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Article 102 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 13:40:05
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 102
अनुच्छेद 102 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 102 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 102(1): कोई व्यक्ति संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) का सदस्य होने के लिए अयोग्य होगा, यदि वह: (a) लाभ का पद (Office of Profit) धारण करता है, जो भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन हो, सिवाय इसके कि संसद द्वारा कानून बनाकर ऐसे पद को छूट दी गई हो।
(b) वह विकृत चित्त (Unsound Mind) का हो और किसी सक्षम न्यायालय द्वारा ऐसा घोषित किया गया हो।
(c) वह अनघटित दिवालिया (Undischarged Insolvent) हो।
(d) वह भारत का नागरिक नहीं हो या उसने स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर ली हो, या वह किसी विदेशी राज्य के प्रति निष्ठा या अनुपालन को स्वीकार करता हो।
(e) वह किसी कानून (जैसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) के तहत अयोग्य घोषित किया गया हो।
अनुच्छेद 102(2): कोई व्यक्ति संसद के किसी भी सदन का सदस्य होने के लिए अयोग्य होगा, यदि वह दसवीं अनुसूची (Tenth Schedule, दलबदल विरोधी कानून) के तहत अयोग्य घोषित किया जाता है।
अनुच्छेद 102 की मुख्य विशेषताएं
लाभ का पद: यह प्रावधान सुनिश्चित करता है कि संसद सदस्य सरकारी नियंत्रण या प्रभाव से मुक्त रहें। हालांकि, संसद को कानून बनाकर कुछ पदों को छूट देने का अधिकार है (उदाहरण के लिए, मंत्रियों के पद)। मानसिक और वित्तीय अक्षमता: विकृत चित्त या दिवालिया होने की स्थिति में अयोग्यता संसद सदस्यों की कार्यक्षमता और जवाबदेही सुनिश्चित करती है।
नागरिकता और निष्ठा: भारत की नागरिकता और विदेशी निष्ठा का त्याग संसद की संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करता है।
दलबदल विरोधी कानून: दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता (अनुच्छेद 102(2)) राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देता है और दलबदल को हतोत्साहित करता है।
कानूनी अयोग्यता: अनुच्छेद 102(1)(e) संसद को अन्य कानूनों (जैसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951) के तहत अयोग्यता निर्धारित करने की शक्ति देता है, जो लचीलापन प्रदान करता है।
संबंधित कानून जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 (Representation of the People Act, 1951): धारा 8: यह आपराधिक दोषसिद्धि के आधार पर अयोग्यता को परिभाषित करता है (उदाहरण के लिए, दो साल या उससे अधिक की सजा पर तत्काल अयोग्यता)।
धारा 8A: यह भ्रष्ट आचरण के आधार पर अयोग्यता को परिभाषित करता है। संसद (लाभ के पद की अयोग्यता से निवारण) अधिनियम, 1959: यह अधिनियम उन पदों को निर्दिष्ट करता है जो लाभ के पद के अंतर्गत नहीं आते, जैसे मंत्रियों के पद या कुछ समितियों के सदस्य।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची और अनुच्छेद 102(2) के तहत दलबदल के आधार पर अयोग्यता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता संवैधानिक है, लेकिन अध्यक्ष/सभापति के निर्णय सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं, यदि वे मनमाने या पक्षपातपूर्ण हों।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 102(2) और दसवीं अनुसूची की वैधता को मजबूत किया।
लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)
पृष्ठभूमि: इस मामले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) और अनुच्छेद 102(1)(e) के तहत आपराधिक दोषसिद्धि पर अयोग्यता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 8(4) को असंवैधानिक घोषित किया, यह कहते हुए कि दो साल या उससे अधिक की सजा पर तत्काल अयोग्यता लागू होती है, और अपील लंबित होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 102(1)(e) के तहत आपराधिक दोषसिद्धि पर तत्काल अयोग्यता को रेखांकित किया।
जया बच्चन बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में लाभ के पद के आधार पर अयोग्यता पर विचार किया गया, क्योंकि जया बच्चन उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद की अध्यक्ष थीं।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लाभ का पद वह है जो वित्तीय लाभ या सरकारी नियंत्रण प्रदान करता हो। हालांकि, संसद द्वारा छूट प्राप्त पद अयोग्यता के दायरे में नहीं आते।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 102(1)(a) के तहत लाभ के पद की परिभाषा को स्पष्ट किया।
प्रफुल्ल गोरोडिया बनाम भारत संघ (2011)
पृष्ठभूमि: इस मामले में लाभ के पद की परिभाषा और संसद द्वारा छूट के प्रावधान पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 102(1)(a) के तहत लाभ का पद वह है जो वास्तविक वित्तीय लाभ या कार्यकारी शक्ति प्रदान करता हो। संसद द्वारा बनाए गए कानून (जैसे 1959 का अधिनियम) कुछ पदों को छूट दे सकते हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 102(1)(a) की व्याख्या को और स्पष्ट किया।
मणिपुर विधानसभा मामले (2020) (केएस सिंह बनाम मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दलबदल के आधार पर अयोग्यता याचिकाओं पर समयबद्ध निर्णय न लेने पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 102(2) के तहत अयोग्यता के मामलों में अध्यक्ष को उचित समय में निर्णय लेना चाहिए, अन्यथा यह संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन माना जा सकता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 102(2) के तहत अयोग्यता की प्रक्रिया में समयबद्धता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
अनुच्छेद 102 की सीमाएं लाभ के पद की अस्पष्टता: लाभ के पद की परिभाषा जटिल हो सकती है, क्योंकि यह कई कारकों (वित्तीय लाभ, सरकारी नियंत्रण) पर निर्भर करती है। यह विवादों को जन्म दे सकता है।
न्यायिक समीक्षा: अयोग्यता के निर्णय, विशेष रूप से दसवीं अनुसूची के तहत, सीमित न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं, यदि वे मनमाने या पक्षपातपूर्ण हों।
संसद की निर्भरता: लाभ के पद से छूट देने की शक्ति संसद के पास है, जो राजनीतिक विचारों से प्रभावित हो सकती है। आपराधिक दोषसिद्धि की जटिलता: आपराधिक दोषसिद्धि के आधार पर अयोग्यता (जैसे जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8) अपील और दया याचिका की प्रक्रिया से प्रभावित हो सकती है।
अनुच्छेद 102 और समान प्रावधान अनुच्छेद 191: यह राज्य विधानमंडल की सदस्यता के लिए अयोग्यताओं को परिभाषित करता है, जो अनुच्छेद 102 के समान सिद्धांतों पर आधारित है। अनुच्छेद 101: यह संसद की सदस्यता की रिक्ति को परिभाषित करता है, और अनुच्छेद 102 की अयोग्यताएं रिक्ति का कारण बनती हैं। दसवीं अनुसूची: यह दलबदल विरोधी कानून को परिभाषित करती है, जो अनुच्छेद 102(2) का आधार है। अनुच्छेद 58 और 66: ये क्रमशः राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति की पात्रता को परिभाषित करते हैं, जो अनुच्छेद 102 के समान सिद्धांतों को दर्शाते हैं।
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