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Article 95 of the Indian Constitution
jp Singh 2025-07-01 12:18:56
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 95

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 95
उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति द्वारा अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन अनुच्छेद 95 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह लोकसभा के अध्यक्ष (Speaker) के कर्तव्यों को उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) या अन्य व्यक्ति द्वारा पालन करने की व्यवस्था को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद अध्यक्ष की अनुपस्थिति, रिक्ति, या अक्षमता की स्थिति में लोकसभा की कार्यवाही की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
अनुच्छेद 95 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 95(1): जब अध्यक्ष का पद रिक्त हो, या अध्यक्ष अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हो, तो उपाध्यक्ष अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करेगा। उपाध्यक्ष को इस दौरान अध्यक्ष की सभी शक्तियां, विशेषाधिकार, और उन्मुक्तियां प्राप्त होंगी।
अनुच्छेद 95(2): जब अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों अनुपस्थित हों, या दोनों अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ हों, तो लोकसभा द्वारा अपने सदस्यों में से चुना गया कोई अन्य व्यक्ति अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करेगा।
ऐसा व्यक्ति अध्यक्ष की शक्तियों, विशेषाधिकारों, और उन्मुक्तियों का हकदार होगा, जब तक वह इन कर्तव्यों का पालन करता है।
अनुच्छेद 95 की मुख्य विशेषताएं
कार्यवाही की निरंतरता: अनुच्छेद 95 यह सुनिश्चित करता है कि अध्यक्ष की अनुपस्थिति, रिक्ति, या अक्षमता की स्थिति में लोकसभा की कार्यवाही बाधित न हो। उपाध्यक्ष या अन्य चुना गया व्यक्ति कार्यवाही को सुचारू रूप से संचालित करता है।
उपाध्यक्ष की प्राथमिकता: उपाध्यक्ष को अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करने में प्राथमिकता दी जाती है, जो उनकी संवैधानिक भूमिका को मजबूत करता है।
लचीलापन: यदि अध्यक्ष और उपाध्यक्ष दोनों अनुपस्थित हों, तो लोकसभा को अपने सदस्यों में से किसी को चुनने की स्वतंत्रता है, जो प्रक्रियात्मक लचीलापन प्रदान करता है।
शक्तियों और विशेषाधिकारों का हस्तांतरण: अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करने वाला व्यक्ति (उपाध्यक्ष या अन्य) अध्यक्ष की शक्तियों और विशेषाधिकारों का उपयोग कर सकता है, जो निष्पक्ष और प्रभावी संचालन के लिए आवश्यक है।
लोकसभा की स्वायत्तता: वैकल्पिक व्यक्ति का चयन लोकसभा के भीतर होता है, जो सदन की स्वायत्तता और आत्म-नियमन की क्षमता को दर्शाता है।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992) (दलबदल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष की अयोग्यता पर निर्णय लेने की शक्ति और उनकी भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 95 के तहत उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति द्वारा अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करते समय उनकी शक्तियां संवैधानिक ढांचे के अधीन हैं और न्यायिक समीक्षा के दायरे में आ सकती हैं, यदि वे मनमाने हों।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 95 के तहत उपाध्यक्ष की भूमिका की निष्पक्षता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016):
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष द्वारा कर्तव्यों का पालन और सत्रों के संचालन पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 95 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपाध्यक्ष (या समकक्ष) द्वारा कर्तव्यों का पालन संवैधानिक प्रावधानों और निष्पक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए। मनमानी कार्रवाइयां असंवैधानिक हैं।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 95 के तहत उपाध्यक्ष या अन्य व्यक्ति की भूमिका की संवैधानिकता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और अध्यक्ष/उपाध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 95 के तहत अध्यक्ष के कर्तव्यों का पालन करने की व्यवस्था संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 95 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के विघटन और अध्यक्ष/उपाध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 95 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष या उपाध्यक्ष द्वारा कार्यवाही का संचालन संवैधानिक ढांचे के भीतर और निष्पक्षता के साथ होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 95 के तहत कर्तव्यों के पालन में निष्पक्षता की आवश्यकता को रेखांकित किया।
Conclusion
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