Article 101 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 13:34:14
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 101
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 101
अनुच्छेद 101 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 101 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 101(1): कोई व्यक्ति एक साथ दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) का सदस्य नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति दोनों सदनों में चुना जाता है, तो वह एक सदन की सदस्यता स्वीकार करेगा, और दूसरा सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित करेगा (यह अनुच्छेद 100(4) के अनुरूप है)।
अनुच्छेद 101(2): कोई व्यक्ति एक साथ किसी राज्य के विधानमंडल और संसद का सदस्य नहीं हो सकता। यदि कोई व्यक्ति दोनों में चुना जाता है और वह निर्वाचन के बाद 14 दिनों के भीतर संसद की सदस्यता से त्यागपत्र नहीं देता, तो उसकी संसद की सीट स्वतः रिक्त हो जाएगी। हालांकि, यदि वह राज्य विधानमंडल की सदस्यता से त्यागपत्र देता है, तो संसद की सीट बरकरार रहेगी।
अनुच्छेद 101(3): संसद की सदस्यता की सीट रिक्त हो जाएगी, यदि: (a) सदस्य लिखित रूप में त्यागपत्र देता है, और यह त्यागपत्र लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति (जैसा भी मामला हो) द्वारा स्वीकार कर लिया जाता है।
(b) सदस्य अनुच्छेद 102 के तहत अयोग्य हो जाता है (उदाहरण के लिए, लाभ का पद धारण करने, आपराधिक दोषसिद्धि, या दलबदल के कारण)।
(c) दसवीं अनुसूची (दलबदल विरोधी कानून) के तहत सदस्य अयोग्य घोषित किया जाता है।
अनुच्छेद 101(4): यदि कोई सदस्य लगातार 60 दिनों तक बिना अनुमति के संसद के किसी भी सदन की कार्यवाही में अनुपस्थित रहता है, तो उस सदन द्वारा उसकी सीट को रिक्त घोषित किया जा सकता है। इस गणना में वह अवधि शामिल नहीं होगी, जब सदन स्थगित हो या 30 दिनों से अधिक समय तक सत्र न हो।
सदन इस अनुपस्थिति को माफ करने के लिए विशेष परिस्थितियों में अनुमति दे सकता है।
अनुच्छेद 101 की मुख्य विशेषताएं
दोहरी सदस्यता का निषेध: अनुच्छेद 101(1) और 101(2) यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई व्यक्ति एक साथ संसद के दोनों सदनों या संसद और राज्य विधानमंडल का सदस्य न रहे, जिससे संवैधानिक ढांचे में स्पष्टता बनी रहे।
त्यागपत्र की प्रक्रिया: सदस्य लिखित रूप में त्यागपत्र दे सकता है, और इसे अध्यक्ष/सभापति की स्वीकृति के बाद प्रभावी माना जाता है। यह प्रक्रिया स्वैच्छिक रिक्ति को नियंत्रित करती है।
अयोग्यता के आधार: अनुच्छेद 102 और दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता (जैसे लाभ का पद, दलबदल, या आपराधिक दोषसिद्धि) स्वतः रिक्ति का कारण बनती है, जो संसद की अखंडता को बनाए रखता है।
अनुपस्थिति का प्रावधान: 60 दिनों तक अनधिकृत अनुपस्थिति के कारण रिक्ति का प्रावधान सदस्यों की जवाबदेही और संसद की कार्यवाही में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करता है।
संसद की स्वायत्तता: रिक्ति की घोषणा और अनुपस्थिति की अनुमति जैसे निर्णय सदन के भीतर लिए जाते हैं, जो संसद की स्वायत्तता को दर्शाता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची और दलबदल के आधार पर अयोग्यता से रिक्ति पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 101(3)(c) के तहत दसवीं अनुसूची के आधार पर अयोग्यता स्वतः रिक्ति का कारण बनती है। हालांकि, अध्यक्ष/सभापति के निर्णय सीमित न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकते हैं, यदि वे मनमाने या असंवैधानिक हों।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 101(3)(c) और दसवीं अनुसूची की संवैधानिक वैधता को मजबूत किया।
लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)
पृष्ठभूमि: इस मामले में आपराधिक दोषसिद्धि के आधार पर संसद और विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 101(3)(b) और अनुच्छेद 102(1)(e) के तहत जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 8(4) के अनुसार, दोषसिद्धि के तुरंत बाद सदस्यता रिक्त हो जाती है, और अपील लंबित होने का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 101(3)(b) के तहत अयोग्यता से रिक्ति की तात्कालिकता को रेखांकित किया।
ग. विश्वनाथन बनाम तमिलनाडु विधानसभा अध्यक्ष (1996)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दलबदल के आधार पर अयोग्यता और रिक्ति पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 101(3)(c) के तहत दसवीं अनुसूची के आधार पर अयोग्यता के बाद सीट स्वतः रिक्त हो जाती है। यह निर्णय दलबदल विरोधी कानून की कठोरता को दर्शाता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 101(3)(c) के तहत दलबदल से रिक्ति की प्रक्रिया को मजबूत किया।
मणिपुर विधानसभा मामले (2020) (केएस सिंह बनाम मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष):
पृष्ठभूमि: इस मामले में दलबदल के आधार पर अयोग्यता याचिकाओं पर समयबद्ध निर्णय न लेने और रिक्ति के मुद्दे पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 101(3)(c) के तहत अयोग्यता के मामलों में अध्यक्ष को उचित समय में निर्णय लेना चाहिए, अन्यथा यह संवैधानिक प्रक्रिया का उल्लंघन माना जा सकता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 101(3)(c) के तहत रिक्ति की प्रक्रिया में समयबद्धता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
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