Article 97 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 12:39:40
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 97
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 97
अनुच्छेद 97 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 97 का प्रावधान निम्नलिखित है
राज्यसभा के सभापति और उपसभापति तथा लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष को वेतन और भत्ते प्राप्त होंगे, जो संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा निर्धारित किए जाएंगे।
यदि संसद द्वारा ऐसा कोई कानून नहीं बनाया गया है, तो वेतन और भत्ते संविधान की दूसरी अनुसूची (Second Schedule) में निर्दिष्ट होंगे।
अनुच्छेद 97 की मुख्य विशेषताएं
वेतन और भत्तों का निर्धारण: अनुच्छेद 97 यह सुनिश्चित करता है कि सभापति, उपसभापति, अध्यक्ष, और उपाध्यक्ष को उनके पद की गरिमा के अनुरूप वेतन और भत्ते मिलें। यह प्रावधान उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता को बनाए रखने में मदद करता है।
संसद की शक्ति: संसद को कानून बनाकर इन पदाधिकारियों के वेतन और भत्तों को निर्धारित करने का अधिकार है, जो विधायी प्रक्रिया के माध्यम से पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
दूसरी अनुसूची का प्रावधान: यदि संसद द्वारा कोई कानून नहीं बनाया गया है, तो दूसरी अनुसूची में निर्दिष्ट प्रावधान लागू होते हैं, जो संवैधानिक ढांचे में निरंतरता प्रदान करता है।
संवैधानिक पदों की गरिमा: यह प्रावधान इन संवैधानिक पदों की वित्तीय स्वतंत्रता को सुनिश्चित करता है, ताकि वे बाहरी दबावों से मुक्त होकर अपनी जिम्मेदारियां निभा सकें।
लचीलापन: संसद को समय-समय पर वेतन और भत्तों को संशोधित करने का अधिकार है, जो आर्थिक परिस्थितियों और मुद्रास्फीति के अनुरूप समायोजन की अनुमति देता है।
संबंधित कानून वेतन, भत्ते और पेंशन अधिनियम, 1954 (The Salaries, Allowances and Pension of Members of Parliament Act, 1954): यह अधिनियम संसद सदस्यों, मंत्रियों, और संवैधानिक पदाधिकारियों (जैसे अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सभापति, और उपसभापति) के वेतन और भत्तों को नियंत्रित करता है। समय-समय पर इस अधिनियम में संशोधन किए गए हैं।
दूसरी अनुसूची: यह संविधान के तहत विभिन्न संवैधानिक पदाधिकारियों (राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, अध्यक्ष, आदि) के वेतन और भत्तों को परिभाषित करती है। उदाहरण के लिए, यह उपराष्ट्रपति (सभापति) के वेतन को निर्दिष्ट करती है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की शक्तियों और संवैधानिक पदों पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 97 जैसे प्रावधान, जो संवैधानिक पदाधिकारियों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं, संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा हैं और संविधान की मूल संरचना के अधीन हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 97 की संवैधानिक अखंडता और संवैधानिक पदों की स्वतंत्रता को मजबूत किया।
यूनियन ऑफ इंडिया बनाम रणजीत कुमार (1997)
पृष्ठभूमि: इस मामले में संवैधानिक पदाधिकारियों के वेतन और भत्तों से संबंधित विवाद पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 97 के तहत संसद को वेतन और भत्तों को निर्धारित करने का अधिकार है, और यह प्रक्रिया संवैधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए। वेतन और भत्ते पद की गरिमा और स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 97 के तहत वेतन निर्धारण की प्रक्रिया की वैधता को रेखांकित किया।
सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन बनाम भारत संघ (1993) (दूसरा जजेज केस):
पृष्ठभूमि: इस मामले में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और वेतन/भत्तों पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 97 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संवैधानिक पदाधिकारियों (जैसे अध्यक्ष, सभापति) के वेतन और भत्ते उनकी स्वतंत्रता और निष्पक्षता के लिए महत्वपूर्ण हैं, और ये संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप होने चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 97 के तहत वेतन और भत्तों की भूमिका को संवैधानिक स्वतंत्रता के संदर्भ में मजबूत किया।
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची और अध्यक्ष/सभापति की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से कहा कि अनुच्छेद 97 जैसे प्रावधान, जो संवैधानिक पदाधिकारियों की वित्तीय स्वतंत्रता सुनिश्चित करते हैं, उनकी निष्पक्षता और स्वायत्तता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण हैं।
रता के संदर्भ में मजबूत किया। प्रभाव: इसने अनुच्छेद 97 के तहत वेतन और भत्तों की संवैधानिक महत्ता को रेखांकित किया।
Conclusion
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jp Singh
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