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Article 99 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 12:44:55
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 99

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 99
अनुच्छेद 99 का पूर्ण विवरण
संसद के प्रत्येक सदन (लोकसभा या राज्यसभा) का प्रत्येक सदस्य, अपने निर्वाचन के बाद और सदन में अपनी सीट ग्रहण करने से पहले, शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा।
शपथ या प्रतिज्ञान का प्रारूप संविधान की तीसरी अनुसूची (Third Schedule) में निर्दिष्ट है। शपथ या प्रतिज्ञान राष्ट्रपति या उनके द्वारा नियुक्त किसी अन्य व्यक्ति के समक्ष लिया जाएगा। शपथ का प्रारूप (तीसरी अनुसूची) तीसरी अनुसूची के अनुसार, संसद सदस्यों के लिए शपथ या प्रतिज्ञान का प्रारूप निम्नलिखित है
शपथ: "मैं, [नाम], ईश्वर की शपथ लेता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा; मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूँगा; और मैं जिस संसद के सदस्य के रूप में चुना गया हूँ, उसके प्रति अपने कर्तव्यों का सच्चे मन से निर्वहन करूँगा।"
प्रतिज्ञान: "मैं, [नाम], सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूँगा; मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूँगा; और मैं जिस संसद के सदस्य के रूप में चुना गया हूँ, उसके प्रति अपने कर्तव्यों का सच्चे मन से निर्वहन करूँगा।"
सदस्य अपनी पसंद के अनुसार शपथ (ईश्वर के नाम पर) या प्रतिज्ञान (बिना ईश्वर के उल्लेख के) चुन सकते हैं। शपथ या प्रतिज्ञान आमतौर पर लोकसभा के अध्यक्ष, राज्यसभा के सभापति, या उनके द्वारा अधिकृत व्यक्ति के समक्ष लिया जाता है।
अनुच्छेद 99 की मुख्य विशेषताएं
संवैधानिक निष्ठा: शपथ या प्रतिज्ञान यह सुनिश्चित करता है कि संसद के सदस्य संविधान, भारत की प्रभुता, और अखंडता के प्रति निष्ठा रखें।
कर्तव्यों की शुरुआत: शपथ लेना या प्रतिज्ञान करना अनिवार्य है, और इसके बिना कोई सदस्य सदन की कार्यवाही में भाग नहीं ले सकता या अपनी सीट ग्रहण नहीं कर सकता। तीसरी अनुसूची का महत्व: तीसरी अनुसूची में शपथ का प्रारूप एकरूपता और संवैधानिक मानकों को सुनिश्चित करता है।
राष्ट्रपति की भूमिका: शपथ या प्रतिज्ञान राष्ट्रपति या उनके द्वारा नियुक्त व्यक्ति के समक्ष लिया जाता है, जो इस प्रक्रिया की संवैधानिक गरिमा को दर्शाता है।
लचीलापन: सदस्यों को शपथ या प्रतिज्ञान चुनने की स्वतंत्रता है, जो उनकी व्यक्तिगत मान्यताओं (धार्मिक या गैर-धार्मिक) का सम्मान करता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और संवैधानिक निष्ठा पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 99 जैसे प्रावधान, जो संसद सदस्यों की संवैधानिक निष्ठा सुनिश्चित करते हैं, संसदीय शासन प्रणाली और संविधान की मूल संरचना का हिस्सा हैं। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 99 की संवैधानिक अखंडता और महत्व को मजबूत किया।
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची और संसद सदस्यों की अयोग्यता पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि अनुच्छेद 99 के तहत शपथ या प्रतिज्ञान संसद सदस्यों की संवैधानिक जवाबदेही का आधार है, और दलबदल जैसे मामले इस निष्ठा के उल्लंघन से संबंधित हो सकते हैं। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 99 के तहत शपथ की संवैधानिक निष्ठा को रेखांकित किया।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रवि दत्त (1993)
पृष्ठभूमि: इस मामले में संवैधानिक पदों और शपथ की प्रक्रिया से संबंधित विवाद पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 99 के तहत शपथ या प्रतिज्ञान संवैधानिक प्रक्रिया का अनिवार्य हिस्सा है, और इसका पालन न करना सदस्यता को अमान्य कर सकता है। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 99 की अनिवार्यता और संवैधानिक प्रक्रिया की वैधता को मजबूत किया।
लिली थॉमस बनाम भारत संघ (2013)
पृष्ठभूमि: इस मामले में संसद और विधानमंडल के सदस्यों की अयोग्यता और आपराधिक दोषसिद्धि पर विचार किया गया। निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 99 के तहत शपथ लेने वाले सदस्य संविधान के प्रति निष्ठा के लिए बाध्य हैं, और आपराधिक दोषसिद्धि उनकी सदस्यता और शपथ की वैधता को प्रभावित कर सकती है। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 99 के तहत शपथ की संवैधानिक जवाबदेही को रेखांकित किया। अनुच्छेद 99 की सीमाएं
अनिवार्यता: शपथ या प्रतिज्ञान लेना अनिवार्य है, और इसका पालन न करने पर सदस्य अपनी सीट ग्रहण नहीं कर सकता। यह कठोरता कुछ परिस्थितियों में विवादास्पद हो सकती है।
न्यायिक समीक्षा: शपथ या प्रतिज्ञान की प्रक्रिया या उससे संबंधित विवाद (जैसे शपथ का गलत प्रारूप) न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकते हैं।
प्रक्रियात्मक निर्भरता: शपथ का संचालन अध्यक्ष, सभापति, या राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति पर निर्भर करता है, जिसके अभाव में प्रक्रिया में देरी हो सकती है।
सदस्यता पर निर्भरता: शपथ केवल उन व्यक्तियों द्वारा ली जा सकती है जो विधिवत निर्वाचित और पात्र हों। अयोग्यता (अनुच्छेद 102) शपथ लेने की पात्रता को प्रभावित कर सकती है
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