यक्तियों को संसद की कार्यवाही से दूर रखने के लिए प्रेरित करता है।
संवैधानिक जवाबदेही: यह सुनिश्चित करता है कि केवल योग्य सदस्य ही संसद में मतदान और निर्णय प्रक्रिया में भाग लें।
न्यायिक समीक्षा: अयोग्यता और दंड से संबंधित निर्णय सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं, विशेष रूप से यदि प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों या संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन हो।
दसवीं अनुसूची से संबंध: दल-बदल के आधार पर अयोग्यता के मामलों में भी यह लागू हो सकता है, यदि सभापति का निर्णय लंबित हो।
प्रक्रियात्मक संरक्षा: यह अनुच्छेद 103 और 102 के साथ मिलकर अयोग्यता की प्रक्रिया को पूर्णता प्रदान करता है।
अनुच्छेद 104 का महत्व
संसद की शुद्धता: यह सुनिश्चित करता है कि अयोग्य व्यक्ति संसद की कार्यवाही को प्रभावित न करें, जिससे विधायी प्रक्रिया की वैधता बनी रहे।
निवारक उपाय: दंड का प्रावधान अयोग्य व्यक्तियों को संसद की कार्यवाही में भाग लेने से रोकता है।
लोकतांत्रिक विश्वसनीयता: यह संसद की कार्यवाही में जनता के विश्वास को बनाए रखता है।
संवैधानिक संतुलन: यह विधायिका की स्वतंत्रता और संवैधानिक नियमों के बीच संतुलन बनाए रखता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
जया बच्चन बनाम भारत सरकार (2006)
मामला: समाजवादी पार्टी की सांसद जया बच्चन को उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के अध्यक्ष के रूप में लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अयोग्यता के बावजूद उनकी संसद की कार्यवाही में भागीदारी अनुच्छेद 104 के तहत दंडनीय हो सकती है।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 103 के तहत राष्ट्रपति के अयोग्यता निर्णय को वैध ठहराया। हालांकि, अनुच्छेद 104 के तहत दंड लागू नहीं किया गया, क्योंकि जया बच्चन ने अयोग्यता के बाद कार्यवाही में भाग नहीं लिया। कोर्ट ने लाभ का पद की परिभाषा को स्पष्ट किया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 104 को अयोग्यता के बाद संसद में भागीदारी को रोकने के लिए एक निवारक प्रावधान के रूप में रेखांकित किया।
किहोटो होलोहान बनाम ज़चिल्हू (1992) (दल-बदल मामला)
मामला: इस मामले में दसवीं अनुसूची और अनुच्छेद 102(2) के तहत दल-बदल के आधार पर अयोग्यता की संवैधानिकता को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अयोग्यता के लंबित होने के दौरान संसद में मतदान अनुच्छेद 104 के तहत दंडनीय हो सकता है।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने दसवीं अनुसूची को वैध ठहराया और कहा कि अनुच्छेद 104 दल-बदल के मामलों में लागू हो सकता है, यदि सभापति का निर्णय लंबित होने के दौरान कोई सदस्य मतदान करता है। हालांकि, इस मामले में दंड लागू नहीं हुआ, क्योंकि अयोग्यता का निर्णय स्पष्ट था।
महत्व: इसने अनुच्छेद 104 को अयोग्यता के लंबित मामलों में संसद की कार्यवाही की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए प्रासंगिक माना।
सोहन लाल बनाम भारत सरकार (1957)
मामला: इस मामले में एक सांसद को लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्य घोषित किया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अयोग्यता के बाद संसद में भागीदारी अनुच्छेद 104 के तहत दंडनीय हो सकती है।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने अनुच्छेद 103 के तहत अयोग्यता के निर्णय को वैध ठहराया। अनुच्छेद 104 का दंड लागू नहीं हुआ, क्योंकि सांसद ने अयोग्यता के बाद कार्यवाही में भाग नहीं लिया। कोर्ट ने लाभ का पद की परिभाषा को स्पष्ट किया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 104 को अयोग्यता के बाद अनुचित भागीदारी को रोकने के लिए महत्वपूर्ण माना।
नवजोत सिंह सिद्धू बनाम पंजाब सरकार (2006)
मामला: सांसद नवजोत सिंह सिद्धू को लाभ का पद धारण करने के लिए अयोग्यता का प्रश्न उठाया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अयोग्यता के लंबित होने के दौरान उनकी संसद में भागीदारी अनुच्छेद 104 के तहत दंडनीय हो सकती है।
निर्णय: सिद्धू ने अयोग्यता से बचने के लिए स्वेच्छा से त्यागपत्र दे दिया। उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 104 का दंड तभी लागू होता है, जब अयोग्यता स्पष्ट हो और व्यक्ति कार्यवाही में भाग ले। कोर्ट ने लाभ का पद की परिभाषा को और स्पष्ट किया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 104 को अयोग्यता के मामलों में निवारक प्रावधान के रूप में रेखांकित किया।
जी. विश्वनाथन बनाम तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष (1996)
मामला: इस मामले में दल-बदल के आधार पर विधायकों की अयोग्यता को चुनौती दी गई। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अयोग्यता के लंबित होने के दौरान विधानसभा में मतदान अनुच्छेद 104 (और समकक्ष अनुच्छेद 193) के तहत दंडनीय हो सकता है।
निर्णय: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 104 का दंड तभी लागू होता है, जब अयोग्यता का निर्णय स्पष्ट हो। कोर्ट ने सभापति के निर्णय को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होने पर जोर दिया।
महत्व: इसने अनुच्छेद 104 को अयोग्यता के लंबित मामलों में संसद की शुद्धता के लिए प्रासंगिक माना।
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