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Article 100 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 12:48:51
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 100

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 100
अनुच्छेद 100 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 100 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 100(1): संसद के प्रत्येक सदन (लोकसभा और राज्यसभा) में सभी प्रश्नों का निर्णय उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से होगा, जब तक कि संविधान में अन्यथा प्रावधान न हो। लोकसभा के अध्यक्ष या राज्यसभा के सभापति (या उनकी अनुपस्थिति में अन्य संचालक व्यक्ति) केवल मत बराबर होने की स्थिति में निर्णायक मत (Casting Vote) देगा।
अनुच्छेद 100(2): संसद के किसी भी सदन की बैठक के लिए कोरम (Quorum, न्यूनतम उपस्थिति) उस सदन के कुल सदस्यों का दसवां हिस्सा होगा, जिसमें रिक्तियां शामिल होंगी। यदि किसी समय कोरम की कमी हो, तो सभापति/अध्यक्ष या संचालक व्यक्ति बैठक को स्थगित कर सकता है या कोरम पूरा होने तक कार्यवाही निलंबित कर सकता है।
अनुच्छेद 100(3): प्रत्येक सदन को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने की शक्ति है, बशर्ते यह संविधान के प्रावधानों के अधीन हो। यह प्रावधान संसद की स्वायत्तता और आत्म-नियमन की क्षमता को दर्शाता
अनुच्छेद 100(4): यदि कोई व्यक्ति दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) में एक साथ चुना जाता है और उसने एक सदन की सदस्यता स्वीकार कर ली है, तो दूसरा सदन उसकी सीट को रिक्त घोषित करेगा।
मतदान की प्रक्रिया: संसद की कार्यवाही में निर्णय बहुमत के आधार पर लिए जाते हैं, जो लोकतांत्रिक सिद्धांतों को दर्शाता है। सभापति/अध्यक्ष का निर्णायक मत केवल बराबरी की स्थिति में होता है, जो उनकी निष्पक्षता को सुनिश्चित करता है।
कोरम की आवश्यकता: कोरम का प्रावधान यह सुनिश्चित करता है कि संसद की कार्यवाही में पर्याप्त सदस्यों की भागीदारी हो, जिससे निर्णयों की वैधता बनी रहे।
संसद की स्वायत्तता: प्रत्येक सदन को अपनी प्रक्रिया और कार्य संचालन को विनियमित करने का अधिकार है, जो संसद की स्वतंत्रता और आत्म-नियमन की क्षमता को मजबूत करता है।
दोहरी सदस्यता का निषेध: अनुच्छेद 100(4) यह सुनिश्चित करता है कि कोई व्यक्ति एक साथ दोनों सदनों में सदस्य न रहे, जिससे संसद की संरचना में स्पष्टता और निष्पक्षता बनी रहे। निष्पक्षता और पारदर्शिता: यह प्रावधान संसद की कार्यवाही में निष्पक्षता, पारदर्शिता, और संवैधानिक अनुशासन को बढ़ावा देता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची और संसद की कार्यवाही, विशेष रूप से अयोग्यता के मामलों में मतदान की प्रक्रिया, पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 100 के तहत मतदान और प्रक्रिया संवैधानिक ढांचे के अधीन हैं। दलबदल के मामलों में मतदान की वैधता कोरम और निष्पक्षता पर निर्भर करती है। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 100 के तहत मतदान और कोरम की संवैधानिक वैधता को रेखांकित किया।
राजा राम पाल बनाम लोकसभा अध्यक्ष (2007) (नकद के बदले सवाल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में संसद के विशेषाधिकार और कार्यवाही की प्रक्रिया पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 100(3) के तहत संसद को अपनी प्रक्रिया को विनियमित करने का अधिकार है, और यह अधिकार संसद की स्वायत्तता का हिस्सा है। हालांकि, यह संवैधानिक प्रावधानों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अधीन है। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 100(3) के तहत संसद की स्वायत्तता और प्रक्रियात्मक शक्तियों को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और प्रक्रिया पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 100 जैसे प्रावधान, जो संसद की कार्यवाही को नियंत्रित करते हैं, संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा हैं और संविधान की मूल संरचना के अधीन हैं। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 100 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा की कार्यवाही, कोरम, और प्रक्रिया पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 100 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोरम और मतदान की प्रक्रिया संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए। कोरम की कमी से कार्यवाही की वैधता प्रभावित हो सकती है। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 100(2) के तहत कोरम की आवश्यकता को रेखांकित किया।
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