Article 94 of the Indian Constitution
jp Singh
2025-07-01 12:15:51
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भारतीय संविधान का अनुच्छेद 94
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 94
अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद रिक्त होना, त्यागपत्र, और हटाना अनुच्छेद 94 भारतीय संविधान के भाग V (संघ) के तहत आता है और यह लोकसभा के अध्यक्ष (Speaker) और उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) के पद की रिक्ति, उनके त्यागपत्र, और हटाने की प्रक्रिया को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद लोकसभा की कार्यवाही में निरंतरता और संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए इन पदों के प्रबंधन को नियंत्रित करता है।
अनुच्छेद 94 का पूर्ण विवरण
अनुच्छेद 94 के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित हैं
अनुच्छेद 94(a): अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद तब रिक्त हो जाता है, जब: वे लोकसभा की सदस्यता से हट जाते हैं (उदाहरण के लिए, अयोग्यता, इस्तीफा, या अन्य कारणों से)।
अनुच्छेद 94(b): अध्यक्ष या उपाध्यक्ष अपने पद से त्यागपत्र दे सकता है
अध्यक्ष अपने त्यागपत्र को उपाध्यक्ष को संबोधित करेगा।
उपाध्यक्ष अपने त्यागपत्र को अध्यक्ष को संबोधित करेगा।
त्यागपत्र लिखित रूप में होना चाहिए और इसे स्वीकार किए जाने पर प्रभावी हो जाता है।
अनुच्छेद 94(c): अध्यक्ष या उपाध्यक्ष को हटाया जा सकता है, यदि लोकसभा द्वारा प्रस्ताव पारित किया जाए: इस प्रस्ताव को लोकसभा के सभी तत्कालीन सदस्यों के बहुमत (Absolute Majority) से पारित करना होगा।
प्रस्ताव पर विचार करने से पहले, कम से कम 14 दिन का नोटिस देना अनिवार्य है।
अनुच्छेद 94 की मुख्य विशेषताएं
पद की रिक्ति: अध्यक्ष या उपाध्यक्ष का पद उनकी लोकसभा सदस्यता समाप्त होने पर स्वतः रिक्त हो जाता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि केवल सक्रिय सदस्य ही ये पद धारण करें।
त्यागपत्र की प्रक्रिया: त्यागपत्र की प्रक्रिया में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के बीच पारस्परिक जवाबदेही है, क्योंकि वे एक-दूसरे को त्यागपत्र सौंपते हैं।
हटाने की कठोर प्रक्रिया: हटाने के लिए विशेष बहुमत और 14 दिन के नोटिस की आवश्यकता यह सुनिश्चित करती है कि प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी हो, और मनमानी से बचा जाए
निष्पक्षता और जवाबदेही: हटाने की प्रक्रिया में उच्च मानक लोकसभा की स्वायत्तता और संवैधानिक मर्यादा को बनाए रखते हैं, साथ ही प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करते हैं।
संवैधानिक संतुलन: यह प्रावधान अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की संवैधानिक भूमिका को सुरक्षित रखता है, ताकि वे निष्पक्षता के साथ कार्यवाही संचालित कर सकें।
संबंधित महत्वपूर्ण मुकदमे
किहोतो होलोहन बनाम जचिल्हु (1992) (दलबदल मामला)
पृष्ठभूमि: इस मामले में दसवीं अनुसूची के तहत अध्यक्ष की अयोग्यता पर निर्णय लेने की शक्ति और उनकी भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 94 के तहत अध्यक्ष की स्थिति और उनकी शक्तियां संवैधानिक ढांचे के अधीन हैं। हटाने की प्रक्रिया में निष्पक्षता और 14 दिन का नोटिस प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन करता है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 94(c) के तहत हटाने की प्रक्रिया की निष्पक्षता और जवाबदेही को रेखांकित किया।
नबम रेबिया बनाम उपाध्यक्ष, अरुणाचल प्रदेश विधानसभा (2016)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के उपाध्यक्ष के हटाने और उनकी भूमिका पर विचार किया गया, जो अनुच्छेद 94 के समान सिद्धांतों से प्रेरित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपाध्यक्ष (या समकक्ष) को हटाने की प्रक्रिया में संवैधानिक प्रावधानों, जैसे विशेष बहुमत और नोटिस, का पालन करना अनिवार्य है। यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुरूप होना चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 94(c) के तहत हटाने की प्रक्रिया की संवैधानिकता को मजबूत किया।
केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
पृष्ठभूमि: यह मामला संविधान की मूल संरचना सिद्धांत से संबंधित था, जिसमें संसद की कार्यवाही और अध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 94 के तहत अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की नियुक्ति और हटाने की प्रक्रिया संसदीय शासन प्रणाली का हिस्सा है, जो संविधान की मूल संरचना के अधीन है।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 94 की संवैधानिक अखंडता को मजबूत किया।
रामेश्वर प्रसाद बनाम भारत संघ (2006)
पृष्ठभूमि: इस मामले में विधानसभा के विघटन और अध्यक्ष की भूमिका पर विचार किया गया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अनुच्छेद 94 से संबंधित था।
निर्णय: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अध्यक्ष की कार्रवाइयां और उनकी स्थिति (अनुच्छेद 94) संवैधानिक ढांचे के भीतर होनी चाहिए और निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए।
प्रभाव: इसने अनुच्छेद 94 के तहत अध्यक्ष की भूमिका और जवाबदेही को रेखांकित किया।
Conclusion
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jp Singh
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